धनखड़ के नाम पर बड़ा संदेश

धनखड़ के नाम पर बड़ा संदेश

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उपराष्ट्रपति पद के लिए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को प्रत्याशी बनाया। इस रणनीति के तहत भाजपा ने कई निशाने साधे हैं। विपक्षी दलों को तोड़ने का प्रयास किया गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ओडिशा (उड़ीसा) के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बात की और उन्हांेने धनखड़ को समर्थन करने का आश्वासन दिया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक इस मामले मंे असमंजस मंे पड़ गयीं क्योंकि विपक्षी दलों की तरफ से जब मारग्रेट अल्वा के नाम की घोषणा की गयी तो ममता बनर्जी ने कहा कि मैं बाद मंे तय करूंगी कि जगदीप धनखड़ का समर्थन किया जाए या मारगे्रट अल्वा का। भाजपा का मुख्य निशाना तो राजस्थान रहा है जहां कांग्रेस की सरकार है। लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला भी राजस्थान के हैं और उपराष्ट्रपति भी राजस्थान का बनाया जा रहा है। जाटलैण्ड और राजस्थान की राजनीति को विशेष संदेश दिया गया है। राजस्थान में जाट, गुर्जर और राजपूत काफी महत्व रखते हैं। राजपूत नेता वसुंधरा राजे सिंधिया का प्रभाव कम करने के लिए भी भाजपा ने धनखड़ को उपराष्ट्रपति का प्रत्याशी बनाया है। उधर, विपक्षी दलों ने रोमन कैथोलिक मारग्रेट अल्वा को प्रत्याशी बनाया है। मारग्रेट अल्वा भी राजस्थान से जुड़ी रही है। वे चार राज्यों की राज्यपाल रह चुकी हैं। विधि स्नातक मारग्रेट कांग्रेस की नेता रही हैं। जुलाई 1974 मंे राज्यसभा सदस्य बनीं। वे 199 से 2004 तक लोकसभा सदस्य भी रहीं। इन्दिरा गांधी व राजीव गांधी सरकार मंे युवा मामले व संसदीय मामलों की राज्यमंत्री रहीं। पीवी नरसिंह राव मंत्रिमंडल मंे भी महत्वपूर्ण विभाग संभाले।

राजस्थान के जाट समुदाय से आने वाले जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने जाटलैंड और राजस्थान की राजनीति को तो बड़ा संदेश दिया ही है, लेकिन उसकी रणनीति अगले 25-30 साल की भावी राजनीति से जुड़ी हुई है। इसमें वह कॉडर से बाहर के विभिन्न सामाजिक वर्गों से जुड़े नेताओं को साथ जोड़ कर अपना व्यापक विस्तार कर लंबे समय तक सत्ता में रहना चाहती है। धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनने से राज्यसभा में तो भाजपा को एक वरिष्ठ नेता बतौर सभापति मिलेगा ही, लेकिन राजनीतिक मोर्चे पर उसे अगले साल होने वाले राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भी मदद मिलेगी। राजस्थान के शेखावटी के झुंझुनूं के जाट बहुल क्षेत्र से आने वाले धनखड़ से पार्टी को राज्य के सामाजिक समीकरणों में काफी मदद मिलेगी। अभी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया भी जाट समुदाय से आते हैं।राजस्थान की राजनीति में चार समुदाय जाट, गुर्जर, राजपूत और मीणा काफी अहमियत रखते हैं। इसके अलावा पिछड़े व दलित भी समीकरणों को बनाते-बिगाड़ते हैं। चूंकि, कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद पिछड़ा वर्ग से आते हैं और उसके दूसरे नंबर के नेता सचिन पायलट गुर्जर समुदाय से हैं, ऐसे में भाजपा का भावी समीकरण जाट, मीणा और राजपूत के साथ अन्य वर्गों को जोड़ने पर टिका हुआ है। देश में कांग्रेस की इस समय राजस्थान व छत्तीसगढ़ में सरकारें हैं। रणनीति व अनुभव के चलते गहलोत को ज्यादा मजबूत माना जाता है। ऐसे में भाजपा के लिए राजस्थान की चुनौती ज्यादा बड़ी है। धनखड़ के कद को बढ़ाने से भाजपा को राजस्थान में वसुंधरा राजे पर भी लगाम कसने का मौका मिलेगा।

