शिवपाल यादव के इशारे

शिवपाल यादव के इशारे

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
समाजवादी पार्टी (सपा) को छोड़कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) बनाने वाले शिवपाल यादव के इन दिनों बयान राजनीतिक गलियारों में चर्चा के विषय बने हुए हैं। अभी हाल में उन्हांेने भाजपा के प्रमुख मुद्दे समान नागरिक संहिता का समर्थन किया था। उसके दूसरे ही दिन अपनी पार्टी की सभी इकाइयां भंग कर दीं। उसी दिन मुलायम सिंह यादव के एक खासमखास नेता ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट की थी। शिवपाल यादव ने लगभग दो महीने पहले ही भतीजे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए सपा से गठबंधन किया था। हालांकि चुनाव में टिकट बंटवारे के साथ ही शिवपाल की नाराजगी भी झलकी थी लेकिन चुनाव नतीजे मिलने के बाद अपेक्षा थी कि शिवपाल को नेता प्रतिपक्ष बनाया जा सकता है क्योंकि अखिलेश सांसद थे। अखिलेश ने संसदीय सीट छोड़ने की घोषणा की और नेता प्रतिपक्ष बन गये तो उस बैठक में भी शिवपाल नहीं आये थे। खबर तो यह थी कि उन्हंे बुलाया ही नहीं गया। बहरहाल, अब शिवपाल क्या करने वाले हैं, इस पर सभी की निगाहें हैं क्योंकि इसी बीच शिवपाल और मो. आजम खान की मुलाकात की एक नयी कहानी भी सुनी जा रही है।

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने 15 अप्रैल को बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने प्रसपा की सभी प्रादेशिक और राष्ट्रीय कमेटियां भंग कर दी हैं। सूत्रों के मुताबिक, इसे शिवपाल यादव के अगले राजनीतिक कदम की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है। शिवपाल ने पिछले दिनों कहा था कि वह ‘उचित समय’ जल्द आने वाला है, जिसका सबको इंतजार है। पार्टी के महासचिव और शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव की ओर से जारी आदेश में कहा गया है, ”प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल यादव के निर्देशानुसार प्रदेश कार्यकारिणी एवं राष्ट्रीय/प्रादेशिक प्रकोष्ठों की कार्यकारिणी अध्यक्ष सहित संपूर्ण प्रवक्ता मंडल (कार्यवाहक मुख्य प्रवक्ता सहित) को तत्काल प्रभाव से भंग किया जाता है।” दरअसल हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भतीजे अखिलेश यादव से कड़वाहट भुलाकर समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने वाले शिवपाल यादव के भाजपा में जाने की अटकलें हैं। महज एक सीट मिलने को लेकर चुनाव के बीच ही अपना दर्द जाहिर करने वाले शिवपाल कह चुके हैं कि वह जल्द फैसला लेंगे। सपा के टिकट पर जसवंतनगर सीट से विधायक बने शिवपाल को भतीजे अखिलेश ने कोई बड़ी जिम्मेदारी देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद सपा विधानमंडल दल की बैठक में नहीं बुलाए जाने से नाराज शिवपाल यादव ने दिल्ली जाकर बड़े भाई मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की थी। दिल्ली में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात करने के बाद वह अगले दिन लखनऊ पहुंचे और फिर समाजवादी पार्टी के विधायकों के साथ शपथ लेने के बजाए अकेले शपथ ली। इसके बाद शिवपाल ने उसी दिन शाम को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से करीब 20 मिनट मुलाकात की थी।

