छात्रों के भविष्य से खिलवाड़

छात्रों के भविष्य से खिलवाड़

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
बिहार के ऐतिहासिक मगध विश्वविद्यालय में हजारों छात्रों का भविष्य अंधकार में डूबा है। वहां वर्ष 2018-19 में जिन छात्रों ने परीक्षा दी, उनका नतीजा नहीं घोषित किया गया। इसी तरह उत्तर प्रदेश में आयुष छात्रों का मामला है। यहां छात्रों ने गलत साधनों का प्रयोग कर खुद का भविष्य अंधकार में डाला है लेकिन उनको गलत रास्ता दिखाने वाले भी कम दोषी नहीं कहे जा सकते। यूपी के आयुष कालेजों में हेराफेरी से दाखिला लेने वाले 891 छात्र निलंबित कर दिये गये। प्रदेश के आयुष मंत्री डा. दयाशंकर मिश्र ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया और यह जरूरी भी था। ये सभी भावी डाक्टर अब क्या करेंगे, कुछ भी कहा नहीं जा सकता। सवाल यह है कि छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ क्यों हो रहा है? उत्तर प्रदेश में सरकारी और निजी कालेजों को मिलाकर आयुष की 7338 सीटें हैं। इस बार 6797 सीटो ंपर दाखिले हुए हैं। आयुर्वेद विभाग की जांच में प्रदेश में आयुष कालेजों में 891 छात्रों के हेराफेरी से दाखिला लेने की बात सामने आयी। इनमें 53 सरकारी और 838 निजी कालेजों के छात्र हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ का राजकीय आयुर्वेद कालेज भी इसमें शामिल है।
बिहार के मगध विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों में नामांकित छात्र- छात्राओं का भविष्य अंधकार मय बना हुआ है। जिस बोधगया की भूमि पर ज्ञान प्राप्त कर सिद्धार्थ भगवान बुद्ध हो गए, उसी बोधगया क्षेत्र के छात्रों को ज्ञान प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है। सवाल ज्ञान प्राप्त करने का भी है और डिग्री का भी है। तीन साल के स्नातक का कोर्स 5 साल में भी पूरा नहीं हो पा रहा है, जबकि स्नातक रजिस्ट्रेशन की वेलिडिटी भी 5 साल की ही होती है। इससे छात्र परेशान रह रहे हैं। यहां के मगध विश्वविद्यालय के स्नातक के छात्रों की डिग्री 5 साल में भी नहीं पूरी हो पा रही है।
ज्ञान भूमि बोधगया के गया-डोभी रोड पर स्थित मगध विश्वविद्यालय की स्थापना 1 मार्च 1962 को हुई थी। स्थापना काल से लेकर कई दशक तक बिहार के सबसे बड़े विश्वविद्यालय का दर्जा मगध विश्वविद्यालय को प्राप्त था लेकिन इस समय मगध विश्वविद्यालय में शैक्षणिक और बुनियादी व्यवस्था का घोर अभाव है। विश्वविद्यालय में कक्षा और परीक्षा दोनों सत्र काफी लेट हैं। मगध यूनिवर्सिटी उन्हीं सरकारी यूनिवर्सिटी में शामिल हैं, जहां रिजल्ट घोषित करने में सालों लग जाता है। छात्रों का कहना है कि जिन्होंने साल 2018 में स्नातक में दाखिला लिया था, उनका अभी सेकेंड ईयर का भी रिजल्ट घोषित नहीं हुआ है। यहां नामांकित करीब 2-3 लाख छात्रों का भविष्य अंधकार में है। छात्रों का आरोप है कि मगध यूनिवर्सिटी में एग्जामिनेशन और एकेडमिक कैलेंडर विलंब होने की समस्या कोई नयी नहीं है। जब भी परीक्षा ली जाती है, उसका रिजल्ट समय पर नहीं निकला है। यह समस्या सत्र 2018 और सत्र 2019 में दाखिले लेने वाले छात्रों की है। परीक्षा नियंत्रक डॉ. गजेन्द्र प्रसाद गडकर बताते हैं कि वर्ष 2018 और 2019 सेशन में नामांकित छात्रों का पार्ट-1 और पार्ट- 2 का रिजल्ट पेंडिंग है क्योंकि यह परीक्षा कोरोना काल में जल्दबाजी में ओएमआर शीट पर हुई थी। जैसे ही ओएमआर शीट की स्कैनिंग शुरू हुई, मगध यूनिवर्सिटी में विवाद शुरू हो गया। इस कारण रिजल्ट में देरी हुई है। कुलाधिपति का आदेश आया है कि ओएमआर शीट को स्कैन करने के लिए टेंडर निकाला जाएगा।
