जोरावर सिंह (7 वर्ष) एवं फतेह सिंह (5 वर्ष) के बलिदान दिवस पर रविवार को भारतीय जन महासभा के अनेक लोगों ने देश-विदेश के विभिन्न स्थानो में दो साहिबजादो के चित्र पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए ।

जोरावर सिंह (7 वर्ष) एवं फतेह सिंह (5 वर्ष) के बलिदान दिवस पर रविवार को भारतीय जन महासभा के अनेक लोगों ने देश-विदेश के विभिन्न स्थानो में  दो साहिबजादो के चित्र पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए ।

इसी क्रम में जमशेदपुर के बिष्टुपुर स्थित डॉ श्री कृष्ण सिन्हा संस्थान परिसर में भी बाल बलिदान दिवस मनाया गया ।
श्री पोद्दार ने दो साहिबजादों के बारे में बताते हुए कहा कि मुगलों ने गुरु गोविंद सिंह जी के साथ धोखा किया और उनसे उनका किला खाली करवा लिया । इस प्रकार गुरु जी का परिवार बिछड़ गया ।
छोटे साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह अपनी दादी माता गुजरी के साथ किले से निकलने के पश्चात जंगल पार करके रात्रि होने पर एक झोपड़ी में रुके ।
खबर पाकर गुरुजी के लंगर का गंगू नामक एक सेवक माताजी के पास पहुंचा और वह उनको अपने घर ले गया ।
गंगू ने मुगलों को इनके बारे में खबर कर दी । माता जी और दोनों साहिबजादों को कैद कर लिया गया ।
अगली सुबह उनको बैलगाड़ी में बिठाकर सरहंद के थाने ले जाया गया । 
इन लोगों को सरहंद में ठंडे बुर्ज में रखा गया जहां हाड़ कंपा देने वाली ठंडी हवाएं चल रही थी । 
लेकिन वह अपने इरादों पर अडिग थे । 
अगले दिन सुबह नवाब वजीर खान के सिपाही आए और साहिबजादों को नवाब की कचहरी में ले गए । 
सभी की नजरें साहिबजादो पर थी । वजीर खान ने उन्हें बच्चा समझते हुए कहा कि बच्चों तुम बहुत भोले लगते हो । मुसलमान कौम को तुम पर बहुत गर्व होगा । तुम कलमा पढ़कर मोमिन बन जाओ । तुम्हें मुंह मांगी मुराद मिलेगी ।
इस पर दोनों साहिबजादे गरज  कर बोले कि हमें अपना धर्म प्रिय है । यह सुनकर नवाब काजी से बोला यह बागी की संतान है , इन्हें सजा देनी ही पड़ेगी ।दरबार में मौजूद काजी ने कुछ देर सोचने के बाद फतवा जारी कर दिया , इसमें लिखा था कि यह बच्चे बगावत पर तुले हैं अतः इन्हें जिंदा ही दीवार में चिनवा दिया जाए । 
फतवा सुनाकर साहिबजादों को वापस ठंडा बुर्ज भेज दिया गया जहां उन्होंने दादी माता गुजरी को कचहरी में हुई सारी बात बताई ।
काजी ने जल्लाद का इंतजाम किया और फिर पता लगा कि इन जल्लादों की तो आज पेशी है । 
यह जानकारी मिलने पर नवाब ने तुरंत हुक्म दिया कि इन जल्लादों का मुकदमा बर्खास्त किया जाता है और इन बच्चों को जल्लादों के हवाले किया जाता है ।
आदेश की तामील की गई और बच्चों को उस जगह पर ले जाया गया जहां दीवार बनाई जा रही थी । साहिबजादों को उस दीवार के बीच खड़ा कर दिया गया ।
दोनों साहिबजादे जपुजी साहिब का पाठ करने लगे और उधर जल्लादो ने दीवार खड़ी करनी शुरू कर दी । 
थोड़ी देर बाद ही दोनों साहिबजादे बेहोश हो गए और दीवार गिर पड़ी । जल्लाद आपस में कहने लगे कि दोनों शायद अपनी अंतिम सांसें ले रहे है । दीवार और ऊंची करने की आवश्यकता नहीं है । रात उतर रही है , इनका गला काट कर जल्दी काम खत्म किया जाए । इतना कह दोनों बच्चों को बाहर निकाला गया और उन्हें शहीद कर दिया गया ।
श्री पोद्दार ने बताया कि दो साहिबजादों के बलिदान दिवस पर देश-विदेश के 18 स्थानों से 24 लोगों ने उनके चित्र पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए ।
श्रद्धा सुमन अर्पित करने वालों में प्रमुख रूप से जमशेदपुर जिला पूर्वी सिंहभूम झारखंड से धर्म चन्द्र पोद्दार के अलावे संरक्षक श्री राजेंद्र कुमार अग्रवाल , अरविंद बरनवाल ,श्रीमती अर्चना बरनवाल ,  श्रीमती भुवनेश्वरी मिश्रा , श्रीमती सबिता ठाकुर दीप , माही कुमार ,आदित्यपुर जिला सराइकेला-खरसावां झारखंड से बसंत कुमार सिंह ,बक्सर बिहार से अजय कुमार सिंह ,पटना बिहार से अंकेश कुमार ,पाकुड़ झारखंड से कृष्णा कुमार साहा ,गोंडा उत्तरप्रदेश से श्री सत्येन्द्र पांडेय 'शिल्प' , मेरठ उत्तरप्रदेश से श्रीमती लक्ष्मी गोसाईं , प्रयागराज उत्तर प्रदेश से सुश्री हेमाश्री शाहदरा दिल्ली से श्रीमती अर्चना वर्मा ,नागपुर महाराष्ट्र से श्रीमती अनुसूया अग्रवाल ,कलियावर असम से श्रीमती कल्पना देवी आत्रेय ,जोरहाट असम से डॉ रुनू बरुवा , सिंगापुर से श्रीमती बिदेह नंदनी चौधरी जयपुर राजस्थान से ओम प्रकाश अग्रवाल भागलपुर बिहार से श्रीमती लक्ष्मी सिंह  वाराणसी उत्तर प्रदेश से डॉ रंजना श्रीवास्तव रांची झारखंड से विजय केडिया झालावाड़ राजस्थान से डॉ वत्सला आदि के नाम प्रमुख रूप से सम्मिलित है 
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