इसी के बाद चर्चा हुई कि शिवपाल यादव जल्द ही बीजेपी में शामिल हो सकते हैं, यूपी के राजनीतिक गलियारों में लंबे समय से ये कयास लगाए जा रहे हैं। शिवपाल भी लगातार ऐसे संकेत दे रहे हैं जिनसे उनकी बीजेपी से नजदीकियों के बारे में संकेत मिलते रहते हैं। अब शिवपाल यादव ने समान नागरिक संहिता लागू करने की वकालत की है। उनका कहना है कि राम मनोहर लोहिया ने तो 1967 के चुनाव में इसे मुद्दा भी बनाया था। शिवपाल ने इसके लिए पूरे देश में आंदोलन चलाने का ऐलान किया है।लखनऊ में 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के मौके पर आयोजित एक सेमिनार में शिवपाल यादव ने कहा कि अब समान नागरिक संहिता लागू करने का सही समय आ गया है। भीमराव आंबेडकर और लोहिया दोनों ने समाजवाद की खुलकर पैरवी की थी। साथ ही संविधान सभा में समान नागरिक संहिता की वकालत भी की थी। शिवपाल के इस बयान के बाद प्रसपा के प्रवक्ता दीपक मिश्रा ने बताया कि वह समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग को लेकर जल्द ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लालकृष्ण आडवाणी और शांता कुमार सिंह से मुलाकात करेंगे। पीएम मोदी से मुलाकात का समय भी मांगा जा चुका है। इसके बाद से उनके बीजेपी में जाने की अफवाह और तेज हो गयी है।

इधर, एक और कड़ी जुड़ गयी है। मुलायम सिंह यादव व शिवपाल के बेहद करीबी माने जाने वाले राज्यसभा सांसद व विधान परिषद अध्यक्ष रहे सुखराम सिंह यादव ने परिजनों संग 11 अप्रैल को सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी। सूत्र बताते हैं कि सुखराम सिंह यादव भाजपा में शामिल हो सकते हैं। इस मौके पर उन्होंने पिता चैधरी हरमोहन सिंह पर लिखी पुस्तक सीएम योगी को भेंट की। बता दें कि बेटा मोहित यादव पहले ही सपा से किनारा कर भाजपा में शामिल हो चुका है।

कानपुर से शुरू हुई अखिलेश यादव के विजय रथ यात्रा से भी सपा सांसद ने पूरी तरह दूरी बनाकर रखी। मुलायम सिंह की वजह से ही सुखराम सिंह को राज्यसभा सांसद के लिए वर्ष-2016 में मनोनीत किया गया था। दरअसल, सुखराम सिंह की यादव और ओबीसी वोट बैंक में अच्छी पकड़ है। वे अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ओबीसी और यादव वोट बैंक में अच्छी पकड़ बनाना चाहती है। कानपुर नगर और देहात की लगभग सभी सीटों पर ओबीसी वोट बैंक अच्छी तादाद में है। इसका असर पूरे प्रदेश के ओबीसी वोट बैंक पर पड़ना तय है। पार्टी की कमान हाथ में आने के बाद अखिलेश यादव ने सुखराम सिंह की लगातार उपेक्षा की। वहीं प्रसपा पार्टी के गठन के बाद सुखराम सिंह शिवपाल के साथ भी मजबूती से खड़े थे। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में हार मिलने के बाद से ही समाजवादी पार्टी में बगावत का माहौल चल रहा है। चाचा शिवपाल सपा से अलग होने के संकेत लगातार दे रहे हैं। वहीं, आजम खान समेत कई बड़े मुस्लिम नेता अखलिश यादव से नाराज दिख रहे हैं। सपा के नेता कासिम राईन ने भी इस्तीफा दे दिया है। इतना ही नहीं, कासिम ने सपा और सपाध्यक्ष पर कई आरोप भी लगाए हैं। कासिम राईन का कहना है कि अखिलेश यादव मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ कभी आवाज नहीं उठाते। उन्हें कोई रुचि ही नहीं है। आजम खान के परिवार को सलाखों के पीछे रखा गया, तब भी अखिलेश यादव चुप्पी साधे रहे। नाहिद हसन को जेल में डाले जाने के दौरान भी अखिलेश यादव कुछ नहीं बोले। वहीं, जब सहिजल इस्लाम का पेट्रोल पंप गिराया गया, तब भी अखिलेश ने आवाज नहीं उठाई। खबर है कि चाचा शिवपाल यादव के बाद आजम खानभी नाराज चल रहे हैं और दोनों नेता एक साथ आ सकते हैं। फिलहाल, शिवपाल ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले।
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