Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

अमृत महोत्सव शरद पूर्णिमा

अमृत महोत्सव शरद पूर्णिमा

सत्येन्द्र कुमार पाठक 
ब्रह्मपुराण , वेदों संहिताओं तथा स्मृतिग्रंथों में शरद पूर्णिमा का उल्लेख किया गया है । शरद पूर्णिमा को रात्रि में मां लक्ष्मी भ्रमण कार्य तथा चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक होने के कारण चांद की रोशनी पृथ्वी को अपने आगोश में लेती है । वर्ष के बारह महीनों में शरद पूर्णिमा तन, मन और धन के लिए सर्वश्रेष्ठ और चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होने से धन की देवी महालक्ष्मी कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा कहा गया है । दक्ष प्रजापति की पुत्री एवं चंद्रमा की पत्नी अश्विनी को अश्विनी नक्षत्र समर्पित शरद पूर्णिमा एवं भगवान सूर्य की पत्नी माता संज्ञा के पुत्र देव वैद्य अश्विनी कुमार को आश्विन मास समर्पित है । साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा है कि 27 नक्षत्रों में चंद्रमा द्वारा प्रथम भ्रमण आश्विन मास शुक्ल पक्ष का आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होकर पृथ्वी के समीप चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। आयुर्वेद ज्ञाता द्वारा जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई जड़ी-बूटियों से दवा बनायी जाने के कारण रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है।चंद्रमा वेदं-पुराणों में मन है- *चंद्रमा मनसो जात:। वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। चंद्रमा को औषधीश , औषधियों का स्वामी है। ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरने से औषधियों की उत्पत्ति हुई है । शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से रोग दूर होते एवं शरीर निरोगी होता है। शरद पूर्णिमा को सोलह कला से पूर्ण भगवान श्रीकृष्ण राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचाने के क्रम में चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में शरद पूर्णिमा को रास रचाते और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। शरद पूर्णिमा को महालक्ष्मी का पूजन कर और रात्रिजगरण कर कामनाओं की पूर्ति करते है। ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म शरद पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां पति पाने के लिए करती हैं। वर्षा ऋतु अंतिम समय पर तथा शरद ऋतु अपने बाल्यकाल और हेमंत ऋतु आरंभ को शरद पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है। आश्विन मास , शुक्ल पक्ष , पूर्णिमा तिथि ,मंगलवर , विक्रमसंबत 2078 दिनक 19 अक्टूबर 2021 को शरद पूर्णिमा पर मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन होता है ।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