पुण्यशलोक पं राजेन्द्र नारायण मिश्र : प्रखर राष्ट्रप्रेमी एवं स्वतंत्रता सेनानी

पुण्यशलोक पं राजेन्द्र नारायण मिश्र : प्रखर राष्ट्रप्रेमी एवं स्वतंत्रता सेनानी

सुमन कुमार मिश्रा
सन 1942 ई का समय था । महात्मा गांधी का “अंग्रेजों भारत छोड़ो” स्वतंत्रता आंदोलन जोर पकड़ रहा था । उन्होंने सभी देशवासियों से अंग्रेजों की दमनकारी शासन व्ययस्था से असहयोग की अपील की थी। गांधीजी के आवाहन के कारण पूरे देश में आजादी और स्वराज के लिए देशवासियों की भावनाएँ उफान पर थीं । युवाओं मे इस आंदोलन के लिए अत्यधिक उत्साह था। देश की आजादी के लिए कुछ कर गुजरने की बलिदानी भावना देश के विभिन्न हिस्सों में शिक्षण संस्थाओं में अध्ययनरत युवाओं को तरंगित कर रहा था।

इसी कालखंड में दरभंगा मिश्रटोला निवासी, पर तब पटना में अपने ननिहाल में रहकर मैट्रिक की पढ़ाई कर रहा 14-15 साल की वय के एक नवयुवक को हवा में घुली-मिली स्वतंत्रता और सुराज की सुवास और सपने नें वशीभूत कर लिया था । किशोर वय में ही उसने देश को अपना वर्तमान समर्पित कर दिया। वह गांधीजी के आहूत आदोलनों के सभी कार्यक्रमों में सक्रियता और समर्पण से सम्मिलित होने लगा। सरकारी प्रतिष्ठानों और कार्यालयों में धरने / प्रदर्शन का दौर चल रहा था । आंदोलन धीरे-धीरे गति पकड़ रहा था। इसी क्रम में दिनांक 8 अगस्त 1942 को पटना सचिवालय भवन पर कुछ युवकों नें अंग्रेजों के झंडे “यूनियन जैक” को उतारकर तिरंगा फहराने का निर्णय किया । हजारों की भीड़, मुख्यतः युवा क्रांतिकारियों की सचिवालय भवन की ओर चल पड़ी । उसी क्रांतिकारियों की भीड़ का हिस्सा यह पटना सिटी, पथरीघाट का मैट्रिक में अध्ययनरत छात्र भी था। यह इतिहास तो सर्वविदित है की उस आंदोलन में सात युवाओं नें प्राणों की आहुति दी पर सचिवालय भवन पर झण्डा फहराया दिया। उन सभी सात शहीदों की मूर्तियाँ पटना विधानसभा भवन के सामने सतमूर्ती चौराहे पर लगी हैं और बिहारवासियों / देशवासियों को प्रेरणा और गौरव प्रदान करती हैं।

इस आंदोलन के बाद अंग्रेजी सरकार द्वारा गिरफ्तारियों का दौर चला और यह छात्र भी अन्य आंदोलनकारियों के साथ गिरफ्तार होकर पटना कैम्प जेल पहुँच गया। उस समय जेल में अन्य सह-बंदियों में इनके साथ बिहार के बड़े नेता और पूर्व बिधानसभा अध्यक्ष श्री हरिनाथ मिश्रा और दिग्गज काँग्रेसी नेता श्री रामजयपाल सिंह यादव भी शामिल थे। जेल में भी इन क्रांतिकारियों का आंदोलन / प्रदर्शन चलता ही रहता था। अंग्रेजी सरकार नें इन बंदी छात्रों को लिखित माफीनामा देने पर सजा में ढील देने का प्रस्ताव दिया था। पर इनपर तो देशप्रेम और आजादी का जुनून सवार था अतः इन सभी नें इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और जेल में ही ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नारेबाजी और हड़ताल शुरू कर दी। इसपर क्षुब्ध होकर ब्रिटिश सरकार नें उनकी एक साल की सजा को बढ़ाकर दो साल कर दिया। चूंकि उस समय जेल में बंद अधिकाँश छात्र अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर आंदोलन में शामिल हो गए थे अतः अन्य वरिष्ठ सहबंदियों नें जेल में ही इन छात्रों के शिक्षण की व्यवस्था की और वे छात्रों के लिए जेल में कक्षाएं आयोजित कर उन्हें पढ़ाने लगे।

1944 ई में जेल से रिहा होने के पश्चात इन्होनें मैट्रिक परीक्षा दी और उत्तीर्ण हुए। बाद में पटना के बी. एन. कॉलेज से वहीं हॉस्टल में रहकर बी. ए. की पढ़ाई पूरी की। तबतक देश आजाद हो चुका था। 1949-50 में उन्हें पटना सचिवालय के गृह विशेष विभाग में नौकरी मिल गई। बाद में वे बिहार सरकार के उत्पाद विभाग में अवर निरीक्षक के पद के लिए चयनित हुए और पूरे बिहार में अनेक स्थानों पर पदस्थापित रहते हुए अपनी सेवाएं दी।

