सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है महाशिवरात्रि

सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है महाशिवरात्रि

सत्येन्द्र कुमार पाठक

वैदिक और पुरातन संस्कृति में सृष्टि के रक्षक भगवान् शिव सकारात्मक ऊर्जा स्रोत है। नकारात्मक ऊर्जा स्रोत को समाप्त कर साकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है सावन । ज्योतिष विज्ञान के अनुसार भगवान् सूर्य सूर्य उतरायण से दक्षिणायन उत्तराषाढ़ नक्षत्र वैधृति योग चंद्रमा मकर राशि में में सावन प्रतिपदा को श्रवण पूर्ण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा का प्रवेश होते है वह सावन, श्रवण,, साउथा माह कहा गया है। सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत महाशिवरात्रि में भगवान शिव की उपासना का महत्वपूर्ण है । भगवान् सूर्य श्रवणा नक्षत्र में भू भाग में अवतरण हुआ था। भारतीय उपमहाद्वीप में सावन माह से वर्षा ऋतु का आगमन से प्राकृतिक पर्यावरण का संतुलन और प्रकृति श्रृंगार से परिपूर्ण सृष्टि बन जाती है। श्रावण मास भगवान् शिव को समर्पित है साथ ही इन्द्र आदित्य के रूप में भगवान् सूर्य तपते है। इस मास में विश्वा वसु गंधर्व , एलापत्र सर्प, अंगिरा ऋषि,प्रमलोचना अप्सरा और सर्पी नमक राक्षस विचरते है। सावन मास में नाग पंचमी, उपशास्त्रीय विद्या की उत्पति, झुलुआ डार की कजरी गीत, रक्षा बंधन, दक्षिण भारत और नेपाल का हरियाली तीज मनाते है। पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति की प्रसूति के अवतरित पुत्री माता सती ने अपने पिता द्वारा हरिद्वार की भूमि पर आयोजत ब्रहमेष्ठी यज्ञ में योग शक्ति से अपने शरीर की आहुति , तथा हिमवान की पत्नी मेनाक की। अवतरित पुत्री माता पार्वती द्वारा भगवान् शिव की प्राप्ति तथा शिव ने अपने ससुराल हमचल में रहने, मर्कांडू मुनि के पुत्र ऋषि मार्कण्डेय द्वारा मंत्र शक्ति प्राप्त कर यम को पस्त करने का महान् सावन माह भगवान् शिव का प्रिय है। सृष्टि और देवों, दैत्य, दानवों तथा जीव जंतुओं, मानवीय जीवन का संरक्षण के लिए समुद्र मंथन से उत्पन्न हलहल को भगवान् शिव ने पान कर ब्रह्माण्ड को बचाए थे। हलाहाल पान करने वाले भगवान् शिव को 89000 ऋषियों , देवों, दैत्यों और दानवों के द्वारा विभिन्न स्थलों के पवित्र नदियों का जल एवं स्वयं गंगा ने अपनी गंगा जल से जलाभिषेक तथा माता पार्वती द्वारा उत्पन्न बेल पत्र और नीलकमल, समी अर्पित कर हलाहल को समाप्त करने में सफलता प्राप्त की गई। आनंद रामायण के अनुसार सावन माह में भगवान् शिव को जलाभिषेक की परंपरा भगवान् विष्णु के अवतार भगवान् परशुराम द्वारा उतरप्रदेश का बागपत जिले के गढ़ मुक्तेश्वर अर्थात ब्रजघाट गंगा जल को कांवर में रख कर पूरा महादेव शिवलिंग पर जलाभिषेक कर कांवर संस्कृति की परंपरा कायम किया , श्री लंका के राजा रावण द्वारा माता सती की चिता भूमि पर जय दुर्गा शक्ति पीठ एवं भैरव वैद्यनाथ के क्षेत्र में ज्योतिर्लिंग की स्थापना कर बिहार के सुलतान गंज के गंगा जल को कांवर में ले कर झारखंड राज्य के देवघर में स्थित ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक