‘बेबी बंप फ्लॉन्टिंग’ के नाम पर अर्धनग्न और अश्लील छायाचित्र प्रसारित करने वाली बॉलीवुड अभिनेत्रियों के विरुद्ध कार्यवाही करें ! - रणरागिनी

‘बेबी बंप फ्लॉन्टिंग’ के नाम पर अर्धनग्न और अश्लील छायाचित्र प्रसारित करने वाली बॉलीवुड अभिनेत्रियों के विरुद्ध कार्यवाही करें ! - रणरागिनी

आज भारत में ‘बेबी बंप फ्लाँटिंग’के नाम पर बॉलीवुड की अनेक गर्भवती अभिनेत्रियां अपने अर्धनग्न एवं अश्लील छायाचित्र प्रसारमाध्यमों में प्रसारित कर रही हैं । यह कृत्य समाज की सामान्य स्त्रियों में लज्जा निर्माण करते हैं । अभिनेत्री अनुष्का शर्मा, करीना कपूर से लेकर बिपाशा बासु तक सभी अभिनेत्रियां गर्भावस्था में बढे हुए पेट का सार्वजनिक अंग प्रदर्शन कर रही हैं । भारतीय दंड संहिता की धारा 292 तथा 293 के अनुसार ‘अश्लीलता का प्रसार’ दंडनीय अपराध है । दंड संहिता की धारा 294 के अनुसार ‘सार्वजनिक स्थलों पर अश्लील कृत्य करना दंडनीय अपराध है ।’ इसलिए इन अभिनेत्रियों पर तथा उनके छायाचित्र प्रसारित करनेवाले माध्यमों पर अपराध प्रविष्ट करने की मांग हिन्दू जनजागृति समिति की ‘रणरागिनी’ शाखा की श्रीमती संदीप मुंजाल ने की है ।
‘रणरागिनी’ की ओर से श्रीमती संदीप मुंजाल ने प्रधानमंत्री मा. नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री मा. अमित शाह, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री मा. अनुराग ठाकुर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री मा. एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री तथा गृहमंत्री मा. देवेंद्र फडणवीस, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा सुश्री रेखा शर्मा तथा महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग को शिकायत भेजी है । इस शिकायत में कहा गया है ‘बेबी बंप फ्लॉंटिंग’ ऐसा नामकरण कर गर्भावस्था में बढा हुआ पेट खोलकर संसार को दिखाने की, उसके लिए नए-नए पैंतरे अपनाकर छायाचित्र खींचकर अंग प्रदर्शन करने की प्रतियोगिता इन अभिनेत्रियों में चल रही है । यह कृत्य सामान्य परिवार की गर्भवती स्त्रियों के मन में लज्जा निर्माण करता है तथा समाज में सहजता से विचरण करने में कठिनाई निर्माण करता है ।
वास्तव में गर्भावस्था स्त्री के जीवन में मातृत्व की दिशा में अत्यंत संवेदनशील एवं अत्यंत व्यक्तिगत समय होता है; परंतु बॉलीवुड अभिनेत्रियों का अपनी गर्भावस्था का केवल व्यावसायिक लाभ के लिए, प्रसिद्धि के लिए इस प्रकार का घृणित प्रदर्शन करना, भारतीय संस्कृति के लिए लज्जाजनक है । यह भले ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर किया जा रहा है, तब भी सामाजिक हित में बाधक है और इसलिए इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं कहा जा सकता ।

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