संकलन अश्विनी कुमार तिवारी
23 दिसंबर, स्वामी श्रद्धानंद का बलिदान दिवस
मैंने अपने साथ रहने वाले एक युवक से पूंछा ” क्या आपको पता है कि 23 दिसंबर स्वामी श्रद्धानंद का बलिदान दिवस है ” ? उसने प्रति प्रश्न किया ” कौन स्वामी श्रद्धानंद ?” मैं सोचने लगा कितना अकृतज्ञ है यह हिन्दू समाज। जिस स्वामी श्रद्धानंद ने 20 लाख से अधिक लोगो को पुनः हिन्दू बनाया उसे हम जानते भी नहीं और जिस साई बाबा ने हिन्दू समाज का चवन्नी भर भी भला नहीं किया उसे हम भगवान मान कर पूज रहे हैं।जिस विराट व्यक्तित्व को यह सौभाग्य प्राप्त है की उसने जामा मस्जिद से वेद मन्त्रों का पाठ किया उसे हम नहीं जानते....
23 दिसम्बर का दिन प्रेरणा लेने का है क्योंकि आज के दिन धर्म के लिए बलिदान हुये युग प्रवर्तक स्वामी श्रद्धानंद जी - का पुण्यस्मरण !
स्वामी श्रद्धानंद का बलिदान दिवस (२३ दिसम्बर १९२६)है, कितने लोगों को पता है।
सत्याग्रह आंदोलन के लिये गुरुकुल, कांगड़ी के ब्रम्हचारियों ने भोजन में दूध बंद कर, एक बान्ध पर मजदूरी द्वारा 1500 रू इकठ्ठे कर अफ्रीका भेजे। जब गांधी जी के पास अफ्रीका से भारत आने के पैसे नहीं थे तब स्वामी जी ने ही उन्हें 1500 रुपए भेजे थे जिससे वो भारत आ पाये थे।उस समय के 1500 रुपए की कीमत जानते हैं आप? जिन्होंने इतिहास के उन पन्नो को पलटा है, जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहे थे, तब उन्होंने आर्थिक सहायता के लिये अभ्यर्थना भारत से की | उन दिनों गुरुकुल कांगड़ी में २-३ अंग्रेजी अख़बार आते थे | स्वामी श्रद्धानंद ने उन अखबारों के आधार पर गांधीजी की सहायता करने की सोची | गुरुकुल के छात्रों ने दिसम्बर की ठण्ड में गंगा किनारे कुछ श्रम कर कुछ रुपये इकठ्ठे करके ‘गुरुकुल सहायता’ के नाम से उनको भेजे |
स्वामी श्रद्धानंद जी को अगर हम वास्तव में श्रद्दांजलि देना चाहते हैं तो मेरा हर हिन्दू भाई से अनुरोध है की वो कम से कम एक बार स्वामी जी की आत्मकथा ” कल्याण मार्ग का पथिक ” अवश्य पढे।
१९१९ में हुए जलियांवाला कांड के कारण भयभीत जनता ने एक जुलूस निकला जिसका नेतृत्व स्वामी श्रद्धानंद कर रहे थे | जब जुलूस चांदनी चौक पहुंचा तो वहां मौजूद सेना की टुकड़ी में एक सिपाही ने बन्दूक स्वामीजी के सीने पर तान दी | स्वामीजी ने सिंहगर्जना करते हुए अपने छाती पर पड़ी चादर हटा दी और कहा “साहस है तो चलाओ गोली” लाखों की भीड़ का नेतृत्व करने वाले संन्यासी दुनिया को गरजते देख रही थी | कहते हैं इस घटना के पश्चात ३ दिनों तक पूरे दिल्ली प्रदेश में स्वामीजी का अघोषित राज कायम रहा | हिन्दू ही नही सैकड़ो मुस्लिम इस वीतराग संन्यासी के पास आते और अपनी समस्यायों का समाधान पाकर संतुष्ट होकर जाते |
वह विराट व्यक्तित्व जिसमे मुसलमानों की भी श्रद्धा थी और जिसने जामा मस्जिद से वेद मन्त्रों का पाठ किया:-
दिल्ली की जामा मस्जिद के गुम्बद से स्वामीजी ने यह वेदमंत्र पढ़ा था-
“त्वं हि पिता वसो त्वं माता सखा त्वमेव । शतक्रतो बभूविथ । अधा ते सुम्नमी महे ।।”