किया वहीं त्रेता युग में भगवान् राम ने सुल्तानगंज का अजगैवी नाथ उतरायानी गंगा जल कांवर में के कर अपने आराध्य भगवान शिव का वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक किया। श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता पिता को उत्तराखंड के हरिद्वार में स्थित हरि की पैड़ी में स्नान ध्यान करा कर कांवर में गंगा जल तथा अपने माता पिता को रख कर भगवान् शिव को जलाभिषेक कराया था। कांवर संस्कृति का उदय सतयुग में देवों, त्रेता युग में परशुराम, राम , श्रवण कुमार, द्वापर युग में भिल्लों, किरातों द्वारा की गई है। बिहार, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों के शैव धर्म के अनुयाई शिव लिंग पर कांवर में गंगा जल ले कर गंगा जल से अभिषेक करते है। बिहार में पटना के गंगा के किनारे गाय घाट से गंगा जल ले कर औरंगाबाद जिले और अरवल जिले की सीमा पर स्थित बाबा दुग्धेश्वर नाथ, जहानाबाद जिले के बराबर पर्वत समूह के सुर्यांक गिरि पर अवस्थित बाबा सिद्धेश्वर नाथ , तथा हाजीपुर के गंगा जल ले कर मुजफरपुर के गरीबनाथ पर कांवरियों द्वारा जलाभिषेक करते है। नेपाल में पशुपति नाथ को जय पशुपतिनाथ , उत्तराखंड का केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को जय भोले तथा झारखंड के देवघर ज्योतिर्लिंग को बोल बंब का जय घोष करते हुए कांवरियों द्वारा किया जाता है। कांवरियों का डाक बंब, खड़ी बंब, दांडी कांवर, सामान्य कांवर के रूप में रहते हैं। सावन माह में 11 सर्वार्थ सिद्धि,10 सिद्धि,12 अमृत और 3 सिद्धि समाहित है। भगवान् शिव के प्रथम भार्या दक्ष प्रजापति की कन्या सती, दूसरी भार्या हिमवान की पत्नी हेमवती की पुत्री पार्वती तीसरी काली, चौथी उमा पांचवीं उमा है। वही माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को सुब्रमण्यम, मुरुगन कहा जाता है, गणेश को गणपति, गजानन कहा गया और पुत्री है अशोक सुन्दरी है वहीं अनाथ सुकेश, जालंधर, अयप्पा जिन्हें मोहनी के पुत्र हरिहर , भगवान् शिव के ललाट के पसीने से उत्पन्न भूमा, अंधक, और खुजा अर्थात 9 संतानों में 8 पुत्र, एक पुत्री है। भगवान् शिव के अवतार में महाकाल, तारा, भुवनेश, षोडश, भैरव, क्षिन्नमस्तक, गिरिजा, धूमवान, बंगलामुख, मतंग, कमल तंत्र शास्त्र के ज्ञाता हैं।भगवान् शिव का अवतारों में भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले महाकाल, शक्ति और मनोकांक्षा को पूर्ण करने वाली तारा, बाल भुवनेश, षोडश श्री विद्येश, भैरव,, क्षिन्नमस्तिक, धूमवान, बगलामुख, कमल तथा सुरभि से उत्पन्न रुद्र अवतार में कपाली, पिंगल, भीम, विरूपाक्ष , विलोहित, शास्ता, अजपद, अहिर्बुध्य, शंभू, चंड तथा भव हुए। धर्म की रक्षा के लिए रीक्षकुल पर्वत पर अत्रि ऋषि की भार्या अनुसुइया ने ब्रह्मा जी से चंद्रमा, विष्णु से दत्त और शिव के अंश से दुर्वासा का जन्म दी है। गौतम ऋषि की कन्या अंजनी ने शिव के अंश से हनुमान का निर्माण अवतरण हुआ है। भगवान् शिव के अवतार में पिप्पलाद, द्विजेश्वर , यतिनाथ, हंस,कृष्ण दर्शन,अवधूतेश्वर,भिक्षुवर्य, सुरेश्वरा, किरात