झारखंड की सांस्कृतिक विरासत

झारखंड की सांस्कृतिक विरासत

सत्येन्द्र कुमार पाठक
झारखंड राज्य का रांची जिले के धुर्वा क्षेत्र में जगन्नाथपुर स्थित भगवान जगन्नाथ को समर्पित जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 1691 में बरकागढ़ के नागवंशीय राजा जगन्नाथपुर ठाकुर अनी नाथ शाहदेव द्वारा कराया गया था ।झारखंड की राजधानी रांची से 10 कि. मि.की दूरी पर पहाड़ी की श्रृंखला पर जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 25 दिसंबर, 1691 को पूर्ण हुआ था । भौगोलिक निर्देशांक 23°19′1″N 85°16′54″E पर स्थित जगन्नाथपुर उड़ीसा शिल्पकला में निर्माण
अनी नाथ शाहदेव ने 1691 ई. में पूर्ण किया था । रांची के जगन्नाथ मंदिर की उन्नीसवीं सदी में ओडिशा के पुरी में प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के समान , यह मंदिर उसी स्थापत्य शैली में बनाया गया है, हालांकि छोटा, और पुरी में रथ यात्रा के समान, इस मंदिर में आषाढ़ के महीने में एक वार्षिक मेला सह रथ यात्रा आयोजित की जाती है , हजारों आदिवासी और गैर-आदिवासी भक्तों को आकर्षित करना [3] न केवल रांची से बल्कि पड़ोसी गांवों और कस्बों से भी और बहुत धूमधाम और जोश के साथ मनाया जाता है। एक पहाड़ी की चोटी पर निर्मित, आगंतुक ज्यादातर सीढ़ियों पर चढ़ते हैं या वाहन लेते हैं। वर्ष 1691 में मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा मंदिर को अपवित्र और तोड़ दिया गया था। जगन्नाथ मंदिर 6 अगस्त 1990 को ढह गया और 8 फरवरी 1992 को इसका पुनर्निर्माण किया गया। नागवंशी राजा ने मानवीय मूल्यों की जगन्नाथ मंदिर स्थापना कर समाज को जोड़ने के लिए प्रत्येक वर्ग के लोगों को जिम्मेदारी दी गयी थी । उरांव परिवार को मंदिर की घंटी देने और तेल व भोग के लिए सामग्री देने की जिम्मेदारी दी गयी.। 1691 में बड़कागढ़ में नागवंशी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने रांची में धुर्वा के पास भगवान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था । राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव के नौकर भगवान का भक्त और कई दिनों तक भगवान जगन्नाथ की उपासना करने के दौरान रात्रि में भूख से व्याकुल हो उठा था । मन ही मन प्रार्थना की कि भगवान भूख मिटाइये । उसी रात भगवान जगन्नाथ ने रूप बदल कर अपनी भोगवाली थाली में खाना लाकर राजा के नौकर को खिलाया था ।भगवान जगन्नाथ भक्त नौकर ने पूरी आपबीती राजा ठाकुर को सुनायी थी । उसी रात भगवान ने राजा ठाकुर को स्वप्न में कहा कि यहां से लौटकर मेरे विग्रह की स्थापना कर पूजा-अर्चना करो । जगन्नाथ पुरी से लौटने के बाद एनीनाथ ने पुरी मंदिर की तर्ज पर जगन्नाथ पुर में मंदिर की स्थापना की है । जगन्नाथपुर के राजा द्वारा भगवान जगन्नाथ मंदिर पर मुंडा परिवार को झंडा फहराने, पगड़ी देने और वार्षिक पूजा की व्यवस्था , रजवार और अहीर के लोगों को भगवान जगन्नाथ को मुख्य मंदिर से गर्भगृह तक ले जाने , बढ़ई परिवार को रंग-रोगन की जिम्मेवारी , लोहरा परिवार रथ की मम्मत करने एवं कुम्हार परिवार मिट्टी के बरतन की व्यवस्था करने का भार दिया थ ।