शक्ति उपासना : सर्वांगीण विकास
सत्येन्द्र कुमार पाठक
सनातन धर्म के विभिन्न धर्मग्रंथों में देवी भागवत पुराण , मार्कण्डेय पुराण स्मृतियों में शक्ति की उपासना का वर्णन किया गया है । सृष्टि के प्रारंभ से शक्ति की उपासना विभिन्न रूपों में कई जाती रही है । शक्ति के उपासक को शाक्त सम्प्रदाय कहा जाता था । सभी मन्वन्तरों के विभिन्न राजाओं द्वारा शक्ति आराधना का स्थल पर शक्ति की व8भिन्न भिन्न भिन्न भिन्न रूपों इन स्थापित की गई थी । इंद्राक्षी शक्तिपीठ , श्रीलंका - देवी भागवत पुराण , कालिकापुराण , शिवचरित्र , दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की माता सती के शक्तिपीठों में श्री लंका की त्रिंकोमाली स्थित इन्द्राक्षी शक्तिपीठ तथा कोनेश्वरम मंदिर का उल्लेख है ।महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं करने के कारण यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है । श्रीलंका के त्रिंकोमाली में माता की नूपुर अर्थात पायल गिरने के कारण त्रिंकोमाली में प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट स्थित इंद्राक्षी शक्तिपीठ और राक्षसेश्वर भैरव की स्थापित हैं । सती के शरीर का उसंधि (पेट और जांघ के बीच का भाग) हिस्सा गिरा था। जबकि कुछ ग्रंथों में यहां सती का कंठ और नूपुर गिरने का उल्लेख है। कुछ का मानना है कि श्रीलंका का शंकरी देवी मंदिर ही यह शक्तिपीठ है। मान्यता है कि शंकरी देवी मंदिर की स्थापना खुद रावण ने की थी। यहां शिव का मंदिर भी है, जिन्हें त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है। यह मंदिर कोलंबो से 250 किमी दूर त्रिकोणमाली नाम की जगह पर चट्टान पर बना है। यह मंदिर त्रिकोणमाली जिले की 1 लाख हिंदू आबादी की आस्था का भी केंद्र है। त्रिकोणमाली आने वाले लोग इसे शांति का स्वर्ग भी कहते हैं। बिहार के मगध में माता के दाएं पैर की जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है सर्वानंदकरी और भैरव को व्योमकेश कहते हैं। यह 108 शक्तिपीठ में शामिल है ।सती के शरीर का उसंधि (पेट और जांघ के बीच का भाग) हिस्सा गिरा था। जबकि कुछ ग्रंथों में यहां सती का कंठ और नूपुर गिरने का उल्लेख है। कुछ का मानना है कि श्रीलंका का शंकरी देवी मंदिर ही यह शक्तिपीठ है। मान्यता है कि शंकरी देवी मंदिर की स्थापना खुद रावण ने की थी। यहां शिव का मंदिर भी है, जिन्हें त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है। यह मंदिर कोलंबो से 250 किमी दूर त्रिकोणमाली नाम की जगह पर चट्टान पर बना है।
मानस शक्तिपीठ तिब्बत - मानस शक्तिपीठ हिन्दू धर्म में प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किये हुए वस्त्र और आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। इन शक्तिपीठों का धार्मिक दृष्टि से बड़ा ही महत्त्व है। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। 'मानस शक्तिपीठ' इन्हीं 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिंदुओं के लिए कैलास पर्वत 'भगवान शिव का सिंहासन' है। बौद्धों के लिए विशाल प्राकृतिक मण्डप और जैनियों के लिए ऋषभदेव का निर्वाण स्थल है। हिन्दू तथा बौद्ध दोनों ही इसे तांत्रिक शक्तियों का भण्डार मानते हैं। भले ही भौगोलिक दृष्टि से यह चीन के अधीन है तथापि यह हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और तिब्बतियों के लिए अति-पुरातन तीर्थस्थान है। नामकरण देवी माँ का शक्तिपीठ चीन अधिकृत मानसरोवर के तट पर है, जहाँ सती की 'बायीं हथेली' का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति 'दाक्षायणी' तथा भैरव 'अमर' हैं। 