अवतार हुए। द्वादश ज्योतिर्लिंग में सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल पर मल्लिकार्जुन, उजैन में महाकाल, ओंगकार में अमरेश्वर, हिमालय केकेदार में केदारनाथ, डाकनी में भीमशंकर, काशी में विश्वनाथ, गौतमी नदी के तट पर त्र्यंबकेश्वर, झारखंड के देवघर की चिताभूमि पर वैद्यनाथ दरुकावन में नागेश्वर तथा रामेश्वरम में रामेश्वर और घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग 12 है।श्रावण मास में मनसा पूजा, नाग पंचमी, हरियाली तीज महत्व पूर्ण है। हरियाली तीज को कजरी तीज, मेहंदी पर्व, मधुश्रवा तीज ठकुराईन तीज, शिव पार्वती पुनर्मिलन मिलन तिथि से ख्याति प्राप्त है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सावन मास शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को भगवान् शिव को प्राप्ति के लिए माता पार्वती ने 107 बार कठिन तप की परन्तु 108 वें बार कठिन तपस्या के कारण भगवान् शिव से प्रथम मिलन हुआ था। यह पर्व प्रकृति और पुरुष का मिलन से जानते है। आस्था, उमंग, और प्रेम का अद्भुत संगम में कुवांरी और सौभग्य वती महिलाएं वृक्ष की शाखाओं में झूला लगा कर झूलती है वहीं मयूर अपनी नृत्य से प्रकृति को स्वागत करती है। आश्विन मास शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को नाग पंचमी की प्रधानता है। पुराणों के अनुसार राजा दक्ष की पुत्री और कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू ने नाग की उत्पति कर नाग वंश का उदय कराई थी। अग्निपुरण में नाग पूजा का महत्व है। विश्व में 8 नागों में 9 नागों की प्रधानता महत्व पूर्ण है। भारत के विभिन्न राज्यो में नागालैण्ड, जापान, मिश्र, विजिंग , वाराणसी, कश्मीर में नाग पूजा की जाती है। नाग पाताल लोक का स्वामी जिसे नाग लोक कहा गया है। कल्हण ने कश्मीर को नाग लोक कहा है वहीं पतंजलि ने नाग के राजा महाभाष से शिक्षा प्राप्त कर महाभाष्यकार बने वहीं समुद्र मंथन में नागलोक के राजा वासुकी ने महत्व पूर्ण भूमिका निभाई है। नागपंचमी को तक्षक पूजा, गुड़िया पर्व कहा गया है। भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में 12 उप शिव लिंग की स्थापना हुई थी । द्वादश ज्योतिर्लिंग में उजैन के महाकाल ज्योतिर्लिंग का उप शिवलिंग भृगु क्षेत्र का हिरण्याबहु नदी के तट पर वर्तमान समय बिहार के अरवल जिले के करपी प्रखंड की सीमा और औरंगाबाद जिले के गोह प्रखंड का देवकुंड में दुग्धेश्वर नाथ, दूधनाथ, दूधेश्वर नाथ शिव लिंग स्थापित है। यह स्थल सभी पापों से मुक्ति और मनोवांक्षित फल प्राप्ति स्थल है। इनकी आराधना भृगुनंदन च्यवन ऋषि द्वारा की गई है वहीं ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का उप लिंग सोन प्रदेश के राजा शर्याती काल में अरवल जिले के कले्र प्रखंड का मधुसरवां में वधुसरोवर के तट पर उप शिवलिंग जिन्हें कर्मदेश्चर , च्यवनेश्वर शिवलिंग स्थापित है । यहां मलमास या पुरुषोत्तम मास में पवित्र भूमि पर श्रद्धालु वधुसरोवर में स्नान कर भगवान् शिव की उपासना करते है तथा काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का उप शिवलिंग