संसार के इतिहास की ये एकलौती घटना है जब ‘एक मस्जिद के मिम्बर से वेदमंत्र का उच्चारण हुआ | इसके बाद मुसलमानों ने अन्य मस्जिदों में भी उनके व्याख्यान करवाये |
स्वामी श्रद्धानंद , इस नाम का स्मरण होते ही मस्तिष्क में ऊँचा कद, चेहरे पर गंभीरता, वाणी में दृढ़ता लिए एक महामानव का नाम स्मरण हो जाता हैं जिन्हें जाति निर्माता कहूँ या फिर अमर हुतात्मा कहूँ या फिर त्याग और तपस्या की मूर्ति कहूँ या मार्ग दर्शक कहूँ या फिर दलितौद्धारक कहूँ ! स्वामी जी का विशाल जीवन कदम कदम पर प्रेरणा देता है ! उन महामानव के जीवन के कई ऐसे मोती हैं जो जीवन की अविचल धारा में लुप्त से हो गये हैं ! पर हर बहुमूल्य मोती एक महाधन से कम नहीं हैं, उनकी प्रेरणा से न जाने कितनो के जीवन बदले हैं और न जाने कितनो के बदल सकते हैं !
स्वामी श्रद्धानन्द आयु-भर राष्ट्र-सेवा, समाज-सुधार दलितोद्धार , वेद- प्रचार, पतिता-उद्धार, शुद्धिकरण, महिला- मंडन सरीखे पुनीत कार्यों में जुटे रहे। न थके, न रुके, बस आगे ही आगे बढ़ते गए ! स्वामी श्रद्धानन्द एक चमत्कारिक व्यक्तित्व के स्वामी थे ! उनके द्वारा किए गए अनेक कार्यों को देख-सुनकर प्रत्येक व्यक्ति का आचंभित होना स्वाभाविक है ! परन्तु अफ़सोस कितना अकृतज्ञ है यह हिन्दू समाज। जिस स्वामी श्रद्धानंद ने 20 लाख से अधिक लोगो को पुनः हिन्दू बनाया उसे अधिकांश लोग जानते तक नहीं है ! यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि जिस विराट व्यक्तित्व को यह सौभाग्य प्राप्त है की उसने जामा मस्जिद से वेद मन्त्रों का पाठ किया उसे हम नहीं जानते !
स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज के स्वभाव की मृदुलता, शालीनता और सोम्यता से प्रभावित होकर उनके अनेक प्रशंसक बन गए थे जिनमे न केवल हिन्दू थे अपितु ईसाई और मुसलमान दोनों थे ! ऐसे ही स्वामी जी एक भगत थे जिनका नाम था मौलाना आसफ अली बार एट लॉ ! आप दिल्ली के मशहूर वकील थे और क्रान्तिकारी अरुणा आसफ अली के पति थे !
स्वामी श्रद्धानंद जी ने अनेक लोगों को को पुनः हिन्दू धर्म में शामिल कर आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के द्वारा शुरू की परंपरा को पुनर्जीवित किया और समाज में यह विश्वास पैदा किया कि जो बिधर्मी हो गए है वे सभी वापस अपने हिन्दू धर्म में आ सकते है ! फलस्वरूप देश में हिन्दू धर्म में वापसी के वातावरण बनने से लहर सी आ गयी ! राजस्थान के मलकाना क्षेत्र के एक लाख पच्चीस हज़ार मुस्लिम राजपूत यानी मलकाना राजपूतो की घर वापसी उन्हें भारी पड़ी, और २३ दिसंबर १९२६ को एक धर्मांध युवक अब्दुल रशीद ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी ! वे अमर होकर आज भी हमारे प्रेरणा स्त्रोत बने हुए है ।
स्वामी श्रद्धानंद जी के बलिदान दिवस पर आइये उनके उद्देश्यो, उनके बिचारो पर चल कर उनको श्रद्धांजलि दें ! आइये बिछुड़े हुए बंधुओ की घर वापसी कर उनके लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करे, यही देश भक्ति, भारत भक्ति और यही हमारी राष्ट्र आराधना भी है हम इस यज्ञ में आहुति जरुर डालेगे तभी स्वामी श्रद्धानंद की आत्मा को शांति मिलेगी !
