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विपक्ष में कांगे्रस की अप्रासंगिकता

विपक्ष में कांगे्रस की अप्रासंगिकता

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

  • शरद पवार को बनाना चाहते हैं यूपीए का अध्यक्ष
  • विपक्षी दलों के गठबंधन में शामिल हो सकती है शिवसेना

कांग्रेस के लिए इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है जब विपक्ष में उसे अप्रासंगिक बताया जा रहा है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता शरद पवार के बीच बैठक में इसी पर चर्चा हुई है। इससे पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने भी तीसरा मोर्चा बनाने की बात कही थी तब कांग्रेस को किनारे रख दिया था। कांग्रेस आज बाहर ही नहीं अपने घर में भी टूट रही है। असंतुष्टों की जमात बढ़ती जा रही है। नेहरू-गांधी परिवार का वर्चस्व खत्म हो रहा है। लोकसभा में तो कांग्रेस के इतने सांसद भी नहीं बचे हैं जिससे मुख्य विपक्षी दल का दर्जा मिल सकता। राज्यसभा में भी कांग्रेस लगातार संख्याबल खो रही है। इसी वर्ष जून-जुलाई में कांग्रेस के 9 राज्यसभा सदस्य रिटायर हो जाएंगे। पार्टी का भौगोलिक ग्राफ यह है कि 17 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में राज्यसभा में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि ही नहीं रह जाएगा। अभी जो मार्च का महीना खत्म हुआ है, उसके अंत में कांग्रेस के राज्यसभा में 33 सांसद थे। उसकी मदद के लिए झारखण्ड के झामुओं से सांसद और तमिलनाडु से एमके स्टालिन की पार्टी द्रमुक के सांसद सत्तारूढ़ भाजपा का कितना मुकाबला कर पाएंगे, यह श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी को सोचना होगा।

कांग्रेस इस वक्त अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है। हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में जहां उसे शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा, वहीं, राज्य सभा में भी उसका दायरा सिमटता जा रहा है। पार्टी के लिए बुरी खबर ये है कि आने वाले राज्य सभा चुनाव के बाद संसद के ऊपरी सदन में उसके सदस्य और कम हो जाएंगे। कांग्रेस का भौगोलिक ग्राफ भी तेजी से सिमट रहा है। अब 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से राज्य सभा में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि नहीं रह जाएगा। पिछले महीने यानी मार्च के आखिरी में राज्य सभा में कांग्रेस के 33 सांसद थे। एके एंटनी सहित चार सदस्य रिटायर हो चुके हैं जबकि जून और जुलाई में 9 और सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो जाएगा। इसमें पी चिदंबरम, अंबिका सोनी, जयराम रमेश और कपिल सिब्बल भी शामिल हैं। जानकारों का कहना है कि चुनाव के बाद राज्य सभा में कांग्रेस की संख्या ज्यादा से ज्यादा 30 सदस्यों की रह जाएगी। अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि उच्च सदन में कांग्रेस के इतने कम सांसद रहे हों। वैसे, कांग्रेस को उम्मीद है कि तमिलनाडु में 6 सीटों में से डीएमके एक सीट दे देगी। इसके बाद उसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 31 हो जाएगी। हालांकि पार्टी का उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा, दिल्ली और गोवा से कोई भी सांसद नहीं रहेगा। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, 17 राज्यों में कांग्रेस को बड़ा नुकसान होने वाला है। चुनाव के बाद कई बड़े राज्यों से कांग्रेस के राज्य सभा सांसद नहीं रहेंगे। इनमें हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, गोवा, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्क्मि, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा शामिल हैं। पंजाब की सत्ता हाथ से जाने से भी कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ है। इसी तरह, कांग्रेस का हरियाणा, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा से लोकसभा में भी कोई प्रतिनिधि नहीं है।

विपक्षी दलों में अब कांग्रेस को लेकर चर्चा हो रही है। शिवसेना ने जब से बीजेपी का साथ छोड़ कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाराष्ट्र में सरकार बनाई है, तभी से पार्टी पर ये आरोप लगते रहे हैं कि शिवसेना ने अब अपनी विचारधारा को छोड़ दिया है। इन सवालों पर बोलते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा था कि शिवसेना ने अपने हिंदुत्व के रुख को नहीं छोड़ा है। ठाकरे ने आगे कहा कि हम हिंदुत्व के लिए सत्ता चाहते थे, लेकिन भाजपा हिंदुत्व के जरिए सत्ता हासिल करती है, बीजेपी का हिंदुत्व दिखावा है, बीजेपी ने हिंदुत्व की नकली त्वचा पहनी है। उद्धव ने कहा कि जो लोग हमसे पूछते हैं कि क्या हमने हिंदुत्व को छोड़ दिया है तो उसका जवाब ये है कि हमने बीजेपी को छोड़ा है, हिंदुत्व को नहीं। इसी बात पर कांग्रेस से शिवसेना की विचारधारा टकराती है। उद्धव ठाकरे ने कहा था कि मुझे अफसोस इसी बात का है कि हम 25 साल तक एक समय दोस्त थे, हमने उनका पालन-पोषण किया, बदले में हमें कुछ नहीं मिला, इसलिए भाजपा के साथ हमारा गठबंधन पूरी तरह से समय की बर्बादी थी। शिवसेना और बीजेपी लगभग 25-30 साल से एकसाथ थे। केंद्र हो या फिर राज्य हर चुनाव में ये दोनों पार्टियां एक साथ रहती थीं, लेकिन 2 साल पहले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले सीएम चेहरे पर सहमति नहीं बनने के कारण ये गठबंधन टूट गया था। अब शिवसेना विपक्षी दलों के साथ है लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी 2004 से यूपीए की अगुवाई कर रही हैं। कांग्रेस के 2014 में हाथ से सत्ता फिसलने और फिर 2019 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के सामने मिली लगातार दूसरी हार के बाद विपक्ष के खेमे में गांधी परिवार खास तौर पर राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर सवाल उठने लगे हैं। बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत के बाद ममता बनर्जी के राष्ट्रीय भूमिका में आने की संभावना जताई जाने लगी है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव भी विपक्षी दलों को एकजुट करने की कवायद कर रहे हैं लेकिन इन नेताओं का नेतृत्व कांग्रेस शायद स्वीकार नहीं करेगी। ऐसे में शरद पवार को चेहरा बनाने की मांग भी उठती रहती है। कुछ वक्त पहले शिवसेना ने पवार के नेतृत्व की पैरवी की थी। हालांकि खुद पवार अब तक ऐसी बात से इंकार करते रहे हैं। शरद पवार कांग्रेस को विपक्ष का मुखिया बनाना चाहते हैं लेकिन जिस तरह के हालात हैं, उनमें कांग्रेस को विपक्षी दल स्वीकार नहीं कर पाएंगे।
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