भारतीय जन क्रांति दल ने मनाया अपना स्थापना दिवस

भारतीय जन क्रांति दल ने मनाया अपना स्थापना दिवस

आज पटना के केन्द्रीय कार्यालय में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव की अध्यक्षता में पार्टी की स्थापना दिवस का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ | कार्यक्रम में उपस्थित सभी पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं ने भारत माता के चित्र पर पुष्प अर्पित कर एवं दीप प्रज्वलित कर की|
कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय महासचिव डॉ राकेश दत्त मिश्र ने बतायाकि आज नव सृष्टिसंवत् एवं विक्रमी संवत्सर आरम्भ हुआ है। हमारे पास समय की अवधि की जो गणनायें हैं वह दिन, सप्ताह, माह व वर्ष में होती हैं। यदि सृष्टि की उत्पत्ति, मानवोत्पत्ति अथवा वेदोत्पत्ति का काल जानना हो तो वह वर्षों में बताया जाता हैै। वैदिक गणनाओं में वर्ष की अवधि सामान्यतः 360 दिन मानी जाती है। लगभग इतनी अवधि पूरी होने पर वर्ष वा संवत्सर बदलते हैं। आज सृष्टि संवत्सर 1,96,08,53,123 आरम्भ हुआ है वहीं विक्रमी संवत् 2079 का प्रथम दिवस है। अंग्रेजी वर्ष आरम्भ होने पर इसको मानने वाले लोग परस्पर शुभकामनाओं का आदान प्रदान करते हैं। उन्हीं के अनुकरण से हमारे भी अनेक बन्धु इसी प्रकार से एक दूसरे को शुभकामनायें एवं बधाई देने लगे हैं। इस नवसंवत्सर दिन का यही महत्व है कि इतने वर्ष पूर्व सृष्टि, वेद व मानव का आरम्भ यहां हुआ था तथा महान पराक्रमी आर्य वा हिन्दू राजा विक्रमादित्य शकों को युद्ध में पराजित कर राज्यारूढ़ हुए थे। महाराज विक्रमादित्य जी की राजधानी उज्जैन मानी जाती है। विक्रमादित्य एक आदर्श राजा थे। उन्हें हम कुछ कुछ राजा राम की तरह मान सकते हैं। उनकी स्मृति बनाये रखने के लिए तत्कालीन विद्वानों ने इस संवत्सर को आरम्भ किया था।

हम जिस संसार में रहते हैं वह व समस्त ब्रह्माण्ड ईश्वर से निर्मित व संचालित है। वेदों में ईश्वर, जीवात्मा, प्रकृति सहित मनुष्यों के कर्तव्य अकर्तव्यों का विस्तृत वा पूर्ण ज्ञान है। जब ब्रह्मा के मन में विचार आया एकोहं बहुस्याम: तब उन्हों ने सृष्टि का निर्माण किया और वो दिन भी चैत्र प्रतिपदा का ही था |अतः सृष्टि बनाने का कार्य ईश्वर ने किसी समय विशेष पर आरम्भ किया होगा और किसी विशेष समय पर इस सृष्टि का निर्माण सम्पन्न हुआ होगा। यह भी निश्चित है कि ब्रह्माण्ड वा हमारे सौर्य मण्डल के बन जाने वा इसमें जल, वायु, अग्नि व अन्य सभी आवश्यक पदार्थों की उपलब्धि होने तथा जिस स्थान विशेष (अनेक प्रमाणों से यह स्थान तिब्बत था) पर मानव सृष्टि अस्तित्व में आई, वह भी इस सृष्टि का कोई दिन विशेष रहा होगा। यदि उपलब्घ जानकारी के आधार पर कहें तो उस दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन था व उसी का अनुमान होता है। मनुष्यों की उत्पत्ति के साथ ही ईश्वर को सृष्टि की आदि में उत्पन्न युवावस्था के स्त्री-पुरुषों को जीवन के सामान्य व विशेष व्यवहार करने के लिए भाषा व व्यवहार ज्ञान की भी उपलब्धि वा पूर्ति करनी थी अन्यथा उनका सामान्य जीवनप्रवाह सम्भव न होता। अतः ईश्वर ने इसी दिन, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को, चार ऋषियों, अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को, वेदों का ज्ञान देने के साथ इतर मनुष्यों को परस्पर व्यवहार करने के लिए भाषा का ज्ञान भी दिया था, यह अनुमान होता है।
पार्टी के राष्ट्रीय सचिव सुबोध कुमार सिंह ने अपने संवोधन में कहाकि भारतीय नवसम्वत् दिवस की यह विशेषता है कि यह ऐसी ऋतु में आरम्भ होता है कि जब न अधिक शीत होता है, न उष्णता और न ही वर्षा ऋतु। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन वातावरण बहुत सुहावना व मनोरम होता है। खाद्यान्न गेहूं की फसल लगभग तैयार हो जाती है। सभी हरी भरी वृक्ष व वनस्पतियां आंखों को आह्लादित करती हैं। सर्वत्र नये नये पुष्प अपनी सुन्दरता से एक नये काव्य की रचना करते प्रतीत होते हैं। यह समस्त वातावरण व प्राकृतिक सौन्दर्य अपने आप में एक उत्सवसा ही प्रतीत होता है। यही ऋतु मानवोत्पत्ति के लिए उपयुक्त प्रतीत होती है। यदि अन्य ऋतुओं में मानवोत्पत्ति होती तो हमारे आदि स्त्री-पुरुषों को असुविधा व कठिनाई हो सकती थी। ईश्वर के सभी काम निर्दोष होते हैं। अतः यह उसी का प्रमाण है कि मानव सृष्टि उत्पत्ति ईश्वर ने एक सुन्दर व सुरम्य स्थान तिब्बत जहां पर्वत व वन हैं तथा जल सुलभ है, की थी। हमें यह अनुभव होता है कि इस दिन हमें अपने आदि पूर्वजों को स्मरण कर स्वयं को उन जैसा ज्ञानी व स्वस्थ व्यक्ति बनाने का संकल्प वा प्रयास करना चाहिये। यदि विश्व के सभी लोग परस्पर मिल कर उस आदिकालीन स्थिति पर विचार करें तो अविद्या व अज्ञान पर आधारित तथा मनुष्यों के दुःख के प्रमुख कारण मत-मतान्तरों से मनुष्यों को अवकाश मिल सकता है और संसार में एक ज्ञान व विवेक से पूर्ण वैदिक मत स्थापित हो सकता है जिससे संसार में सुख, शान्ति व कल्याण का वातावरण बन सकता है।