इसके लिए उसने गजेंद्र सिंह शेखावत और उसके बाद सतीश पूनिया को मोर्चे पर उतारा लेकिन उससे भी जमीनी समीकरण ज्यादा नहीं बदले। अब वह सामाजिक समीकरण बदल कर अपने हिसाब से भविष्य के नेतृत्व को तैयार करना चाहता है, जिसमें वसुंधरा का वर्चस्व न हो।

भाजपा ने धनखड़ के लिए मजबूत मोर्चेंबंदी की है। ओडिशा में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अगुवाई वाली पार्टी बीजू जनता दल ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से घोषित उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को समर्थन देने की घोषणा की है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से नवीन पटनायक को फोन करने और धनखड़ के लिए समर्थन मांगने के बाद पार्टी ने यह निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में हुई बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने उपराष्ट्रपति चुनाव में जगदीप धनखड़ को एनडीए का उम्मीदवार घोषित किया। धनखड़ के नाम का ऐलान करते हुए नड्डा ने कहा किसान पुत्र जगदीप धनखड़ राजग के उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी होंगे। धनखड़ जी, एक साधारण किसान परिवार से आते हैं। उन्होंने सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को पार करते हुए अपने जीवन में उच्च लक्ष्य को प्राप्त किया और देश की सेवा करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के मुखिया नीतीश कुमार भी धनखड़ के समर्थन का ऐलान कर चुके हैं।

विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए राजस्थान की पूर्व राज्यपाल मार्गरेट अल्वा को अपना संयुक्त उम्मीदवार बनाने का फैसला किया। मौजूदा उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को समाप्त हो रहा है। देश के उपराष्ट्रपति को चुनने के लिए निर्वाचक मंडल में संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य शामिल होते हैं। संसद में सदस्यों की मौजूदा संख्या 780 है, जिनमें से केवल भाजपा के 394 सांसद हैं। जीत के लिए 390 से अधिक मतों की आवश्यकता होती है। दोनों ही उम्मीदवारों का संबंध राजस्थान से है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। जगदीप धनखड़, राजस्थान के जाट समुदाय से आते हैं, जबकि मार्गरेट अल्वा राजस्थान की राज्यपाल रह चुकी हैं।

मार्गरेट अल्वा का जन्म 14 अप्रैल, 1942 को मैंगलोर कर्नाटक में एक रोमन कैथोलिक फैमिली में हुआ था। उन्होंने बैंगलोर के माउंट कार्मेल कॉलेज से बीए की डिग्री ली। इसके बाद गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से वकालत की डिग्री ली। अल्वा ने 1969 में पॉलिटिकल करियर शुरू किया। वे 1975 से 1977 के बीच कांग्रेस की ज्वाइंट सेक्रेटरी रहीं। इसके बाद 1978 से 1980 तक कर्नाटक से कांग्रेस महासचिव भी रहीं। अल्वा चार बार राज्यसभा की सदस्य भी रहीं। मार्गरेट अल्वा की शादी 1964 में निरंजन थॉमस अल्वा से हुई। उनकी एक बेटी और तीन बेटे हैं। मार्गरेट अल्वा राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुकी हैं। राजीव कैबिनेट में संसदीय कार्य और युवा विभाग की मंत्री रही, जबकि नरसिम्हा राव की सरकार में पब्लिक और पेंशन विभाग की मंत्री रही हैं। मार्गरेट अल्वा ने 2016 में अपनी बायोग्राफी करेज एंड कमिटमेंट में एक बड़ा खुलासा किया था। इसमें उन्होंने बताया था कि राजीव गांधी जब शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अध्यादेश लाने जा रहे थे, तब मैंने उन्हें मौलवियों के सामने नहीं झुकने को कहा था। हालांकि, उन्होंने मेरा सुझाव मानने से मना कर दिया था। एक समय था, जब मार्गरेट अल्वा ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अपने बेटे के लिए टिकट मांगा था, लेकिन दिग्विजय सिंह के बनाए नियमों के कारण उनके बेटे को टिकट नहीं दिया गया था। इस बात से नाराज मार्गरेट अल्वा सक्रिय राजनीति से किनारा कर लिया था। राहुल गांधी ने उनकी फिर से वापसी कराई थी।
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