पर उपदेश

पर उपदेश

होली खेलो सूखी यारों, पानी बर्बाद न करो,
दिवाली पर चला पटाखे, वायु खराब न करो,
ढोंगी, पाखन्डी, धर्मनिरपेक्ष, हमको यह समझाते,
भाईचारे के त्योहार में, भाईयों से प्यार न करो।


खडी करें जो सडक पर गाडी, अतिक्रमण चिल्लाते,
माँस मदिरा खाने वाले, प्रदूषण का सार बताते।
नचा रहा जो सडक पे भालू, बच्चों के पेट की खातिर,
उसको ही यें पशु प्रेमी, पशुओं का दुश्मन जतलाते।


ढोंगी और मक्कार बहुत हैं, धर्मनिरपेक्ष मुखौटा,
हिन्दू मरते लाख जहां में, नही कोई सडक पर लौटा।
गाय के हन्ता मरने पर, जो हर पल छाती पीटे रोते,
पहचानो इन नकली लोगों को, चरित्र जिनका खोटा।

अ कीर्तिवर्धन
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