पार्टी की उपस्थित महिला कार्यकर्ता गुडिया देवी ने कहाकि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नवसंवत्सर के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम राजा रामचन्द्र जी के अयोध्या आकर सिंहासनारुढ़ होने की मान्यता भी प्रचलित है। विद्वान मानते हैं कि इसी दिन महाभारत युद्ध के समाप्त होने पर राजा युधिष्ठिर जी का राज्याभिषेक हुआ था। आदर्श महापुरुष व वैदिक संस्कृति के अनुरागी रामचन्द्र जी का जन्म दिवस रामनवमी का महापर्व पर्व भी इस दिवस के ठीक नवें दिन नवमी को होता है। आर्यसमाज की स्थापना भी चैत्र शुक्ल पंचमी को हुई थी। यह भी भारत के इतिहास में एक युगान्तरकारी कार्य था जिससे समस्त विश्व के मानवों को ईश्वर व जीवात्मा से सम्बन्धित ज्ञान व ईश्वरोपासना की सत्य व प्रमाणिक विधि ऋषि दयानन्द सरस्वती जी के द्वारा प्राप्त हुई थी। अतः न केवल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन अपितु पूरा पक्ष ही महत्वपूर्ण है। इस पर्व को देश व विश्व में मनाया जाना चाहिये। यह भी महत्वपूर्ण है कि किसी भी पर्व को मनाते समय जहां आनन्द व उल्लास होना चाहिये वहीं ईश्वर-चिन्तन और अग्निहोत्र यज्ञ का भी अनुष्ठान किया जाना चाहिये क्योंकि यह दो कार्य संसार में श्रेष्ठतम् व उत्तम कर्म हैं। इसके अनन्तर अन्य सभी वेदविहित कार्य किये जाने चाहिये। ऐसा करने से ही परिवार, समाज व देश का वातावरण आदर्श व अनुकरणीय बन सकता है। यह भी आवश्यक है कि किसी भी पर्व पर किसी भी व्यक्ति को सामिष भोजन व मद्यपान किंचित भी नहीं करना चाहिये। वेदानुसार यह दोनो कार्य अत्यन्त हेय एवं घृणित हैं, मनुष्यों को इनसे बचना चाहिये और देश व राज्य की सरकारों को इनको दण्डनीय बनाने के साथ इन्हें समाप्त करने की योजना भी बनानी चाहिये।



राष्ट्रीय प्रवक्ता लक्ष्मण पाण्डेय ने बतायाकि हम संसार में यह भी देखते हैं कि संसार में जितने भी मत, सम्प्रदाय, वैदिक संस्कृति से इतर संस्कृतियां व सभ्यतायें हैं, वह सभी विगत 3-4 हजार वर्षों में ही अस्तित्व में आईं हैं जबकि सत्य वैदिक धर्म व संस्कृति एवं वैदिक सभ्यता विगत 1.96 अरब वर्षों से संसार में प्रचलित है। वैदिक धर्म ही सभी मनुष्यों का यथार्थ धर्म है। यह बात ज्ञान व विवेक पर आधारित, पूर्ण वैज्ञानिक होने सहित युक्ति एवं तर्क से सिद्ध है। वेद के ईश्वरीय ज्ञान होने के कारण वेदेतर मतों की वैदिक सिद्धान्तों की पोषक मान्यतायें ही स्वीकार्य होती है, विपरीत मान्यतायें नहीं।

जितेन्द्र सिन्हा ने कहाकि आज के दिन चाहे वो राजनीत हो या पत्रकारिता सभी जगह मूल्यों का ह्रास हुआ है जरूरत है मूल्यों के पुनरवलोकन कर उन्हें स्थापित करने की|

कार्यक्रम में डॉ राकेश दत्त मिश्र, दिलीप कुमार, जितेन्द्र सिन्हा, गुडिया देवी, राज कुमार पाठक,लक्ष्मण पाण्डेय, सुबोध सिंह, अजय उप्पाध्याय, नीरज पाठक पियूष रंजन,शेखर गुप्ता, नविन राम, धंनजय पासवान, सुबोध सिंह राठौड़ आदि ने अपने विचार रखें |
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