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चंदनी धूप जब बुलाती है

चंदनी धूप जब बुलाती है

डॉ रामकृष्ण मिश्र 
चंदनी धूप जब बुलाती है
याद मीठी-सी गुनगुनाती है!!

अगहनी भोर-सा खुला आँगन
मोतियों-से धुला-धुला-सा मन
देहरी पर बिछी -बिछी आँखें
कोर भर नींद-सीजुम्हाती है!!

चूड़ियों की खनक-सी आहट में
लाज की अधखिली मिलावट में
किशलयी  रंग ओठ पर थापे
कोई तो है,, किसे लजाती है!!

चाँदनी में नहा रही काया
रूप की धूप -सी पसरी छाया
शांति के गीत में सितार बजा
राग बासंत बन लुभाती है!!
रामकृष्ण
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