भगवान जगन्नाथ के याद में निकाली जाने वाली 'जगन्नाथ रथ यात्रा भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। झारखंड राज्य के तटवर्ती जगन्नाथपुर में जगन्नाथ मंदिर 'जगत के स्वामी जगन्नाथ' है। जगन्नाथ मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरम्भ होती है और शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को समाप्त होती है। रथ यात्रा के उत्सव की शुरुआत ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण रथों को खींचते है । रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। तीनों के रथ को खींचकर मौसी के घर यानी कि मौसी वाड़ी मंदिर लाया जाता है । बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' का रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या 'पद्म रथ' काले या नीले और लाल रंग एवं भगवान जगन्नाथ के रथ को 'नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' रंग लाल और पीला होता है। रथ यात्रा का रथ खींचने से इंसान के सारे पापों का खात्मा होता है और उसे 100 जन्मों के पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सनातन धर्म संस्कृति में झारखंड राज्य में शैव , शाक्त , सौर , वैष्णव , बौद्ध एवं जैन धार्मिकता के प्राचीन अवशेष हैं। छोटानागपुर के पठारों पर शैव धर्म के उपासकों का शिवलिंगों बौद्ध एवं जैन धर्म से जुड़े प्राचीन स्थलों में हजारों वर्षों की पुराने मेंगालिथ हैं। झारखंड के क्षेत्रों में शैल चित्रा और गुफा चित्र हजारीबाग-पलामू , लोहरदगा, गुमला, पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम है। हजारीबाग के इस्को एवं गुमला का कोजेन्गा में रॉक पेंटिंग , पलामू के लिखलाही पहाड़ की गुफा में शैल चित्र का निर्माण ,पांच हजार ई. पू. की है। मन्वंतर काल में झारखंड के क्षेत्र असुर , नाग , दैत्य ,दानव राक्षस , मारुत , देव , ऋक्ष संस्कृति के अनुयायी सौर , शैव , शाक्त , वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी थे । ऋग्वेद में कीकट प्रदेश की स्थापना राजा कीकट ने पुर का निर्माण किया है। लोहा , कोयला , हीरे , तांबे , आदि पद्धतियों का अविष्कार किया गया था । रांची, खूंटी, लोहरदगा, हजारीबाग, चाइबासा आदि में असुर , नाग संस्कृति से जुड़ाव था । खूंटी जिले के कुथारटोली, कुंजला, सारीदकेल, कठारटोली एवं हांसा को संरक्षित स्मारक है। सारीदकेल करीब पचास एकड़ क्षेत्र तजना नदी के तट में अवशेष मिलते रहते हैं। 1915 में खूंटी के बेलवादाग में पुरातत्वविद शरत चंद्र रॉय ने 1915 में उत्खनन की थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा खुदाई मे मनके, चूडियां, चाकू, भाला, मकानों के अवशेष, मृदभांड आदि प्राप्त हैं। खूंटी से पश्चिम कुंजल का तीन एकड़ , रांची से दक्षिण चाइबासा रोड पर कथारटोली में चैबीस एकड़ की खुदाई में तांबे की चूडियां मिली हैं । जो पटना संग्रहालय में रखी हैं। खूंटी टोला भी तीन एकड़ में है। कोटरी नदी के किनारे खूंटी टोला के तीन एकड़ के गढ़ , राँची के हंसा गढ़ का उत्खनन के दौरान मिट्टी के दीये, चूडि़यां, घंटी, अंगूठी आदि प्राप्त हैं। 