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देवसेना कार्तिकेय : कार्तिक मास

देवसेना कार्तिकेय : कार्तिक मास 

सत्येन्द्र कुमार पाठक 
भगवान शिव एवं माता पार्वती के पुत्र देव सेनापति कार्तिकेय का अवतरण  आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था । तमिलनाडु में  कार्तिकेय , मुरुगन , तमिल कडवुल अर्थात तमिलों के देवता कहा जाता है ।श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर और  छ: सबसे प्रसिद्ध मंदिर तमिल नाडु में स्थित हैं।  भगवान शिव और माता पार्वती के कार्तिकेय बड़े पुत्र हैं । कार्तिकेय की बहन  देवी अशोकसुन्दरी , भगवान अय्यपा , देवी ज्योति , देवी मनसा और भी भगवान गणेश , पत्नियां  देवराज इंद्र की पुत्री देवसेना छठी माता औरवैन राजा की पुत्री  वल्ली थी । बातू गुफाओं, मलेशिया का प्रवेश द्वार, जहाँ भगवान मुरुगन की विशाल प्रतिमा हैअन्य नामस्कन्द , कुमार , पार्वतीनन्दन , शिवसुत , गौरीपुत्र , षडानन आदिसंबंधदेवमंत्रॐ कर्तिकेयाय विद्महे षष्ठीनाथाय: धीमहि तन्नो कार्तिकेय प्रचोदयात् ||अस्त्रधनुष, भालाजीवनसाथीषष्ठी और वल्लीमाता-पिता भाई-बहनगणेश अशोक सुंदरी , मनसा देवी , देवी ज्योति और भगवान अय्यपासवारीमोरत्यौहारस्कन्दषष्ठी ऋषि जरत्कारू और राजा नहुष के बहनोई हैं और जरत्कारू और इनकी छोटी बहन मनसा देवी के पुत्र महर्षि आस्तिक के मामा  है । भगवान कार्तिकेय छ: बालकों के रूप में जन्मे थे तथा देखभाल कृतिका  द्वारा करने के कारण कार्तिकेय धातृ हैं। वर्ष का कार्तिक माह कार्तिकेय को समर्पित है ।
स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव के दिये वरदान के कारण अधर्मी दैत्य तारकासुर अत्यंत शक्तिशाली हो चुका था। वरदान के अनुसार केवल शिवपुत्र ही उसका वध कर सकता था।और इसी कारण वह तीनों लोकों में हाहाकार मचा रहा था। इसीलिए सारे देवता भगवान विष्णु के पास जा पहुँचे। भगवान विष्णु ने उन्हें सुझाव दिया की वे कैलाश जाकर भगवान शिव से पुत्र उत्पन्न करने की विनती करें। विष्णु की बात सुनकर समस्त देवगण जब कैलाश पहुंचे तब उन्हें पता चला कि शिवजी और माता पार्वती तो विवाह के पश्चात से ही देवदारु वन में एकांतवास के लिए जा चुके हैं। विवश व निराश देवता जब देवदारु वन जा पहुंचे तब उन्हें पता चला की शिवजी और माता पार्वती वन में एक गुफा में निवास कर रहे हैं। देवताओं ने शिवजी से मदद की गुहार लगाई किंतु कोई लाभ नहीं हुआ, भोलेभंडारी तो कामपाश में बंधकर अपनी अर्धांगिनी के साथ सम्भोग करने में रत थे। उनको जागृत करने के लिए अग्नि देव ने उनकी कामक्रीड़ा में विघ्न उत्पन्न करने की ठान ली। अग्निदेव जब गुफा के द्वार तक पहुंचे तब उन्होने देखा की शिव शक्ति कामवासना में लीन होकर सहवास में तल्लीन थे, किंतु अग्निदेव के आने की आहट सुनकर वे दोनों सावधान हो गए। सम्भोग के समय परपुरुष को समीप पाकर देवी पार्वती ने लज्जा से अपना सुंदर मुख कमलपुष्प से ढक लिया। देवी का वह रूप लज्जा गौरी के नाम से प्रसिद्द हो गया। कामक्रीड़ा में मग्न शिव जी ने जब अग्निदेव को देखा तब उन्होने भी सम्भोग क्रीड़ा त्यागकर अग्निदेव के समक्ष आना पड़ा। लेकिन इतने में कामातुर शिवजी का अनजाने में ही वीर्यपात हो गया। अग्निदेव ने उस अमोघ वीर्य को कबूतर का रूप धारण करके ग्रहण कर लिया व तारकासुर से बचाने के लिए उसे लेकर जाने लगे। किंतु उस वीर्य का ताप इतना अधिक था की अग्निदेव से भी सहन नहीं हुआ। इस कारण उन्होने उस अमोघ वीर्य को गंगादेवी को सौंप दिया। जब देवी गंगा उस दिव्य अंश को लेकर जाने लगी तब उसकी शक्ति से गंगा का पानी उबलने लगा। भयभीत गंगादेवी ने उस दिव्य अंश को शरवण वन में लाकर स्थापित कर दिया किंतु गंगाजल में बहते बहते वह दिव्य अंश छह भागों में विभाजित हो गया था। भगवान शिव के शरीर से उत्पन्न वीर्य के उन दिव्य अंशों से छह सुंदर व सुकोमल शिशुओं का जन्म हुआ। उस वन में विहार करती छह कृतिका कन्याओं की दृष्टि जब उन बालकों पर पडी तब उनके मन में उन बालकों के प्रति मातृत्व भाव जागा। और वो सब उन