नयी ‘भागवत’ गीता

नयी ‘भागवत’ गीता

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

यह बात महाभारत के नायक अर्जुन की भी समझ में नहीं आयी थी कि यहां सभी तो अपने हैं, फिर युद्ध किसलिए किया जाए? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर ऐसी ही बात कही है। मोहन भागवत कहते हैं कि क्या हम विश्व विजेता बनना चाहते हैं? वे स्वयं इसका जवाब भी देते हैं कि नहीं, हमारी ऐसी कोई आकांक्षा नहीं है। हमें किसी को जीतना नहीं है, हमें सबको जोड़ना है। संघ भी सबको जोड़ने का काम करता है, जीतने के लिए नहीं। भागवत साफ-साफ कहते हैं कि संघ किसी भी तरह की पूजा पद्धति के खिलाफ नहीं है। मुसलमानों को लेकर वे कहते हैं कि उन्होंने (मुस्लिमों ने) उस तरह की पूजा पद्धति को अपना लिया है लेकिन वे भी हमारे ऋषियों, मुनियों और क्षत्रियों की संतानें हैं। हमारे पूर्वज भी वही हैं। इसी के साथ भागवत कहते हैं कि हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश क्यों? जाहिर है कि यह प्रतिक्रिया ज्ञानवापी को लेकर ही है लेकिन वे जब कहते हैं कि जहां हिन्दुओं की भक्ति है, वहां मुद्दे उठाए गये। हिन्दू कभी भी मुसलमानों के खिलाफ नहीं सोचते हैं क्योंकि मुसलमानों के पूर्वज भी हिन्दू थे लेकिन हमलावरों के जरिए इस्लाम बाहर से आया था। उन हमलों में हिन्दुओं का मनोबल गिराने के लिए देवस्थानों को तोड़ दिया, इसलिए हिन्दुओं को लगता है कि धार्मिक स्थल को पुनस्र्थापित किया जाना चाहिए। भागवत ‘गीता’ का यह ज्ञान गूढ़ है लेकन समझ में आ रहा है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने पिछले दिनों बहुत बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि अब ज्ञानवापी के मुद्दे पर कोई आंदोलन नहीं होगा। नागपुर में संघ के अधिकारियों के प्रशिक्षण शिविर को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि ज्ञानवापी का मुद्दा लाखों हिंदुओं की आस्था से जुड़ा है, लेकिन इस पर कोई आंदोलन नहीं होगा। भागवत ने कहा, ‘अब ज्ञानवापी का मामला अदालत में है। हम इतिहास को नहीं बदल सकते। वह इतिहास हमारे द्वारा नहीं बनाया गया और न ही आज के हिंदुओं और मुसलमानों द्वारा बनाया गया। यह उस समय हुआ, जब इस्लाम आक्रांताओं के साथ भारत आया। आरएसएस ने अयोध्या राम जन्मभूमि मुद्दे को कुछ ऐतिहासिक कारणों से हाथ में लिया था, और वह संकल्प पूरा हो गया है। यह पहले ही कह दिया गया है कि हमारा संगठन किसी नए आंदोलन का हिस्सा नहीं होगा। हर दिन नए मुद्दे उठाना ठीक नहीं है। हर मस्जिद में शिवलिंग खोजने की जरूरत नहीं है। ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मुद्दा हिंदुओं और मुसलमानों को मिल-बैठकर सुलझा लेना चाहिए। अगर कोर्ट की तरफ से कोई फैसला आता है तो उसे दोनों पक्षों को मानना चाहिए।’

पूरे भारत में धार्मिक स्थलों के बारे में नए-नए दावों और जवाबी दावों पर संघ प्रमुख कहते हैं, ‘आक्रांताओं ने हिंदुओं के मनोबल को गिराने और धर्मांतरण करने वाले नए मुसलमानों के बीच एक धारणा बनाने के लिए मंदिरों को तोड़ा था। इतिहास में हुई इन घटनाओं को अब न तो हिंदू बदल सकते हैं और न ही मुसलमान।’ भागवत ने कहा कि मुसलमान ‘हिंदुओं और यहां तक कि क्षत्रियों के ऐसे वंशज हैं जिन्होंने दूसरा धर्म अपना लिया। हिंदुओं को यह समझना चाहिए कि मुसलमान उनके अपने पूर्वजों के वंशज हैं। वे मुसलमान केवल इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने अपना धर्म बदल दिया। अगर वे वापस आना चाहते हैं तो उनका खुली बाहों से स्वागत करेंगे। अगर वे वापस नहीं आना चाहते, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