1944 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक ने हंसा खोज के दौरान ईंटों से बनाए गए मकान का अवशेष मिले थे । हैं। पलामू के हुसैनाबाद प्रखंड के पंसा व सहराविरा गांव में दो स्तूप बौद्धकालीन मूर्तियां व उनके अवशेष हैं । स्तूप मिट्टी से निर्मित की परिधि 15 मीटर और ऊंचाई आठ मीटर में स्तूप के ऊपर ईंटों का इस्तेमाल कर 10 गुणा 7 गुणा तीन है । सात गुणा पांच गुणा तीन तथा लाल रंग के मृदभांड हैं। गांव वाले इस स्तूप पर धान निकालते या ओसावन करते हैं।सहारविरा गांव का स्तूप पंसा गांव से 5 किमी दूरी पर स्तूप की ऊंचाई तीन मीटर और परिधि आठ मीटर में पके ईंटों से निर्मित है। स्तूप के बीच में पत्थर स्तम्भ के ऊपरी हिस्से पर बौद्ध की आकृति है। स्तंभ स्तूप 6वीं-7वीं शताब्दी का है। लोहरदगा जिले के खखपरता गांव से मां दुर्गा और भगवान विष्णु की प्राचीन मूर्तियां 7वीं से 8वीं सदी की हैं। दोनों मूर्तियां बलुआ पत्थर से निर्मित हैं। खखपरता में नागर शैली के भवन निर्माण कला है। शिव मंदिर चट्टान के ऊपर बनाया गया है। मंदिर की प्रवेश द्वार पूरब दिशा में है । मंदिर के उत्तरी दिशा में आठ मंदिरों का समूह है। पश्चिमी सिंहभूम के मझगांव प्रखंड में बेनी सागर या बेणु सागर में ऐतिहासिक, धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल पर दस हजार साल पुराने अवशेष मिले हैं। बेनीसागर के उत्खनन में शिव मंदिर, पंचायतन मंदिर, 35 से अधिक शिवलिंग, सूर्य, भैरव, लकुलिस, अग्नि, कुबेर, गणेश, महिषासुरमर्दिनी एवं द्वारपाल की मूर्तियां हैं। लोहे की चूडि़यां, अंगूठी, तीर, भाला, चाकू, मिट्टी के मनके आदि भी प्राप्त हुए हैं। बेनुसागर स्थान पांचवीं सदी ईसा से लेकर सोलहवीं-सत्राहवीं शताब्दी तक विकसित था ।देवघर के बाबा बैजनाथ, वासुकीनाथ , रांची पहाड़ी पर पहाड़ी बाबा एवं नाग गुफा एवं सरायकेला जगन्नाथ मंदिर, गढ़वा का वंशीधर, गुमला का टांगीनाथ, रांची जिले की सोलहभुजी मां दुर्गा का देउड़ी मंदिर, महामाया, चतरा की मां भद्रकाली, पारसनाथ का जैन तीर्थ, पहाड़ी मंदिर, रामगढ़ का रजरप्पा व कैथा, दुमका का बासुकीनाथ व मालूटी आदि मंदिर प्राचीन है।रांची शहर में बोड़ेया ग्राम मोरहाबादी स्थित टैगोर हिल से तीन किलोमीटर उत्तर मदन मोहन मंदिर का निर्माण नागवंशी शासक रघुनाथ शाह द्वारा 1665 में कराया गया था। पूरबमुखी मंदिर का सिंह द्वार उत्तर दिशा में निर्माणकर्ता शिल्पकार अनिरुद्ध है। राधा-कृष्ण मंदिर स्थापत्य कला के गर्भ-गृह एवं भोग मंडप है। रांची-कांके मार्ग पर रांची से 16 किलोमीटर उत्तर की ओर पिठोरिया का प्रस्तर मंदिर 150 वर्ष प्राचीन है । पिठोरिया मंदिर 40 फीट ऊंचाई का प्रस्तर मंदिर एशलर में सोनरी तकनीक से बना है। पिठोरिया मंदिर के गर्भ गृह में शिव-पार्वती, राम-सीता-लक्ष्मण और हनुमान की मूर्तियां स्थापित हैं। पूर्वी सिंहभूम जिले में घाटशिला प्रखंड के महुलिया