बालकों को लेकर उनको अपना स्तनपान कराने लगी। उसके पश्चात वे सब उन बालकोँ को लेकर कृतिकालोक चली गई व उनका पालन पोषण करने लगीं। जब इन सबके बारे में नारद जी ने शिव पार्वती को बताया तब वे दोनों अपने पुत्र से मिलने के लिए व्याकुल हो उठे, व कृतिकालोक चल पड़े। जब माँ पार्वती ने अपने छह पुत्रों को देखा तब वो मातृत्व भाव से भावुक हो उठी, और उन्होने उन बालकों को इतने ज़ोर से गले लगा लिया की वे छह शिशु एक ही शिशु बन गए जिसके छह शीश थे। तत्पश्चात शिव पार्वती ने कृतिकाओं को सारी कहानी सुनाई और अपने पुत्र को लेकर कैलाश वापस आ गए। कृतिकाओं के द्वारा लालन पालन होने के कारण उस बालक का नाम कार्तिकेय पड़ गया। कार्तिकेय ने बड़ा होकर राक्षस तारकासुर का संहार किया। पुरणों के अनुसार देवर्षि नारद फल लेकर कैलाश गए दोनों गणेश और कार्तिकेय मे फल को लेकर बहस हुई जिस कारण प्रतियोगिता पृथ्वी के तीन प्रक्रिमा  लगाने आयोजित की गयी जिस अनुसार विजेता को फल मिलेगा । जहां मुरूगन ने अपने वाहन मयूर से यात्रा शुरू की वहीं गणेश जी ने अपने माँ और पिता के चक्कर लगाकर फल खा लिया जिस पर मुरूगन क्रोदित होकर कैलाश से दक्षिण भारत की ओर चले गए। रामायण, महाभारत, तमिल संगम में उल्लेख किया गया है कि  देव सेनापति कार्तिकेय को ब्लाक रूप  उपासना करते है ।
षण्मुख, द्विभुज, शक्तिघर, मयूरासीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना तथा  ब्रह्मपुत्री देवसेना-षष्टी देवी के पति होने के कारण सन्तान प्राप्ति की कामना से पूजे जाते हैं । नैष्ठिक सम्प्रदाय में देव सेना कार्तिकेय  आराध्य है।
तारकासुर के अत्याचार से पीड़ित देवताओं पर प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने पार्वती जी का पाणिग्रहण किया। उमा के प्रेम में वे एकान्तनिष्ठ हो गये। अग्निदेव सुरकार्य का स्मरण कराने वहाँ उज्ज्वल कपोत वेश से पहुँचे। शरवण (कास-वन) में वह निक्षिप्त होकर तेजोमय बालक बना। ऋषि पत्नि कृत्तिकाओं ने शरवन को पुत्र  बना कर छ: मुख धारण कर छहों कृत्तिकाओं का स्तनपान किया। उसी से षण्मुख कार्तिकेय हुआ वह शम्भुपुत्र। देवताओं ने अपना सेनापतित्व कार्तिकेय को प्रदान किया। स्वामी कार्तिकेय द्वारा तारकासुर मारा गया था ।स्कन्द पुराण के  उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय स्कन्द हैं। स्वामी कार्तिकेय की उपासना से  सेनाधिप , सैन्यशक्ति की प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन  सम्पन्न होता है। स्वामी कार्तिकेय  शक्ति के अधिदेव एवं  धनुर्वेद के ज्ञाता थे । संस्कृत ग्रंथ अमरकोष के अनुसार कार्तिकेय को  कार्तिकेय , महासेन , शरजन्मा , षडानन , पार्वतीनन्दन , स्कन्द , सेनानी , अग्निभू , गुह , बाहुलेय , तारकजित् ,विशाख ,शिखिवाहनशक्तिश्वर , कुमार ,  क्रौंचदारण,  थिरुचनदूर मुर्गा ,  देवदेव,  विश्वेश , योगेश्वर ,शिवात्मज , आदिदेव , विष्णु ,महासेन , इश्वर ,परब्रह्म , स्वामिनाथ , अग्निभू , वल्लिवल्लभ , महारुद्र , ज्ञानगम्य , गुहा , सर्वेश्वर , प्रभु ,भुतेश ,शंकर , शिव , ब्रम्ह ,शिवसुत कहा गया है ।देव सेनापति कार्तिकेय के पिता - भगवान शिव , माता - भगवती पार्वती , सौतेली मातामोहिनी ,भाई- गणेश ,अय्यपा , बहन- अशोकसुन्दरी , मनसा देवी और देवी ज्योति पत्नी - देवसैना (षष्ठी देवी), इंद्रदेव की पुत्री एवं वल्ली , वाहन - मोर (संस्कृत - शिखि) , बालपन में  कार्तिकेय का  देखभाल सप्तर्षि की पत्नियां कृतिका ने की थी। कार्तिकेय को माँ पार्वती द्वारा परिपूर्ण अस्त्र वेल दी गयी थी । मलेशिया के गोम्बैक जिले में स्थित एक चूना पत्थर की पहाड़ी बातू गुफा में भगववान मुरुगन की विश्व में सर्वाधिक ऊंची प्रतिमा ऊंचाई 42.7 मीटर (140 फिट) स्थित है ।थिरुथनी, पलानी मुरूगन , शिवा सुबरमनीय स्वामी, रत्नागिरी, कुमुरकन्दन, थिरूपोरुर्कंसवामी, स्वामीनाथस्वामी, थिरुपपरमकुनरम, पज़्हमुदिर्चोलाई, स्वामीमली, तिरुचेंदूर , मरुदमली, वेल्लिमलाई में कार्तिकेय मंदिर है ।
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