भारत सरकार नें 15 अगस्त 1975 से “स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना“ शुरू की और इसके लिए देशभर के स्वतंत्रता सेनानियों से आवेदन आमंत्रित किया गया। लेकिन उन्होनें इस पेंशन के लिए आवेदन करने से मना कर दिया। उनकी भावना थी की देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपने स्वस्फूर्त और निःस्वार्थ योगदान के लिए देश से कोई प्रतिदान लेना उचित नहीं है। पर दुर्भाग्यवाश उन्हें मधुमेह और अन्य बीमारियों ने बुरी तरह घेर लिया था और वे शारीरिक रूप से अशक्त होने लगे थे। तब उनके मित्रों और सहकर्मियों नें उन्हें बहुत समझाया और दवाब बनाया और परिवार और बच्चों के भविष्य का हवाला देते हुए उनसे बलपूर्वक आवेदन करवाया था। पर वे इस पेंशन राशि का उपभीग नहीं कर सके और पेंशन चालू होने के कुछ ही महीनों के उपरांत दिनांक 22/09/1976 को उन्होंने इस धराधाम को अलविदा कह दिया। उस समय वे सरकारी सेवा में ही थे और अवर निरीक्षक के रूप में उत्पाद विभाग में वैशाली जिले में पदस्थापित थे।

मैं उनका ज्येष्ठ पुत्र हूँ और गत 31/07/2020 को भारतीय स्टेट बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुआ हूँ। 22/09/1976 को उनके स्वर्गारोहण के समय मेरी उम्र मात्र 17 वर्ष थी और मैं जिला स्कूल मुजफ्फरपुर से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर स्थानीय लब्धप्रतिष्ठ महाविद्यालय लँगट सिंह कॉलेज में इन्टरमीडीएट प्रथम वर्ष का छात्र था।

अपने स्वतंत्रता संघर्ष को वे कभी-कभी याद किया करते थे। अपनी स्मृति से उनकी उक्तियों के आधार पर ही मैं उनपर यह आलेख लिख रहा हूँ। गांधीजी पर उनकी अनन्य भक्ति थी। गांधीजी की किसी भी संदर्भ में चर्चा होने पर वे प्रसन्न और उत्साहित हो जाते थे एक समर्पित गाँधीवादी की तरह। गांधीजी से ही प्रभावित होकर उन्होनें भविष्य की परवाह न करते हुए किशोरावस्था में ही अपना जीवन देश को समर्पित कर दिया था। हम उन्हें प्रखर राष्ट्रवादी और निःस्वार्थ देशप्रेमी के रूप में याद करते हैं। सौभाग्य से उनके जेल से छूटने के 3 वर्षों के भीतर ही देश आजाद हो गया था। एक समर्पित देशप्रेमी और निःस्वार्थ स्वतंत्रता सेनानी का परिवार होने के कारण हम सभी बहुत गौरव का अनुभव करते हैं।

मेरे स्वतंत्रता सेनानी पिता पुण्यश्लोक पं राजेन्द्र नारायण मिश्र जी का जन्म 1928 ई. में दरभंगा मिश्रटोला में हुआ था। वे पुण्यश्लोक पं देवकीनंदन मिश्र के प्रथम सुपुत्र थे। दरभंगा में प्रारम्भिक शिक्षा के उपरांत वे आगे की शिक्षा के लिए अपने ननिहाल पथरीघाट पटनासिटी आ गए थे। यहीं वे पढ़ाई जारी रखते हुए भी स्वतंत्रता संग्राम की ओर उन्मुख हुए थे और अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। वर्ष 2017 में चंपारण सत्याग्रह की 200 वीं वर्षगांठ पर बिहार सरकार नें प्रदेश के सभी स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवारों को सम्मानित किया था। सरकार के अधिकारियों नें पटना में मेरे आवास पर मेरी अदारणियाँ माताजी श्रीमती सुनैना देवी को शाल और स्मृतिचिन्ह (शिलापट्ट) देकर सम्मानित किया था। वह हम सभी परिजनों के जीवन लिए अत्यंत गौरवशाली क्षण था। मेरे पिता अब हमारे बीच नहीं हैं पर उनका जीवन हमें सदा राष्ट्र के लिए त्याग और समर्पण की सतत प्रेरणा देता है।

लेखक :- सुमन कुमार मिश्रा, सहायक महा प्रबंधक (सेवानिवृत्त),भारतीय स्टेट बैंक
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