सन 1916 में गांधी जी जब अफ्रीका से भारत आये तो स्वामी श्रद्धानंद जी की कुटिया में श्रद्धा व आदर से अभिभूत होकर स्वामी जी के पैर छुये, परिचय दिया- मैं आपका छोटा भाई, मोहनदास करमचंद गांधी।
मैकाले की शिक्षा पद्धति के कारण जब लोग गुरुकुल की बात करने पर ठहाके लगाकर हंसते थे, तब सन् १८६८ में गुरुकुल खोलकर शिक्षा देने के लिए १८ महीने तक सभी काम छोडक़र , बिना घर जाये ४० हजार रूपये इकठ्ठे करने वाले जालंधर के जाने माने वकील ‘‘लाला मुंशीराम’’ अर्थात स्वामी श्रद्धानंद ने गुरुकुल परंपरा शुरू कर हिन्दू समाज को जाति-पाति, ऊँच-नीच , छुआछूत धर्मान्तरण रोककर समरसता, समानता तथा घर वापिसी कर (पुन: हिन्दू बनाकर) हिन्दू समाज को संगठित किया। गुरुकुल शुरू करने के लिए अपने दोनों बच्चों के साथ अपने १२ से १५ मित्रों के बच्चों को गुरुकुल में पढ़ाकर हिन्दुत्व को बचाने की शुरुआत की। वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने मातृभाषा के द्वारा शिक्षा देने के महत्व को समझा। कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग के प्रधान मि. सैडलर ने स्वीकार किया, कि मातृभाषा में शिक्षा देने के परीक्षण मे गुरुकुल को अपार सफलता मिली। मित्र रेग्जे मैकडानाॅल्ड जो इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री भी रहे, उन्होंने लिखा है कि भारत में जिन्होंने राजद्रोह के बारे में पढ़ा है, उन्होंने गुरुकुल का नाम अवश्य सुना होगा।
न्यू स्टेटसमॅन ने १९१४ में पत्र लिखा कि गुरुकुल की सबसे बड़ी विशेषता, जाति पाति का भेदभाव दूर कर दिया। सात वर्ष की आयु का बालक पच्चीस वर्ष तक की आयु में देश के पूरे सेवक बन जाते हैं। गुरूकुल के माध्यम से जाति-पाति धुआछूत के कोढ़ को दूर कर हिन्दू समाज को समान भाव से स्वामी श्रद्धानंद जी ने खड़ा कर दिया। इसी कारण उन्होंने अपने दोनों बेटों तथा बेटी का विवाह समाज के विरोध के बाद भी अन्तर्जातीय ही किया।
बेटी एक दिन स्कूल से घर आती है तो गीत गाती है-
तू तो ईसा-ईसा बोल, तेरा क्या लगेगा मोल।
ईसा मेरा रमैया, ईसा मेरा कृष्ण कन्हैया।।
स्वामी श्रद्धानंद ने उसी समय धर्म-अनुकूल शिक्षा का संकल्प लेकर, सन् १८९० में जालंधर में ‘‘कन्या महाविद्यालय’’ शुरू किया। हिन्दी प्रांतों में स्त्री शिक्षा का बहुत बड़ा स्रोत यही शिक्षा संस्थान रहा है।
पंजाब की जिस भूमि में पानीपत के तीन युद्ध पठान, मुगलों के लगातार आक्रमण ने जिस समाज को सुदृढ़ व संघर्षशील तो बनाया किन्तु विधर्मियों के साथ रहने के कारण वह हिन्दू संस्कृति व सभ्यता को भूल गया। इसी कारण अंग्रेजों ने पंजाबियों को अपने साथ मिलाकर रखने का सतत प्रयत्न किया। १८५७ के संग्राम में पंजाब की सेना ने अंग्रेजों का साथ दिया। अंग्रेजों ने बड़ी योजना से इस समाज में फैशन परस्ती, अंग्रेजियत तथा ईसाईयत को बढ़ावा देते रहे तथा नौकरी देकर अपने राज्य को मजबूत बनाया।
