हिन्दी तू ही सच बता दे
कैसा हिन्द में मान है तेरा ,कैसा यहां सम्मान है तेरा ।
हिन्दी सच अब तू बता दें ,
कैसा राष्ट्र से अरमान तेरा ।।
राष्ट्र की भाषा हो तुम तो ,
राष्ट्रभाषा भी बन न सका ।
राष्ट्र की भाषा होकर तुम ,
राष्ट्रभाषा गौरव तन न सका ।।
भाषण देते हिन्दी में किंतु ,
लिखने में क्यों परहेज है ?
कार्यालय से है हिन्दी नदारद ,
घर पर अंग्रेजी लगा सेज है ।।
कैसे कहूं कि हिन्द में हिन्दी ,
आज भी सुरक्षित संचित है ।
राष्ट्र की भाषा होते ही हिन्दी ,
राष्ट्रभाषा से आज वंचित हैं ।।
हिन्द में हिन्दी का मान नहीं ,
हिन्दी होता हिन्द में नगण्य ।
हिन्दी शिक्षक मिलना कठिन ,
हिन्दी बिन हिन्द होगा अरुण ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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