साख्य दर्शन बताते हुए भागवत ने कहा, ‘धैर्य बनाए रखने की जिम्मेदारी हिंदुओं और मुसलमानों दोनों की है। दोनों तरफ से डराने- धमकाने की बात नहीं होनी चाहिए। हालांकि, हिंदू पक्ष की ओर से ऐसा कम है। हिंदुओं ने सदियों तक बहुत धैर्य रखा है। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन हिंदुओं को यह भी समझना चाहिए कि न तो उन्हें किसी से डरना चाहिए और न ही दूसरों को डराना चाहिए। हम भाईचारे में विश्वास रखते हैं। हम चाहते हैं कि भारत विश्वगुरु बने लेकिन ऐसे लोग हैं जो जाति, भाषा, धर्म के बीज बोकर हमें आपस में लड़ाना चाहते हैं। हमें सजग रहना चाहिए।’

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जो कहा वह देश की सियासत की दिशा बदलने वाली बात है। यह उन लोगों को जवाब है जो कहते हैं कि अब वह दिन दूर नहीं जब हर मस्जिद को मंदिर बताया जाएगा, मुसलमानों से 30,000 मस्जिदें छीनी जाएंगी। असदुद्दीन ओवैसी हों, अबू आजमी हों, महबूबा मुफ्ती हों, उमर अब्दुल्ला हों या फारूक अब्दुल्ला हों, ये सारे लोग लगातार हिंदू-मुसलमान के मुद्दे पर बयान दे रहे हैं। मथुरा में ईदगाह और ज्ञानवापी का मुद्दा ये जानबूझकर राजनीतिक कारणों से उठा रहे हैं, और यह मुसलमानों को दबाने का एक गेमप्लान है। वे बीजेपी और संघ पर आरोप लगा रहे हैं कि ये मिलकर मुसलमानों को परेशान कर रहे हैं, देश में माहौल खराब कर रहे हैं। मोहन भागवत का भाषण इसका जवाब है।

भागवत कहते हैं कि भारत में रहने वाले मुसलमान भी हमारे भाई हैं, उनके पूर्वज भी हिंदू हैं, सिर्फ पूजा पद्धति अलग हो गई है। भागवत ने हिंदुओं से साफ कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढने की कोशिश करना ठीक नहीं है। भागवत की बातें ओवैसी और महबूबा मुफ्ती की बातों के लहजे से बिल्कुल अलग हैं। भागवत ने कहा, हमने 9 नवंबर को कह दिया था कि एक राम जन्मभूमि का आंदोलन था जिसमें हम अपनी प्रकृति के विरुद्ध कुछ ऐतिहासिक कारणों से सम्मिलित हुए। वह कार्य पूरा हुआ, अब हमें कोई आंदोलन नहीं करना है। मन में कोई मुद्दे हों तो उठ जाते हैं। यह किसी के खिलाफ नहीं है। इसे ऐसा नहीं माना जाना चाहिए। मुसलमानों को ऐसा नहीं मानना चाहिए और हिंदुओं को भी ऐसा नहीं करना चाहिए। कुछ ऐसा है तो आपसी सहमति से रास्ता खोजें। लेकिन, हर बार रास्ता नहीं निकल सकता, जिसके कारण लोग अदालत जाते हैं। अगर ऐसा किया जाता है तो अदालत जो भी फैसला करे उसे स्वीकार करना चाहिए। हमें अपनी न्यायिक प्रणाली को पवित्र और सर्वोच्च मानते हुए फैसलों का पालन करना चाहिए। हमें इसके फैसलों पर सवाल नहीं उठाना चाहिए। आरएसएस चीफ ने कहा कि कुछ जगहों के प्रति हमारी अलग भक्ति थी और हमने उसके बारे में बात की लेकिन हमें रोजाना एक नया मुद्दा नहीं लाना चाहिए। हमें विवाद को क्यों बढ़ाना? ज्ञानवापी के प्रति हमारी भक्ति है और उसी के अनुसार कुछ करना ठीक है। भागवत की गीता को ध्यान से पढ़िए तभी समझ में आएगा।
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