शेर की मुख मुद्रा पर विपक्षी परिहास

शेर की मुख मुद्रा पर विपक्षी परिहास

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
नए संसद भवन के निर्माण के संबंध में विपक्षी पार्टियों को लगातार दूसरी बार मुँह की खानी पड़ी है। पहले उसने सेंट्रल विस्टा निर्माण को रोकने के लिए हंगामा किया था। बाद में पता चला कि इसके पीछे किराये की रकम थी। सेंट्रल विस्टा बन जाने के बाद निजी भवनों में चलने वाले कार्यालयों को यहीं स्थान मिल जाएगा। इससे निजी हाथों में पहुँच रही भारी धनराशि बंद हो जाती।इससे अनेक नेताओं पर सीधा प्रभाव पड़ता। यही व्यथा विपक्ष के अनेक नेताओं को परेशान कर रही थी। सच्चाई सामने आई तब विरोध भी शांत हो गया लेकिन इस प्रकरण से विपक्ष की बड़ी फजीहत हुई थी। कई महीनों बाद इसी परिसर से विपक्षी नेता फिर एक मुद्दा उठा लाए। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने यहां राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह का लोकार्पण किया था। शेर का मुँह देख कर विपक्ष विफर गया। उसने कहा कि मोदी सरकार ने परम्परागत चिन्ह को बदल दिया है। एक दर्जन से अधिक विपक्षी दलों के बीच मोदी सरकार के विरोध में प्रतिस्पर्धा चलती है। हर कोई विरोध की इस अंध दौड़ में सबसे आगे रहना चाहता है। किसी को सही गलत पर अपने विवेक से विचार करने का आवश्यकता नहीं लगती।ऐसे विरोध पर पुनः विपक्षी पार्टियों को शर्मिंदगी उठानी पड़ी है।

सरकार की तरफ से बताया गया कि संसद भवन के ऊपर लगाया गया राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह सारनाथ के मूल प्रतीक चिन्ह की एक प्रतिलिपि है।इसमें केवल आकार का ही अंतर है। अनुपात और परिपेक्ष्य जरूरी होता है। यह देखने वाले की आंखों में है कि उसे क्या दिखाई देता है। उसे शांत स्वभाव दिखता है या क्रोध दिखाई देता है। संसद के ऊपर लगे इस प्रतीक चिन्ह को लेकर कई तरह की चर्चाएं चल रहीं थीं। विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया था। कहा जा रहा था कि संसद के ऊपर रखे गए प्रतीक चिन्ह में शेर आक्रामक है। विपक्षी नेताओं ने इस तथ्य पर कोई विचार नहीं किया।

इस संबंध में सरकार ने उसे जबाब दिया। कहा कि दो संरचनाओं की तुलना करते समय कोण, ऊंचाई और पैमाने के प्रभाव को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। यदि कोई नीचे से सारनाथ के प्रतीक को देखता है तो वह उतना ही शांत या क्रोधित लगेगा जितना कि चर्चा की जा रही है। सारनाथ मूल प्रतीक 1.6 मीटर ऊंचा है तो वही संसद भवन में यह प्रति 6.8 मीटर है। मूल प्रतीक चिन्ह की प्रतिलिपि नई इमारत से साफ-साफ नहीं दिखाई देती। इसलिए उसको बड़े आकार में लगाया गया है। विशेषज्ञों को यह समझना चाहिए कि सारनाथ की मूल प्रतिमा जमीन पर स्थित है जबकि नया प्रतीक जमीन से 33 मीटर की ऊंचाई पर है। यह सन्योग था कि इसी दौरान प्रधानमंत्री ने पटना में शताब्दी स्मृति स्तम्भ का उद्घाटन किया था। इसे बिहार विधानसभा के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में बनाया गया है। वहाँ मोदी ने भारती की गौरवशाली विरासत का उल्लेख किया था। इसमें देश का राष्ट्रीय चिन्ह भी शामिल है। मोदी ने कहा था कि भारती में लोकतंत्र की अवधारणा सर्वाधिक प्राचीन है। हजारों वर्षों पूर्व हमारे वेदों में कहा गया है- त्वां विशो वृणतां राज्याय त्वामिमाः प्रदिशः पञ्च देवीः.... विश्व में लोकतन्त्र की जननी हमारा भारत है, ‘भारत मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ है। बिहार की गौरवशाली विरासत,पाली में मौजूद ऐतिहासिक दस्तावेज भी इसके जीवंत प्रमाण हैं। बिहार के इस वैभव को न कोई मिटा सकता है, न छिपा सकता है। भारत को लोकतंत्र विदेशी हुकूमत और विदेशी सोच के कारण नहीं मिला है। जब दुनिया के बड़े भू-भाग सभ्यता और संस्कृति की ओर अपना पहला कदम बढ़ा रहे थे, तब वैशाली में परिष्कृत लोकतंत्र का संचालन हो रहा था। जब दुनिया के अन्य क्षेत्रों में जनतांत्रिक अधिकारों की समझ विकसित होनी शुरू हुई थी, तब लिच्छिवी और वज्जीसंघ जैसे गणराज्य अपने शिखर पर थे।