इसी तरह उत्तर प्रदेश में आयुष दाखिलों में फर्जीवाड़े की जड़ें बहुत गहरी हैं। जांच में पता चला कि जिस कंपनी के नाम से ठेका था उसने कुछ किया ही नहीं। ठेका हासिल करने वाली कंपनी वी-थ्री सॉफ्ट सॉल्यूशन ने किसी दूसरी कंपनी को ठेका दे दिया और दूसरी कंपनी ने भी तीसरी कंपनी को काउंसलिंग का काम सौंप दिया। आयुष निदेशालय से अनुबंध होने के नाते एफआईआर वी-थ्री सॉफ्ट के खिलाफ दर्ज हुई। सभी कंपनियों के प्रतिनिधियों से एसटीएफ पूछताछ कर रही है। नामजद मुख्य आरोपी कुलदीप सिंह फरार है।सरकारी संस्थानों में कंप्यूटर वर्क के लिए एजेंसी चयन में अपट्रॉन और यूपी डेस्को में पंजीकृत कंपनियों को ही काम देने का प्रावधान है। आयुष काउंसलिंग के लिए आयुर्वेद निदेशालय ने अपट्रॉन से एजेंसी मांगी थी। अपट्रॉन ने न्यू बेरी रोड स्थित वी-थ्री सॉफ्ट सॉल्यूशन को आयुष काउंसलिंग के लिए नामित कर दिया। काउंसलिंग का ठेका मिलने के बाद वी-थ्री सॉल्यूशन ने टेक्नो ओसिन नाम की एक कंपनी को काम सौंप दिया। टेक्नो ओसिन ने भी रिमार्क टेक्नोलॉजी को काउंसलिंग कराने की जिम्मेदारी दे दी। वी-थ्री और टेक्नो ओसिन कंपनी ने कोई काम नहीं किया। रिमॉर्क टेक्नोलॉजी को कुलदीप सिंह ने ही काम दिलाया था। इस नाते काउंसलिंग में कुलदीप की मुख्य भूमिका रही। पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनिर कुलदीप सिंह ही आयुर्वेद निदेशालय से डाटा लाने के लिए अधिकृत था।तहकीकात में पता चला कि रिमॉर्क कंपनी वर्ष 2018 से काउंसलिंग जैसे जॉब वर्क कर रही थी। लखनऊ के कई निजी कॉलेजों की एडमिशन प्रक्रिया में वह शामिल रही। कुछ औपचारिकताएं पूरी नहीं होने के कारण कंपनी अपट्रॉन या यूपी डेस्को में पंजीकृत नहीं है। दोनों संस्थाओं में पंजीकृत कंपनियों के जॉब वर्क रिमार्क टेक्नोलॉजी करती है। रिमॉर्क टेक्नोलॉजी इंद्रदेव मिश्र तथा रूपेश रंजन पांडेय संचालित करते हैं। इन सभी से एसटीएफ लगातार पूछताछ कर रही है।
एसटीएफ ने विवेचना हाथ में आने के बाद से वी-थ्री सॉल्यूशन के गौरव गुप्ता, रिमॉर्क टेक्नोलॉजी के इंद्रदेव और रूपेश नंदन से पूछताछ की है। काउंसलिंग में सीधे तौर पर शामिल रिमॉर्क टेक्नोलॉजी ने अपने बयान में एसटीएफ को बताया कि उसका आयुर्वेद निदेशालय से सीधा संपर्क नहीं था। कुलदीप सिंह उसे रोज का रोज डाटा मुहैया कराता था। नीट मेरिट के डाटा के आधार पर काउंसलिंग लेटर और सीट एलाटमेंट रिमॉर्क टेक्नोलॉजी जारी करती थी। वी-थ्री सॉल्यूशन के गौरव गुप्ता कहते हैं कि हमें फंसाया गया। हमारी बात कोई नहीं सुन रहा है। रिमॉर्क टेक्नोलॉजी के इंद्रदेव तिवारी ने कहा कि हम जांच में पूरा सहयोग कर रहे हैं और आगे भी करेंगे। हमे फर्जीवाड़े के बारे में कोई जानकारी नहीं है। कुलदीप ने जो डाटा मुहैया कराया उसी आधार पर काउंसलिंग कराई गई। बहरहाल, भुगत तो छात्र रहे हैं। सीबीआई जांच की सिफारिश किए जाने के बाद आयुष कालेजों में पिछले शैक्षिक सत्र-2021 में फर्जी ढंग से प्रवेश पाने वाले 891 छात्रों को निलंबित कर दिया गया है। बीते दिनों गड़बड़ी उजागर होने पर इन छात्रों को चिन्हित कर कालेजों को उनकी सूची भेजी गई थी, जिन्हें कालेजों ने नोटिस जारी कर निलंबित कर दिया है। निलंबन नोटिस की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद सभी छात्रों के दाखिले रद किए जाएंगे। आयुष कालेजों में एडमिशन घोटाले में तत्कालीन आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डा. धर्म सिंह सैनी की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