'कैलास शक्तिपीठ' मानसरोवर का गौरवपूर्ण वर्णन हिन्दू, बौद्ध, जैन धर्मग्रंथों में मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह ब्रह्मा के मन से निर्मित होने के कारण ही इसे 'मानसरोवर' कहा गया। यहाँ स्वयं शिव हंस रूप में विहार करते हैं। जैन धर्मग्रंथों में कैलास को 'अष्टपद' तथा मानसरोवर को 'पद्महद' कहा गया है। इसके सरोवर में अनेक तीर्थंकरों ने स्नान कर तपस्या की थी। बुद्ध के जन्म के साथ भी मानसरोवर का घनिष्ट संबंध है। तिब्बती धर्मग्रंथ 'कंगरी करछक' में मानसरोवर की देवी 'दोर्जे फांग्मो'[3] यहाँ निवास कहा गया है। यहाँ भगवान देमचोर्ग, देवी फांग्मो के साथ नित्य विहार करते हैं। इस ग्रंथ में मानसरोवर को 'त्सोमफम' कहते हैं । भारत से एक बड़ी मछली आ कर उस सरोवर में 'मफम' करते हुए प्रविष्ट हुई। इसी से इसका नाम 'त्सोमफम' पड़ गया। मानसरोवर के पास ही राक्षस ताल है, जिसे 'रावण हृद' भी कहते हैं। मानसरोवर का जल एक छोटी नदी द्वारा राक्षस ताल तक जाता है। तिब्बती इस नदी को 'लंगकत्सु कहते हैं। जैन-ग्रंथों के अनुसार रावण एक बार 'अष्टपद' की यात्रा पर आया और उसने 'पद्महद' में स्नान करना चाहा, किंतु देवताओं ने उसे रोक दिया। तब उसने एक सरोवर, 'रावणहृद' का निर्माण किया और उसमें मानसरोवर की धारा ले आया तथा स्नान किया। मानसे कुमुदा प्रोक्ता' के अनुसार यहाँ की शक्ति 'कुमुदा' हैं, जबकि तंत्र चूड़ामणि के अनुसार 'मानसे दक्षहस्तो में देवी दाक्षायणी हर। अमरो भैरवस्तत्र सर्वसिद्धि विधायकः॥ के अनुसार शक्ति 'दाक्षायणी' हैं । राम मनसा निर्मित परम्। ब्रह्मणा नरशार्दूल तेनेदं मानसं सरः॥ वाल्मीकि रामायण. 1/24/8-9) के अनुसार वज्रवाराही , छबध्वनि राक्षस नदी , पद्महद , शक्तिपीठ अट्टहास शक्तिपीठ · अम्बाजी शक्तिपीठ · हरसिद्धि शक्तिपीठ · कन्याकुमारी शक्तिपीठ · करतोयाघाट शक्तिपीठ · करवीर शक्तिपीठ · कश्मीर शक्तिपीठ · कांची शक्तिपीठ · कात्यायनी पीठ · कामाख्या शक्तिपीठ · कालमाधव शक्तिपीठ · कालीघाट काली मंदिर · विशालाक्षी शक्तिपीठ · किरीट शक्तिपीठ · गण्डकी शक्तिपीठ · गुह्येश्वरी शक्तिपीठ · गोदावरी तट शक्तिपीठ · चट्टल शक्तिपीठ · जनस्थान शक्तिपीठ · जयंती शक्तिपीठ · जालंधर शक्तिपीठ · चिताभूमि · ज्वालामुखी शक्तिपीठ · त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ · त्रिस्तोता शक्तिपीठ · देवीकूप शक्तिपीठ · नन्दीपुर शक्तिपीठ · नलहाटी शक्तिपीठ · पंच सागर शक्तिपीठ · प्रयाग शक्तिपीठ · बहुला शक्तिपीठ · भैरवपर्वत शक्तिपीठ है । मगध शक्तिपीठ · मणिवेदिका शक्तिपीठ · मानस शक्तिपीठ · पावागढ़ शक्तिपीठ · मिथिला इंद्राक्षी शक्तिपीठ , श्रीलंका - देवी भागवत पुराण , कालिकापुराण , शिवचरित्र , दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की माता सती के शक्तिपीठों में श्री लंका की त्रिंकोमाली स्थित इन्द्राक्षी शक्तिपीठ तथा कोनेश्वरम मंदिर का उल्लेख है ।महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं करने के कारण यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है । श्रीलंका के त्रिंकोमाली में माता की नूपुर अर्थात पायल गिरने के कारण त्रिंकोमाली में प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट स्थित इंद्राक्षी शक्तिपीठ और राक्षसेश्वर भैरव की स्थापित हैं । सती के शरीर का उसंधि (पेट और जांघ के बीच का भाग) हिस्सा गिरा था। जबकि कुछ ग्रंथों में यहां सती का कंठ और नूपुर गिरने का उल्लेख है। कुछ का मानना है कि श्रीलंका का शंकरी देवी मंदिर ही यह शक्तिपीठ है। मान्यता है कि शंकरी देवी मंदिर की स्थापना खुद रावण ने की थी। यहां शिव का मंदिर भी है, जिन्हें त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है। यह मंदिर कोलंबो से 250 किमी दूर त्रिकोणमाली नाम की जगह पर चट्टान पर बना है। यह मंदिर त्रिकोणमाली जिले की 1 लाख हिंदू आबादी की आस्था का भी केंद्र है। त्रिकोणमाली आने वाले लोग शांति का स्वर्ग कहते हैं।