जहानाबाद जिले के मखदुमपुर प्रखंड का बराबर पर्वत समूह के सूर्यांक गिरि की चोटी पर सिद्धेश्वर नाथ नाम से उप शिवलिंग स्थापित है। यह स्थल विकुक्षी पुत्र बाणासुर और दैत्यराज बलि पुत्र बाणासुर का आराध्य देव सिद्धनाथ है। इन्हे सिद्धनाथ, सिद्धेश्वर, सिद्धेश्चरनाथेश्चर के नाम से विख्यात है। मुज्जफ्फर पुर में गरीबनाथ शिवलिंग, वैशाली का राजा विशाल द्वारा वैशाली जिले के बसाढ़ में स्थापित चतुर्मुखी शिवलिंग , गया का मार्कण्डेयश्वर, मार्कण्डेय, पितामह शिवलिंग,पितामहेश्चर शिव लिंग स्थापित है। नेपाल के पशुपतिनाथ, भारतीय संस्कृति में भगवान् शिव के ज्योतिर्लिंग और उपलिंग तथा नाथ संप्रदायों द्वारा नाथ शिवलिंग की प्रधानता है। सिंधु और हड़पा संस्कृति में शिव लिंग की पूजा की प्रमुख है वहीं मागधीय संस्कृति में शिव पूजन विभिन्न रूपों में पूजने की प्रथा चली है। गुप्त काल में एक मुखी, द्विमुखी, त्रिमुखी शिव लिंग और पाल काल में शिवलिंग की स्थापना कर भगवान् शिव का आराधना स्थल का निर्माण हुआ है। शैवधर्म में नेपाल के विराट नगर के डूंगरी में 11 मुखी शिवलिंग सफेद पत्थर में स्थापित है मक्का में 11 मुखी शिव लिंग, जवा, इंडोनेशिया, बंगलादेश, आदि देशों में शिव लिंग की स्थापना कर शिव उपासना का केंद्र बना है। सावन मास के प्रतपदा में अग्नि शिव लिंग की उत्पति सृष्टि के लिए हुई थी ।भगवान् शिव का संबर्त, भुतेश, क्रोधीश , सुंदरानंद, कलाभैरव, दण्डपाणि, संकुर, महारुद्र, उन्मत, लंबकर्ण, विश्वेस, विकृतश्व, त्रिसंध्येश्वर, नंदीकेश्वर, ईश्वरानंद, योगीश, महोदर , शिव, वक्रतुंड, भीषण, चंड , वैद्यनाथ, वक्त्रानाथ, निमिष, भिरूक, मंगलयकपिलंबर, सर्वानंद , भव, रुरू, एसितांग, भद्रसेन , उमनंद आदि शिव लिंग विभिन्न स्थलों पर स्थापित है। शास्त्रों के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंग, 12 उप ज्योतिर्लिंग, 9 नाथ है।51 भैरव के रूप में शिवलिंग विभिन्न स्थलों पर स्थापित है। शैव धर्म में लिंगायत संप्रदाय, वासव संप्रदाय, नाथ संप्रदाय , कपाली संप्रदाय, अघोर संप्रदाय शामिल है। जहानाबाद जिले के काको में राजा कुकुट्स , धाराउत में राजा चद्रसेन , कारपी में राजा करूष , किंजर में स्फटिक शिवलिंग, पंतित में पांडव द्वारा स्थापित पुनपुन तट पर शिवलिंग, लारी में पटियालेश्चर शिवलिंग , नवादा जिले के आती, रू पौ में शिव लिंग , पटना, नालंदा , गया, औरंगाबाद, भागलपुर, दरभंगा, हाजीपुर, सोनपुर, आदि जगहों पर भगवान् शिव की आराधना स्थल कायम कर शैव धर्म का रूप ऋग्वेद में रुद्र, अथर्ववेद में भव, शर्व , पशुपति,, भूपति, मत्स्य पुराण में लिंग पूजा, वामन पुराण, शिव पुराण, लिंगपुरण में शैव धर्म में शिव लिंग पूजा का महत्व बतलाया गया है। शेव धर्म में ऋषि लवकुलिश द्वारा पशुपत संप्रदाय की स्थापना कर भगवान् शिव की 18 अवतारों का रूप दिया है। पाशुपत संप्रदाय के अनुयाई को पंचार्थिक कहा गया है। पशुपत संप्रदाय ने नेपाल के काठमांडू में पशुपति नाथ में चतुर्मुखी शिवलिंग और मध्यप्रदेश का मदसौर में आठ मुखी शिवलिंग पशुपति नाथ मंदिर में स्थापित कर शिव उपासना का केंद्र बनाया है। यह 10 वीं शताब्दी ई. पू. की बताई गई है। कापालिक संप्रदाय शैल स्थान पर भैरव इष्ट है, काला मुख संप्रदाय, लिंगायत संप्रदाय की स्थापना 12 वीं शताब्दी में बसवण्णा है और इसके प्रवर्तक बल्लभ प्रभु और शिष्य वासव है।