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गतम् न सोचामि

गतम् न सोचामि

        ---:भारतका एक ब्राह्मण.
          संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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गतम् न सोचामि
रही होगी पूर्वजों के पास
अकूत बेनामी सम्पत्ति
पर वो आज तो नहीं है न
फिर क्यों याद करना गतानुगति
थे भले चुतुर्दिक नामी
रखते होंगें रथ,हाथी,घोडे
बरसाते होगें दुश्मनों पर कोडे
लूटाते होगों खुब हीरे,मोती
रहा होगा महल और बडी खेती
जो कभी देखे नहीं नाकामी
रहते होंगें ढेर नौकर चाकर
डर जाते होगें लोग सामने आकर
करते होगें सब खुशामद
इसलिए की बंद न हो जाय आमद
झुक झककर देते होंगें सलामी
ये आसपास का ईलाका
थर्राता होगा कभी
पर बेकार है ये सब सोचना
सोच अभी का अभी
बनों अतिथि या आसामी
मैं नहीं सोचता ये सब
वो ऐसे थे वैसे थे
बहुत बडे थे मेरे लोग
था कारु का खजाना खुब पैसे थे
और वस्त्र व्यसन भी था दामी
तुम्हें सोचना है तो सोच
पर मेरा बाल मत नोंच
भुत की भावना
मत भविष्य में कोंच
स्वतंत्र रहने दे तु बन अनुगामी
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वलिदाद,अरवल(विहार)८०४४०२.
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