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बिहार के राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सुप्रसिद्ध साहित्यकार और पूर्व आइएएस अफसर डा भगवती शरण मिश्र

बिहार के राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सुप्रसिद्ध साहित्यकार और पूर्व आइएएस अफसर डा भगवती शरण मिश्र

(प्रथम पुण्यतिथि विशेष-अतुल प्रकाश)
कल दिनांक 28-8-2022 को महान साहित्यकार डॉ भगवती शरण मिश्र के प्रथम पुण्यतिथि समारोह में भाग लेने का मौका मिला। साहित्यकार जनार्दन जनार्दन मिश्र के संयोजन में बमबम उत्सव पैलेस, कातिरा, आरा में आयोजित इस समारोह में आरा नगर के गणमान्य साहित्यकार उपस्थित थे।इस समारोह का विषय साहित्य और अध्यात्म था।
अति व्यस्तता के बावजूद कार्यक्रम के उत्तरार्ध में मैं जनहित परिवार के संरक्षक श्री जगत् नंदन सहाय जी के बार-बार फोन कॉल के बाद वहां उपस्थित हुआ। मैं जब उपस्थित हुआ तो प्रोफ़ेसर नंद जी दुबे अपना वक्तव्य समाप्त कर रहे थे और जनहित परिवार की अध्यक्ष डॉ . रेनू मिश्रा जी कार्यक्रम से प्रस्थान कर गई थी।
वक्ता के रूप में अधिवक्ता लक्ष्मी नारायण राय को आमंत्रित किया गया। उनके वक्तव्य के बाद मुझे अंतिम वक्ता के रूप में वक्तव्य देने का मौका मिला।
साहित्य और अध्यात्म पर बोलते हुए मैंने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में मैंने कहा कि *"साहित्य अध्यात्म का आरंभ बिंदु है जबकि अध्यात्म साहित्य का लक्ष्य। साहित्य नहीं भी रहेगा तो अध्यात्म का अस्तित्व रहेगा क्योंकि अध्यात्म शाश्वत सत्य है।
साहित्य और अध्याय का एक ही लक्ष्य होता है कि सृष्टि के साथ समन्वय। जब व्यक्ति में घट-घट व्यापे राम की अवधारणा आ जाती है तो वह सृष्टि के प्रत्येक कण में राम को देखने लगता है उसे हिंदू में भी राम, मुसलमान में भी राम, सिख और ईसाई में भी राम दिखता है। उसे बड़ों और छोटों में भी राम दिखता है, कहने का अर्थ यह है कि उसका विभेद समाप्त हो जाता है। साहित्य का भी उद्देश्य विभेद समाप्त करना है न कि विभेद उत्पन्न करना। कुछ लोग साहित्य के माध्यम से भी विभेद पैदा करते हैं जो कि गलत है।"
मैं बहुत कुछ सुन नहीं पाया परंतु पहली बार मुझे दिवंगत साहित्यकार डॉ. भगवती शरण मिश्र जी के विषय में जानकारी मिली। उस जानकारी को आपके समक्ष रखा हूं।
डॉ मिश्र का जन्म 27 मार्च 1937 को बिहार के रोहतास जिले के काराकाट प्रखंड के बेनसागर नामक गांव में हुआ था. 84 वर्ष के डॉ. मिश्र के निधन 28 अगस्त 2021 को नई दिल्ली में उनके तत्कालीन आवास पर हुआ था। ‌ सरकारी सेवा से अवकाश के बाद वे दिल्ली स्थित पश्चिम विहार में रह रहे थे।

