नारी

नारी

नारी तो नारी है ,
नारी कभी न हारी है ।
दुःख की बात देखो ,
नारी पर नारी भारी है ।।
नर नारी का आभारी हैं
नारी बहन महतारी है ।
नारी बहुमूल्य जगत में ,
नारी से जगत न्यारी है ।।
नारी से ही नर है यह तो ,
नर से ही सहमी नारी है ।
नारी बहुत सताया नर ने ,
अब नारी की आई बारी है ।।
नर को कमजोर है करती ,
नारी शक्तिशाली बनाती हैं ।
नर अपनाते क्रुरता जब भी,
नारी अग्नि फिर बरसाती हैं ।।
नारी महद है सर्व लोकों में ,
फिर भी नारी का मान कहां ?
जहां भी यह है नारी सुरक्षित ,
पूर्ण सबका है अरमान वहां ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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