ग्राम में रंकिनी देवी मंन्दिर है। रंकनी मंदिर में स्थापित देवी अष्टभुजी है । माता रंकनी के ऊपर के दो हाथों में ΄हाथी, एक दाएं हाथ में डाकिनी एवं बाएं हाथ में जोगिनी तथा अन्य चार हाथों में ढाल-तलवार आदि अस्त्रा-शस्त्रा है। रेखा देवल शैली में निर्मित रंकनी मंदिर का निर्माण काल स्थापत्य शैली के आधार पर 14वीं-15वीं शताब्दी है। हजारीबाग जिले के कैथा मंदिर के भग्नावशेष रामगढ़-बोकारो मार्ग पर रामगढ़ से ठीक तीन किमी की दूरी पर मुख्य सड़क की बाईं ओर स्थित कीकट शैली के 12-14 मंदिर रामगढ़ के क्षेत्र में निर्मित थे । टाटी झरिया गांव में कीकट शैली का मंदिर स्थित है।पंश्चिमी सिंहभूम के चाइबासा के समीप ईचाक स्थित सप्तचूड़ा का राम मंदिर , देवल शैली में निर्मित है। पंचायतन मंदिर का निर्माण 1803 में स्थानीय शासक दामोदर सिंह देव ने कराया था।
गुमला जिला मुख्यालय से उत्तर-पश्चिम दिशा में डुमरी प्रखंड के मझगांव गांव में टांगीनाथ मंदिर के अवशेष स्थित हैं। यह स्थल पुरातात्विक दृष्टिकोण से राज्य के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। एक छोटी सी पहाड़ी पर ईंट निर्मित इर्द-गिर्द सैकड़ों प्राचीन प्रस्तर मूर्तियां एवं शिवलिंग, उमा-महेश्वर, महिष-मर्दिनी, सूर्य, गणेश एवं विष्णु की मूर्ति है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर स्थल पर प्राचीन प्रस्तर स्तंभ , लौह त्रिशूल भी भग्न है। गुप्तकालीन स्तम्भ अभिलेख 8 सौ वर्ष पुरानी है । तेलियागढ़ का किला , पलामू किला , कुंडा किला ,नवरतनगढ़ के किले को हंपी सौ एकड़ में फैला हुआ है। भगवान बुद्ध का पलामू में मूर्तियां एवं स्तूप , लातेहार जिले का बालूमाथ बौद्ध मठ , धनबाद क्षेत्रा में दालमी तथा बारहमसिया गांवों के बीच लाथोनटोंगरी पहाड़ी पर 20 वीं शती के बौद्ध अवशेष , पुरुलिया के निकट कर्रा व घोलमारा में बौद्ध खंडहर हैं। रांची-मूरी मार्ग पर गौतमधारा पर बुद्ध की प्रतिमा स्थापित , चतरा जिले का ईटखोरी में तीन बौद्ध स्तूप हैं। चतरा के कौलेश्वरी पहाड़ पर बौद्ध और जैन धर्म की प्रतिमाएं हैं। कौलेश्वरी पहाड़ पर हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के दसवें जैन तीर्थंकर शीतलनाथ का जन्मस्थल है। डिस्ट्रिक्ट गजेटियर आफ हजारीबाग 1957 के अनुसार जिनसेन ने तपस्या की थी। जैन धर्मावलंबी कौलेश्वरी देवी मंदिर , राम अपने वनवास काल मे भ्राता लक्षमण एवं धर्मपत्नी सीता के साथ रहे थे । जैन धर्म के पारसनाथ हिल तो जैन धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। श्री सम्मेमें द शिखरजी के पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया। सम्मेमें द शिखर की उत्तरी तलहटी पर प्रकृति की गोद पर मंदिरों की नगरी मधुवन में घुमावदार रास्ते, पहाड़ों की सुंदरता आंखों को सुकून देती है। मानभूम जैनियों का गढ़ में पाकबीरा, पवनपुर, पलमा, चर्रा तथा गोलमारा में मंदिर में अनेक मूर्तियां स्थापित थीं। बलरामपुर, करा, कतरास में जैनियों के खंडहर , तेलकुप्पी में जैन संस्कृति का विशिष्ट केंद्र था। सिंहभूम के सरक जैन श्रावक थे। हो जातियों का स्थल था । दुमका से पूरब 55 किमी दूर शिकारीपाड़ा प्रखंड में मंदिरों का गांव मालूटी में 108 शिवलिंग एवं 75 से 80 मंदिर स्पतंत्रा साधना का बड़ा केंद्र था। गुमला जिले के गुमला से 18 कि.