बालीवुड का कड़वा सच
राजेश लखेरा, जबलपुर।
कला-संरक्षक कैमरों से क्यों छिप रहे हैं,
मीडिया से बेखौफ मिलनेवाले, आज अपने-आपसे डर रहे हैं।
कला को बेचने वाले क्या संस्कार, संस्कृति के संरक्षक होगें,
नशे में फंसे तो आजकल रास्ता ही बदल रहें हैं।
आस्कर की राह देखते देखते बूढ़ा हो गया है भास्कर,
नाम दिलाने वाले आज खुद बदनाम हो रहे हैं।
इनके नशे और गरीब के नशे में है जमीं आसमां का अंतर,
दीन का स्वेज आज भी है चोखा, इनके सपने में भी पसीने निकल रहे हैं।
जिनके समुंदर पार तक दिखावे के चरचे होते थे,
आज वो दरिया में कदम रखने से डर रहे हैं।
एक जानवर आया था इनके शहर में इंसानियत ढूढने,
ज्यादातर घरों में उसे जानवर ही मिल रहे हैं।
स्वरचित
राजेश लखेरा, जबलपुर।
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