स्वतंत्रता का अमृतमहोत्सव

स्वतंत्रता का अमृतमहोत्सव

स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव जन- जन में भरता उत्साह
देश भक्ति की गाथाओं का बतलाता पावन  इतिहास। 
सन संतालिस के अगस्त की गरिमा भूल न पाएँगे
बलिदानों की पूण्य भूमि पर  शत शत शीश झुकाएँगे। 
जिनने हँसते- हँसते शूली चूम लिए  उफ नहीं किया
घर परिवार छोड़ जीवन तन मातृभूमि पर चढ़ा दिया। 
धूल घटायी दानवता को घवराकर  अत्याचारी
देश छोड़कर  भाग गये पर उकसाये विघटनकारी। 
अभी लड़ाई अंत  नहीं   घर के बैरी से लड़ना है
सबका साथ और विश्वासों से मिलकर ही बढ़ना है। 
नमन उन्हें  जो  सीमा पर  हैं डटे देश की रक्षा में
और उन्हे  जो गढ़ने मे हैं लगे शैक्षणिक कक्षा में। 
अभी बहुत है काम  नया सामाजिक  ढाँचा है गढ़ना
जीवन की अनिवार्य माँग को घर-घर में होगा भरना
इन वर्षों में विश्व चेतना  के स्वर्णिम आख्यान लिखे
भारत की अस्मिता प्रतिष्ठित कर वैश्विक सम्मान लिखे। 
हमने नहीं किसी खा छीना  संकट में सहयोग किया
औषधि , अन्न और भी कुछ जो चाहा हमने भेज दिया। 
हमें तराने  उन्नति के गाने हें मिल जुल कर भाई
और साथ ही बतियाने हैं अन्य ग्रहों से भी भाई
यह अमृत उत्सव देने आया है प्रखर ऊर्जा जीवन की
पूर्ण शक्ति सायुज्य मिले संतृप्ति मुखर हो यौवन की। 
घर घर फहरे ध्वज तिरंग  यों शोभित वंदनवार लगे
राष्ट भक्ति की निष्ठा ऐसी खिले कि मस्त बहार लगे। 
विष के बीज अकुरित हो इसके पहृले कुचले जाएँ
 अनपेक्षित विकृति के पादप  निर्भय सब काटे जाएँ  
स्वच्छ तंत्र हो राजनीति मे कालापन  न बने बाधक 
जन मन के पौरुष में कोई बन न सके बलवत चालक। 
उठे एक स्वर राष्ट्र्धर्म का  हो अखण्डता का उद्घोष
भले कभी विपरीत हवा हो मंद न होने पाये जोश। 
डा रामकृष्ण
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