स्वामी श्रद्धानंद जी ने समझ लिया कि, बिना भाषा प्रचार के धर्म प्रचार नहीं तो सकता क्योंकि हिन्दू धर्म की सभी पुस्तकें हिन्दी तथा संस्कृत में है। इसी कारण जालंधर अपने निवास स्थान से प्रचार आरंभ किया। अपनी ससुराल तथा उच्च पदस्थ तथा प्रसिद्ध व्यक्ति होने पर भी स्वामी श्रद्धानंद ने वर्षों तक एकतारा बजाकर प्रात:काल शहर में भजन व दोहे गाते थे। उन्हें भिखारी समझकर कुछ देविया अन्न वस्त्र दान देती, तो उन्हें लाकर आर्य समाज मंदिर में जमा करा देते थे।
काकीनाड़ा के कांग्रेस अधिवेशन में मौलाना मोहम्मद अली ने कहा कि- अछूत तो लावारिस माल है, इन्हें हिन्दू-मुसलमान को आधा-आधा बांट लेना चाहिए। इससे स्वामी जी के मन को गहरी चोट लगी और कांग्रेस से मतभेद हो गया। हिन्दुत्व की रक्षा करना उनका अटल ध्येय था। इसी कारण हिन्दू संगठन का कार्य आरंभ किया। उन्होंने देखा कि दिल्ली के आसपास गांव में ईसाई प्रचारक दलित बंधुओं को अहिन्दू बनाने का कार्य कर रहे है। तब उन्होंने ‘‘दलितोंद्वार सभा’’ की स्थापना कर अछूतों को नागरिक अधिकार दिलाने का कार्य आरंभ किया।
ख्वाजा हसन निजामी नामक मुसलमान लेखक ने ‘‘दार ए इस्लाम’’ नामक पुस्तक में हिन्दुओं को मुसलमान बना हिन्दू विधवाओं को बहलाकर निकाह करने की युक्तियों का वर्णन किया था। यह जानकारी समाचार पत्रों के माध्यम से हिन्दू समाज को प्राप्त होने पर सनसनी फैल गई। स्वामी जी ने ‘‘भारतीय शुद्धि सभा’’ की स्थापना गैर हिन्दुओं को शुद्ध कर घर वापिसी का कार्य प्रारंभ किया।
मथुरा, आगरा, भरतपुर तथा आसपास के मलकाना राजपूत जो दबाव में मुसलमान बन गये थे, पर हिन्दू पद्धतियों को आज भी मानते थे। उनसे बातचीत कर, पुन: शुद्ध कर पांच लाख से अधिक मुस्लिमों को सम्मेलन कर घर वापिसी कर हिन्दू बनाया । इससे देश भर के हिन्दुओं में जोश व नई जागृति फैल गई। इस कारण कट्टपंथी मुसलमानों का बैर भाव भी स्वामी श्रद्धानंद जी ने बढऩे लगा।
जो लोग यह समझते है कि स्वामी श्रद्धानंद जी मुसलमानों से घृणा करते थे, वे बड़ी भूल करते है। बड़ी संख्या में मुसलमान भी स्वामी जी के अनुयायी थे। क्योंकि वे मुसलमान शहीदों के प्रति गहरी सहानुभूति रखकर उनके परिवार की सहायता करते थे। इसी कारण मुसलमानों के बुलावे पर दिल्ली की जामा मस्जिद में मिम्बर (इमाम की स्थान) पर खड़े होकर भगवा वस्त्र पहनकर ऋग्वेद का मंत्र ‘‘त्वं हिन: पिता वसो त्वं माता’’ हिन्दू मुसलमानों को समझाया। धर्म-प्रेम व उदारता की शिक्षा देता है। छोटी-छोटी बातों पर हट करना ना समझी है।
मुसलमानों के कई मतों से वे सहमत नहीं थे तथा उनका पूरी जोरदारी से खंडन करते थे। जो मुसलमान, इस्लाम छोडक़र हिन्दू धर्म में आना चाहते है, उनको स्वामी श्रद्धानंद जी ने हिन्दू भी बनाया।
इसी कारण २३ दिसम्बर १९२६ को अब्दुल रशीद नामक उन्मादी ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। आज भी उनका बलिदान, उनके कार्यों को आलोकित करता हुआ एक प्रकाश किरण की तरह हमारे सामने आकर हिन्दुत्व का भाव भरकर, धर्म कार्य में लगे लाखों लोगों का मार्ग प्रशस्त कर जीवन भर कार्य करने की सतत प्रेरणा देता है।
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