रोहतास जिले के संझौली प्रखंड के बेनसागर गांव के रहने वाले थे। डा भगवती ने 100 से भी ज्यादा पुस्तकें और ग्रंथ लिखे हैं। हिंदी, इंग्लिश, बांग्ला और मैथिली के विद्वान भगवती शरण मिश्र बिहार सरकार के राजभाषा विभाग के राजभाषा निदेशक थे और वे रेलवे मंत्रालय में भी अधिकारी रहे।
डा भगवती शरण मिश्र ने हिंदी, भोजपुरी, मैथिली ग्रंथ अकादमी के प्रमुख का भी पद संभाला है। 81 वर्षीय मिश्र अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। पिछले वर्ष (अप्रैल, 2020) में ही उनकी धर्मपत्नी कौशल्या देवी का निधन हो गया था।
डा भगवती संस्कृत के धुरंधर धर्मप्राण पण्डित यदुनंदन मिश्र के पौत्र और संस्कृत एवम हिंदी के सुप्रतिष्ठित विद्वान पण्डित गजानन मिश्र के सुपुत्र थे। पिता के कठोर अनुशासन और उनकी आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने अर्थशास्त्र को अपने अध्ययन का विषय चुना। फिर म्यूनिसिपल टैक्सेसन इन ए डेवलपिंग इकोनॉमी विषय पर बिहार विश्वविद्यालय मुज़फ्फरपुर से पीएचडी की। बाद में वे मुजफ्फरपुर में ही नगर निगम के आयुक्त के पद पर पदस्थापित भी हुए।
कई ऐतिहासिक और पौराणिक उपन्‍यास लिखे-

डा भगवती संस्कृत, हिंदी, बंगला, अंग्रेजी के अलावा शाहाबादी भोजपुरी भी लिखते-बोलते थे। कादम्बिनी मासिक के वे स्थायी लेखकों में सूचीबद्ध थे। उपन्यास लेखन की विधा में तो ऐतिहासिक और पौराणिक पात्रों के माध्यम से समाज के अप सांस्कृतिक मूल्यों के परिष्कार हेतु आदर्श चरित्रों की स्थापना की। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर 'पहला सूरज', भक्ति के सेवा मार्ग के अनुयायी हनुमान के जीवन चरित्र पर 'पवन पुत्र', श्री कृष्ण के संपूर्ण जीवन चरित्र पर 'प्रथम पुरुष', एवं राम के चरित की नई व्याख्या करते हुए 'पुरुषोत्तम' तथा सगुण भक्ति की साधिका मीरा बाई के जीवन चरित्र पर 'पीताम्बरा' महाकाव्य लिखा। डॉ भगवती की उपन्यास लेखन की शैली महान उपन्यासकार अमृत लाल नागर के शिल्प को छूती हुई प्रतीत होती है।
उनके अलविदा कहने के बाद खाली हुए स्थान को कभी भरा नहीं जा सकता. डॉ मिश्र ने भले ही अब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनके द्वारा लिखी गई उपन्यास के सहारे वह हमेशा लोगों के करीब रहेंगे. डा. मिश्र ने साहित्य की अनेक विधाओं में अपना हाथ आजमाया और सफल भी हुए. लेकिन डॉ मिश्र द्वारा लिखी गई कहानी और उपन्यास ने उन्हें विशिष्ट राष्ट्रीय पहचान दिलाया. डॉ भगवतीशरण मिश्र द्वारा लिखित 90 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं. जिनमें कबीरा खड़ा बाज़ार में, प्रथम पुरुष, पहला सूरज, पुरुषोत्तम, अथ मुख्यमंत्री कथा, पवनपुत्र, पीताम्बरा, अग्निपुरुष, काके लागूं पांय, पद्मनेत्रा, मैं भीष्म बोल रहा हूं, मैं राम बोल रहा हूं आदि खासी चर्चित पुस्तकों में है. मानव-संसाधन विभाग और भारतीय बाल-परिषद्, भारत सरकार के संयुक्त तत्त्वावधान बाल लेखन के लिए डॉ मिश्र को पुरस्कृत किया गया था. प्रकाशन विभाग भारत सरकार द्वारा उनका एक बाल-कहानी संकलन ‘धरती का सपना’ प्रकाशित किया गया था. साहित्य जगत में अभूतपूर्व कार्य के लिए उन्हें अनेक सम्मान मिले है.
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