हमारी भी हैं कुछ पहचान

महिला- दिवस को समर्पित:

हमारी भी हैं कुछ पहचान

मार्कण्डेय शारदेय

सृष्टि की हम भी हैं मुस्कान।
हमारी भी है कुछ पहचान।
हरि की कमला, शिव की गौरी ,विधि की वाणी जान।
माँ बन जन्म दिया औ’ पाला,
भगिनी बनकर तुझे सँभाला,
पत्नी बन सर्वस्व लुटाया
पुत्री बन घर किया उजाला।
बोल, कहाँ कब कैसे पीछे, खुद तू तौल पुमान!
दुर्गा, हाड़ा, जीजा बाई,
मीरा बाई, लक्ष्मी बाई,
उषा, कल्पना, बच्छेन्द्री हम
सरोजिनी, सावित्री बाई,
लक्ष्मी सहगल, लता, भोंसले, चन्द्रमुखी बसु मान।
कौन क्षेत्र है? जहाँ न हैं हम,
कौन विशेषण? जिसमें हम कम,
शिक्षा-दीक्षा पद-प्रतिभा में
दिखलाती आई हैं दमखम
नर-नारी दो भले लगें, पर दोनों एक समान।
चला रही हैं वायुयान हम,
सैनिक बनकर दिखा रहीं दम,
वीर-सपूतों की हैं जननी
सीमाएँ पड़ती आईं कम।जिधर लगा दे, उधर हमारा करतब देख सुजान!
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