होली अपनो के संग

होली अपनो के संग

आओ हम सब,
मिलकर मनाएं होली।
अपनों को स्नेह प्यार का,
रंग लगाये हम।
चारो ओर होली का रंग,
और अपने संग है।
तो क्यों न एकदूजे को,
रंग लगाए हम।
आओ मिलकर मनाये,
रंगो की होली हम।।


राधा का रंग और
कान्हा की पिचकारी।
प्यार के रंग से,
रंग दो ये दुनियाँ सारी।
ये रंग न जाने कोई,
जात न कोई बोली।
आओ मिला कर मनाये,
रंगो की होली हम।।


रंगों की बरसात है,
हाथों में गुलाल है।
दिलो में राधा कृष्ण,
जैसा ही प्यार है।
चारो तरफ मस्त,
रंगो की फुहार है।
हर कोई कहा रहा,
ये रंगो का त्यौहार है।।


बड़ा ही विचित्र ये,
रंगो का त्यौहार है।
जो लोगो के दिलों में,
रंग बिरंगी यादे भरता है।
देवर को भाभी से,
जीजा को साले से।
बड़े ही स्नेह प्यार से,
रंगो की होली खिलता है।
और अपना प्यार,
रंगो से बरसता है।।


होली मिलने मिलाने का,
प्यारा त्यौहार है।
शिकवे शिकायते,
भूलाने का त्यौहार है।
और दिलों को दिलों से,
मिलाने का त्यौहार है।
सच मानो और जानो,
यही होली का त्यौहार है।।


जय जिनेन्द्र देवसंजय जैन "बीना" मुंबई
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