10 वीं शताब्दी में मत्स्येंद्र नाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की तथा गोरखनाथ द्वारा नाथ संप्रदाय का विकास किया गया है। इनके अनुयाई नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, औघड़, योगी, सिद्ध है। 3500 से 2300 ई. पू. सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान कालीबंगा एवं अन्य स्थानों से प्राप्त शिव लिंग की पूजा करने का प्रमाण है।2 री शताब्दी पूर्व आंध्र प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में शिवलिंग पर प्रतिंमा मिला है। विश्व में प्राकृतिक शिवलिंग में हिमालय के अमरनाथ, कदबुल का तीन फीट ऊंचाई युक्त स्फटिक शिव लिंग, अरुणाचल प्रदेश का सिद्धेश्वर नाथ शिवलिंग प्राकृतिक है वहीं दस्सरम के एरावतेश्चर मंदिर में 10 वीं शताब्दी ई.पू. लिंगोद्भव शिवलिंग है। बिहार के जहानाबाद जिले के जहानाबाद ठाकुरवाड़ी में पंचलिंगी शिवलिंग, भेलावार में एकमुखी शिवलिंग, अरवल जिले के तेरा में सहस्त्रलिंगी शिव लिंग, रामपुर चाय में पञ्चलिंगी शिव लिंग है। भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग में झारखण्ड राज्य का देवघर में रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग , उत्तरप्रदेश राज्य का काशी के गंगा तट पर विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग , उत्तराखंड राज्य का रुद्रप्रयाग जिले के मंदाकनी नदी के किनारे केदारनाथ ज्योतिर्लिंग , मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन जिले के शिप्रा नदी के किनारे महाकाल ज्योतिर्लिंग , खंडवा जिले के नर्मदा तट पर ॐ कारेश्वर ज्योतिर्लिंग एवं ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग , गुजरात राज्य का कठियाबाड़ में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग , मद्रास का कृष्णनदी के तट पर स्थित श्रीशैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग , पूना के भीम नदी के किनारे सह्य पर्वत पर श्रीभीमशंकर ज्योतिर्लिंग , नासिक के गोदावरी नदी के उद्गम स्थान ब्रह्मगिरि के समीप त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग , बड़ोदा का गोमती नदी दारूकावन में नागेश ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के समुद्र तट पर रामेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा हैदरबाद का वेरुल में घृनेश्वर ज्योतिर्लिंग अवस्थित है । शास्त्रों एवं पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि को 12 ज्योतिर्लिंग के प्रगट होने के कारण तथा माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित महाशिवरात्रि मनाया जाता है। भगवान शिव माता पार्वती को समर्पित महाशिवरात्रि शांति , सद्भाव , मनोवांक्षित फल की प्राप्ति के लिए पुरुष एम स्त्रियों के लिए महत्वपूर्ण है ।
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