बुलाते भी हो.....

बुलाते भी हो.....

कसम देकर बुलाती हो
फिर मिलने से कतराती हो।
दिल की धड़कनो को
तुम क्यों छुपा रही हो।
और अपने मन की बात
क्यों कह नहीं पा रही हो।
पर मोहब्बत तुम दिलसे
और आँखों से निभा रही हो।।


मोहब्बत दूर रहकर भी
क्या निभाई जा सकती है।
तमन्ना उनके दिल की
दूर से सुन सकती हो।
और उन्हें अपने नजदीक
तुम बुला सकती हो।
या बस देखकर ही तुम
मोहब्बत निभाती हो।।


मोहब्बत करने वाले कभी
अंजाम से नहीं डरते।
क्योंकि मोहब्बत में दर्द
और भावनाएँ होती है।
इसलिए चोट किसी को लगे
पर दर्द दोनों को होता है।
जिसे देखकर मोहब्बत को
समझा जा सकता है।।


जय जिनेंद्रसंजय जैन "बीना" मुंबई
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