प्रधानमंत्री ने जन प्रतिनिधियों से पक्ष विपक्ष से ऊपर उठकर देशहित में आवाज उठाने का आह्वान किया था। उन्होंने कहा कि देश के सांसद के रूप में, राज्य के विधायक के रूप में हमारी ये भी जिम्मेदारी है कि हम लोकतंत्र के सामने आ रही हर चुनौती को मिलकर हराएं। पक्ष विपक्ष के भेद से ऊपर उठकर, देश के लिए, देशहित के लिए हमारी आवाज एकजुट होनी चाहिए। विपक्षी दल अशोक की लाट के मोहक और राजसी शान वाले शेरों की जगह उग्र शेरों का चित्रण कर राष्ट्रीय प्रतीक के स्वरूप को बदलने का आरोप लगा रहे हैं। विपक्ष ने मोदी पर संविधान के नियमों को तोड़ने का आरोप लगाया। कांग्रेस की ओर से कहा गया कि सारनाथ स्थित अशोक के स्तंभ पर शेरों के चरित्र और प्रकृति को पूरी तरह से बदल देना भारत के राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान है। तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा ने कहा कि सत्यमेव जयते से संघीमेव जयते की भावना पूरी हुई। वामपंथी इतिहासकार इरफान हबीब भी इस विवाद में आगे आ गए। उन्होंने कहा के राष्ट्रीय प्रतीक के साथ छेड़छाड़ आपत्तिजनक और अनावश्यक है। शेर अति क्रूर और बेचैनी से भरे दिख रहे है। यह अशोक की लाट के वह नहीं शेर नहीं हैं जिसे 1950 में स्वतंत्र भारत में अपनाया गया था। प्रशांत भूषण को भी ऐसे अवसरों की तलाश रहती है। उन्होंने कहा कि गांधी से गोडसे तक, शान से और शांति से बैठे हमारे शेरों वाले राष्ट्रीय प्रतीक से लेकर सेंट्रल विस्टा में निर्माणाधीन नये संसद भवन की छत पर लगे उग्र तथा दांत दिखाते शेरों वाले नये राष्ट्रीय प्रतीक तक। यह मोदी का नया इंडिया है। एक नेता ने कहा कि क्या यह महान सारनाथ की प्रतिमा को परिलक्षित कर रहा है। या गिर के शेर का बिगड़ा हुआ स्वरूप है। किसी ने राष्ट्रीय प्रतीक के दो अलग अलग चित्रों को साझा किया।लिखा कि हमारे राष्ट्रीय प्रतीक का, अशोक की लाट में चित्रित शानदार शेरों का अपमान है। बांयी ओर मूल चित्र है। मोहक और राजसी शान वाले शेरों का। दांयी तरफ मोदी वाले राष्ट्रीय प्रतीक का चित्र है जिसे नये संसद भवन की छत पर लगाया गया है। इसमें गुर्राते हुए,अनावश्यक रूप से उग्र और बेडौल शेरों का चित्रण है। यह शर्मनाक है। इसे तत्काल बदल देना चाहिए।विपक्ष की सभी दलीलें हास्यास्पद साबित हुई। भाजपा ने कहा कि विपक्ष टु डी तस्वीरों की तुलना भव्य थ्री डी संरचना से कर रहा है।

सच्चाई यह है कि विपक्ष को भव्य स्वदेशी संसद भवन का निर्माण पसन्द नहीं आ रहा है। इसलिए वह इस पर विवाद पैदा करता है। समय का चक्र निरन्तर चलता है। इसके अनुरूप परिवर्तन होते है। नए निर्णय करने होते है। वर्तमान संसद भवन के साथ भी यह बात लागू होती है। पिछले अनेक वर्षों से नए भवन की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। संसद के इस भवन में विस्तार सँभवन नहीं था। प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक कहा कि वर्षो से इस पर चर्चा चल रही थी। नए संसद भवन की जरूरत महसूस की गई है। ऐसे में हम सभी का दायित्व है कि इक्कीसवीं सदी के भारत को एक नया संसद भवन मिले। इसी कड़ी में ये शुभारंभ हो रहा है। संसद के शक्तिशाली इतिहास के साथ ही यर्थाथ को स्वीकारना उतना ही आवश्यक है। यह इमारत अब करीब सौ साल की हो रही है। बीते वर्षों में इसे जरूरत के हिसाब से अपग्रेड किया गया। कई नए सुधारों के बाद संसद का ये भवन अब विश्राम मांग रहा था। मोदी सरकार ने नेशनल वॉर मेमोरियल नया स्वरूप दिया। संसद का नया भवन अपनी पहचान स्थापित करेगा। मोदी ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियां नए संसद भवन को देखकर गर्व करेंगी। यह भवन स्वतंत्र भारत में बना है। आजादी के पचहत्तर वर्ष का स्मरण करके इसका निर्माण हो रहा है। वर्तमान भवन की अपनी सीमाएं हैं जिसकी वजह से इसमे बदलाव नहीं किया जा सकता है। इसमे आधुनिक निर्माण नहीं किए जा सकते हैं। इसमें सुरक्षा, आधुनिक तकनीक, भूकंपरोधी जैसे अहम मानकों की कमी है जिसकी वजह से नई बिल्डिंग के निर्माण की जरूरत महसूस की गई।
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