मी. दूर आंजन गांव के माता अंजनी के पुत्र हनुमान जी चार किमी की दूरी पर अंजनी गुफा में जन्म हुआ था । अंजनी गुफा में माता अंजनी के गोद में हनुमान जी की प्रतिमा हैं।झारखंड राज्य के क्षेत्रों के झरनों में रांची से लगभग 28 किमी की दूरी पर हुंडरू झरना के 320 फिट की ऊँचाई से गिरती हुई जलप्रपात से स्वर्णरेखा नदी प्रवाहित होती है । राँची से 40 कि .मि. की दूरी पर ताइमारा ग्राम के समीप दसम घाघ जलप्रपात 144 फीट ऊँचाई से जलप्रपात से कांची नदी प्रवाहित है । जोन्हा ग्राम का जोन्हा फौल के समीप जोन्हा नदी में भगवान बुद्ध ने स्नान कि था। गिरिडीह के समीप हिरणी फौल रांची से 75 किमी की दूरी पर स्थित है। रामगढ़ जिले का रजरप्पा फौल रजरप्पा क्षिणनमस्तिके मंदिर के कारण भी प्रसिद्ध है। मंदिर के पास के नदी में बोटिंग भी किया जाता है। रजरप्पा में भैरवी और दामोदर नदी संगम है। झारखंड के डैम (जलाशय ) में मसानजोर डैम - झारखंड के दुमका जिले में स्थित मयूराक्षी नदी के तट पर मसानजोर जलासय है। मसानजोर की ऊंचाई 47.25 मी और लंबाई 661.58 मी . एवं 67.4 वर्ग किमी में फैला हुआ है। मसानजोर जलासय को कनाडा डैम के नाम से जानते हैं। मैथन डैम - धनबाद जिले से 48 किमी दूर पर स्थित मैथन डैम की ऊंचाई 165 फीट और लंबाई 15,712 फीट मापी गई है । मैथन डैम बराकर नदी के तट पर स्थित मैथन डैम है। तिलैया डैम - कोडरमा जिले में बराकर नदी पर स्थित तिलैया डैम की ऊंचाई लगभग 99 फीट और लंबाई 1201 फीट है । पतरातु डैम - रांची से 40 किमी की दूरी पर स्थित पतरातु डैम को नलकरी के जल संरक्षण से बनाया गया है । सूर्यास्त के समय का वो दृश्य सभी का में मोह लेता है ।कांके डैम - रांची जिले का गोंदा हिल्स की निचले भाग में स्थित कांके डैम शाम के वक्त की दृश्य काफी मनमोहक होती है । सूर्य की लालिमा पूरे बादल को लाल कर देती है जो कि काफी आकर्षित होता है । कोनार डैम - हजारीबाग जिले के कोनार नदी पर स्थित कोनार डैम की ऊंचाई लगभग 160 फीट और लंबाई 14,879 फीट है । केलाघाघ डैम - सिमडेगा जिले के सिमडेगा से 4 कि . मि. की दूरी पर छिंद नदी पर स्थित कैलाघाघ डैम है । पलना डैम - सरायकेला जिले में चंडिल के पास स्थित स्वर्णरेखा नदी के तट पर पलना डैम स्थित है । पञ्चेत डैम - धनबाद जिले के दामोदर नदी पर बने पंचेत डैम की ऊंचाई 147 फीट और लंबाई 22,234 फीट है । रो – रो डैम - पश्चिमी सिंहभूम जिले के रोरो पर बने रो - रो डैम के समीप रो – रो की पहाड़ियां अवस्थित हैं । जमशेदपुर का डिमना डैम , राँची जिले के धुर्वा में धुर्वा डैम पर्यटकों के लिए आकर्षक का केंद्र है । औद्योगिक क्षेत्र में हटिया , जमशेदपुर , बोकारो , है । झारखंड में अबरख , कोयला , अनेक खनिज संपदा से परिपूर्ण है ।
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