वो हिमालय बन बैठे

वो हिमालय बन बैठे

वो गुणी विद्वान हुये सब व्यस्त हो गए।
हम बालक नादान थे बड़े मस्त हो गए।


बड़ी ऊंची चीज वो उड़ते आसमानों में।
हम मुकाबला करते आंधी तूफानों से।


सात पीढ़ियों का जुगाड़ वो करते चले गए।
प्यार के मोती से झोली हम भरते चले गए।


भीड़ का आकर्षण सुंदर उनको लुभाता रहा।
गीतों का तराना प्यारा मैं भाव गुनगुनाता रहा।


वो मशीन से हो चले दिल का कहां ठिकाना था।
भाव भरी बहती गंगा दिलों से होकर जाना था।


वो हिमालय बन बैठे टस से मस ना हो जाना था।
तटबंधों को सागर की लहरों के थपेड़े खाना था।


रमाकांत सोनी सुदर्शननवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