ईसाई मज़हब का अस्तित्व खतरे में है...

ईसाई मज़हब का अस्तित्व खतरे में है...

  • यूरोप और अमेरिका में चर्च सुनसान पड़े हैं
  • अफ्रीका और एशिया से उम्मीद ईसाई जनसंख्या वृद्धि की
  • धर्मपरिवर्तन में लगे NGOs को मोदीजी का गहरा झटका

25 दिसंबर, “ईसा मसीह” के जन्मदिन को ईसाइयों के सबसे बड़े त्यौहार “क्रिसमस” के रूप में मनाया जायेगा| अधिक नहीं दो सौ ढाई सौ साल ही हुए हैं जब जहाँ दृष्टि पड़ गयी उस धरती को अपनी बपौती समझने वाले यूरोप के छोटे छोटे देशों – स्पेन, पुर्तगाल, फ्रांस, नीदरलैंड्स, इटली और इंग्लैंड ने ईसाइयत को पूरी दुनिया में फैला दिया| इन देशों ने न सिर्फ अपनी सैन्यशक्ति से पूरी दुनिया को गुलाम बना लिया बल्कि उन देशों की संस्कृतियों और वहाँ के धर्मों को भी नष्ट करने की कोशिश करते हुए ईसाइयत को या तो प्रलोभन देकर या जबरन या धोखाधड़ी से थोपने की कोशिश की| पुर्तगाल से निर्वासित अपराधियों से भरा जहाज लेकर आया वास्कोडीगामा कालीकट के महाराजा के सामने झूठ बोलकर अपने को व्यापारी की बजाये राजदूत बताता है, सिफलिस जैसी बीमारी को फैलाता है और गोआ में स्थानीय लोगों को दवाई देकर इसे ईश्वर का भय एवं छद्म चमत्कार दिखाकर लोगों को ईसाई बनाता है| उसके इस दुष्कृत्य को उन पश्चिमी देशों द्वारा उस “भारतवर्ष” की खोज बताया जाता है जहाँ हजारों साल की प्राचीन और महान संस्कृति, कला, वास्तु, साहित्य, संगीत का बर्चस्व तब से था जब यूरोप में सभ्यता की शुरुआत भी नहीं हुई थी|
मैं लगभग दो तीन वर्षों से ये लेख लिखना चाहता था| मुझे, अतुल मालवीय को, किसी मजहब विशेष के प्रति कोई निजी दुराग्रह नहीं परन्तु अपनी महान सनातन संस्कृति पर गर्व है जो इतने झंझावातों के बीच भी जीवित रही और आगे भी इसकी पताका ऊँची फहराती रहेगी । इस लेख के माध्यम से मैं प्रामाणिक रूप से साबित कर दूँगा कि वृहत्तर भारत में छल कपट, भय, धोखाधड़ी, छद्मसेवा और प्रलोभन से धर्मपरिवर्तन कराने वाले ईसाई मजहब का अगले पचास वर्षों में पतन अवश्यम्भावी है| विश्व में इसका नाम लेने वाले भी गिनती के बचेंगे|
खैर,आते हैं वर्तमान में| हालाँकि जनसंख्या के आँकड़ों को देखा जाए तो आज भी दुनिया का सबसे बड़ा मजहब ईसाईयत ही है परंतु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पूरी दुनिया के ईसाई संस्थानों में, वैटिकन में हडकंप मचा हुआ है| कारण, 1. दुनिया में तेज़ी से घटती ईसाई आबादी और 2. दुनियाभर में फैले भायें भायें करते लाखों गिरिजाघरों का सूनापन| आज से मात्र पचास साठ सालों पूर्व तक जहाँ रविवासरीय प्रार्थनाओं में चर्च खचाखच भरे रहते थे आज वे न सिर्फ धर्मावलंबियों की बाट जोहते उजाड़ पड़े हुए हैं बल्कि उनमें से हज़ारों या तो बंद होकर “सुपर बाज़ारों” “मॉल”, आवासीय या व्यावसायिक कॉम्प्लेक्सों में परिवर्तित हो चुके हैं या ऐसा होने की कगार पर हैं| आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सिर्फ “अमेरिका” में हर साल छः हज़ार से दस हज़ार चर्च बंद हो जाते हैं और प्रतिवर्ष ये संख्या और भी बढ़ रही है| कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी और बाकी यूरोप में भी हालात ऐसे ही या इससे भी बदतर हैं| नई जनरेशन और युवा चर्च की तरफ झांकते तक नहीं| परिणामस्वरूप, चर्चों को मिलने वाले चंदों और दान में इतनी कमी आ गयी है कि अधिकांश को अपने स्टाफ को वेतन देना और विशालकाय भवनों को मेन्टेन करना असंभव हो रहा है|
याद रहे कि अमेरिका सहित अधिकांश पश्चिमी देशों में आधिकारिक आँकड़े ईसाइयत की दृष्टि से बड़े भयावह हैं| और जानते हैं ईसाइयत को सबसे अधिक ख़तरा किस से है? इस्लाम, बौद्धधर्म या हिंदुओं से नहीं,बल्कि स्वयं इनके अंदर ही बढ़ रहे “नास्तिकों” या “कोई धर्म नहीं” के समुदाय से| आइये, कुछ बड़े ईसाई कहे जाने वाले देशों के आंकड़ों पर एक नज़र डालें:
1. ऑस्ट्रेलिया - जिसे संपूर्ण ईसाई देश और इंग्लैंड की बसाई कॉलोनी माना जाता था, में 2016 में 30% जनसंख्या ने घोषित किया कि वे किसी धर्म का पालन नहीं करते| ये स्थिति और भयावह हो जायेगी जब 13 से 18 वर्ष के बीच की आयु के वे टीनएजर्स बड़े हो जायेंगे जिनमें से 52% ने 2017 में हुए एक विशाल सर्वे में खुलासा किया कि वे किसी मजहब में विश्वास नहीं करते|
2. कनाडा – गत वर्षों में 500 से अधिक चर्चों को अनुयायियों की अनुपस्थिति के कारण बंद करना पड़ा| सन 1950 में जहाँ देश की 95% जनसंख्या चर्चों में नियमित जाती थी वहीं आज बाजी एकदम पलटकर यह जनसंख्या मात्र 5% पर आ चुकी है|
3. नीदरलैंड – 1971 में जहाँ लगभग 97% जनसंख्या मिलकर ईसाइयत के विभिन्न समुदायों को मानती थी, 2015 की जनगणना में सिर्फ 43.8% लोगों ने अपने को “क्रिस्चियन” बताया| आधे से अधिक अर्थात 50.1% लोगों ने बताया कि “वे कोई धर्म नहीं मानते”| लगभग 5% जनसंख्या ने अपने को “मुस्लिम” बताया|
4. स्पेन और इटली – 1970 में लगभग शत प्रतिशत जनसंख्या वाले इन देशों में अब मात्र क्रमशः 68% और 83% लोग ही अपने को ईसाई मानते हैं|
5. ग्रेट ब्रिटेन – आज से मात्र 75 वर्ष पूर्व तक पूरी दुनिया में अपना परचम फहराने वाले इस देश में चर्च अटेंड करने वालों की संख्या मात्र 4.3% बची है| 2011 की जनगणना के अनुसार सिर्फ 60% लोग अपने को ईसाई मानते हैं जबकि 30% लोग कहते हैं कि उनका “कोई धर्म नहीं”|
6. संयुक्त राज्य अमेरिका – समस्त विश्व को अपने अंगूठे तले मानने वाले इस सबसे ताकतवर मुल्क में तो स्थिति और भी खराब है – ईसाई जनसंख्या इतनी तीव्रगति से घट रही है कि यह 2016 से 2019 के बीच तीन वर्षों में ही 73.7% से घटकर 65% आ गयी, जबकि 26% लोगों ने “कोई धर्म नहीं” घोषित किया| गत 15 वर्षों में ही जहाँ चर्च आने वालों की संख्या 40% घट गयी वहीं 10.2% चर्च बंद हो गये|
उक्त उदाहरण चंद बड़े तथाकथित ईसाई देशों के हैं| कुछ दशकों से घटती ईसाइयत से चिंतित “वैटिकन” ने अपना ध्यान एशिया और अफ्रीका पर केंद्रित किया जिससे वहाँ धर्मपरिवर्तन को और तेज़ कर पश्चिम में घटती संख्या की पूर्ति की जा सके| अफ्रीका में मध्य अफ्रीका से एक विभाजन जैसा है – ऊपर अर्थात उत्तर में जहाँ इस्लाम का बर्चस्व है वहीं नीचे अर्थात दक्षिण की ओर ईसाइयत का| उत्तर में मिस्र और वहाँ से लगे ईसा मसीह की जन्मस्थली "बेथेलहम" और यरूशलम के चारों ओर का क्षेत्र पूर्णतया ईसाइयत से मुक्त है| अरब देशों पर इस्लाम का कब्जा है|
भारत से “वैटिकन” को कुछ वर्षों पूर्व तक ईसाई जनसंख्या में वृद्धि के योगदान में बड़ी उम्मीद थी परंतु नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद 2016 और 2018 फिर 2020 में महत्वपूर्ण बदलाव किये| फ़ॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) अमेंडमेंट 2020 यानी FCRA बिल को पास किया गया, नए बिल में अब ग़ैर-सरकारी संस्थाओं यानी “एनजीओ” के प्रशासनिक कार्यों में 50 फ़ीसद विदेशी फ़ंड की जगह बस 20 फ़ीसद फ़ंड ही इस्तेमाल हो सकेगा, यानी इसमें 30% की कटौती कर दी गई है| अब एक एनजीओ मिलने वाले ग्रांट को अन्य एनजीओ से शेयर भी नहीं कर सकेगी और एनजीओ को मिलने वाले विदेशी फ़ंड स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, नई दिल्ली की ब्रांच में ही रिसीव किए जाएंगे| इससे उन संस्थाओं पर पैनी नज़र रखे जाने में सहायता मिली जो चर्च चलाने की आड़ में धर्मपरिवर्तन ही नहीं बल्कि हिंसक नक्सली आन्दोलन को भी प्रश्रय दे रही थीं| एक संस्था तो NGO की आड़ में नरेंद्र मोदी की ह्त्या का षड्यंत्र रच रही थी| एक तो वहाँ पश्चिमी देशों में अनुयायियों द्वारा चंदे और दान में भारी कमी और दूसरे यहाँ कड़े प्रतिबंध ने ताबूत में कील का काम किया| परिणामस्वरूप हज़ारों “NGOs” बंद हो गए, धर्मपरिवर्तन में लगी असंख्य मिशनरियों ने अपना बोरिया बिस्तर बाँध लिया और भाग गए|साथियो, अभी तो यह शुरुआत है, मोदीजी के नेतृत्व में न सिर्फ भारत प्रगति करेगा बल्कि इसकी महान संस्कृति का खोया गौरव भी वापिस मिलेगा| काल का पहिया तीव्रगति से घूम रहा है| देखते जाइए|

लेखक - अतुल मालवीय

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