रक्षा का कवच

रक्षा का कवच

तुमसे प्रेम और तुम ही हो सखा
भाई _बहन का प्यार है अनोखा
भाई रक्षा करने के लिए खड़ा है
तो बहन स्नेह से भरा एक घड़ा है
विप्पति आए तो पीछे नहीं हटता
बहन पर आंच आए तो सबसे पहले लड़ता
जरूरी नहीं की यह सिर्फ खून के रिश्ते में है सिमटा
दिल से निभायो तो खून का रिश्ता भी हैं फीका पड़ता
कृष्ण को सुभद्रा तो प्रिय थी
लेकिन सबसे प्रिय थी द्रौपदी
चीर हरण जब हुआ तो उनके
आवाह्न पर उनकी लज्जा रखी
हैं नमन मेरा इस रिश्ते को 
जो सदियों से चली आ रही है
भाई आज भी खड़ा रहे
बहने पलके बिछा रही है 
मेरी यही मनोकामना है 
यह प्रेम की गंगा बहती रहे 
विश्वास और सदभाव से चलती रहे 
ऋचा श्रावणी
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