बिहार के मगध में माता के दाएं पैर की जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है सर्वानंदकरी और भैरव को व्योमकेश कहते हैं। यह 108 शक्तिपीठ में शामिल है ।सती के शरीर का उसंधि हिस्सा गिरा था। ग्रंथों में यहां सती का कंठ और नूपुर गिरने का उल्लेख है। श्रीलंका का शंकरी देवी मंदिर ही यह शक्तिपीठ है। शंकरी देवी मंदिर की स्थापना खुद रावण ने की थी। यहां शिव का मंदिर भी है, जिन्हें त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है। यह मंदिर कोलंबो से 250 किमी दूर त्रिकोणमाली नाम की जगह पर चट्टान पर बना है। मानस शक्तिपीठ तिब्बत - मानस शक्तिपीठ हिन्दू धर्म में प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किये हुए वस्त्र और आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। इन शक्तिपीठों का धार्मिक दृष्टि से बड़ा ही महत्त्व है। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। 'मानस शक्तिपीठ' इन्हीं 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिंदुओं के लिए कैलास पर्वत 'भगवान शिव का सिंहासन' है। बौद्धों के लिए विशाल प्राकृतिक मण्डप और जैनियों के लिए ऋषभदेव का निर्वाण स्थल है। हिन्दू तथा बौद्ध दोनों ही इसे तांत्रिक शक्तियों का भण्डार मानते हैं। भले ही भौगोलिक दृष्टि से यह चीन के अधीन है तथापि यह हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और तिब्बतियों के लिए अति-पुरातन तीर्थस्थान है। नामकरण देवी माँ का शक्तिपीठ चीन अधिकृत मानसरोवर के तट पर है, जहाँ सती की 'बायीं हथेली' का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति 'दाक्षायणी'[1]तथा भैरव 'अमर' हैं। 'कैलास शक्तिपीठ' मानसरोवर का गौरवपूर्ण वर्णन हिन्दू, बौद्ध, जैन धर्मग्रंथों में मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह ब्रह्मा के मन से निर्मित होने के कारण ही इसे 'मानसरोवर' कहा गया। यहाँ स्वयं शिव हंस रूप में विहार करते हैं। जैन धर्मग्रंथों में कैलास को 'अष्टपद' तथा मानसरोवर को 'पद्महद' कहा गया है। इसके सरोवर में अनेक तीर्थंकरों ने स्नान कर तपस्या की थी। बुद्ध के जन्म के साथ भी मानसरोवर का घनिष्ट संबंध है। तिब्बती धर्मग्रंथ 'कंगरी करछक' में मानसरोवर की देवी 'दोर्जे फांग्मो' यहाँ निवास कहा गया है। यहाँ भगवान देमचोर्ग, देवी फांग्मो के साथ नित्य विहार करते हैं। इस ग्रंथ में मानसरोवर को 'त्सोमफम' कहते हैं, जिसके पीछे मान्यता है कि भारत से एक बड़ी मछली आ कर उस सरोवर में 'मफम' करते हुए प्रविष्ट होने के कारण 'त्सोमफम' पड़ गया। मानसरोवर के पास ही राक्षस ताल है, जिसे 'रावण हृद' भी कहते हैं। मानसरोवर का जल एक छोटी नदी द्वारा राक्षस ताल तक जाता है। तिब्बती इस नदी को 'लंगकत्सु'[5] कहते हैं। जैन-ग्रंथों के अनुसार रावण एक बार 'अष्टपद' की यात्रा पर आया और उसने 'पद्महद' में स्नान करना चाहा, किंतु देवताओं ने उसे रोक दिया। तब उसने एक सरोवर, 'रावणहृद' का निर्माण किया और उसमें मानसरोवर[6] की धारा ले आया तथा स्नान किया। मानसे कुमुदा प्रोक्ता' के अनुसार यहाँ की शक्ति 'कुमुदा' हैं, जबकि तंत्र चूड़ामणि के अनुसार 'मानसे दक्षहस्तो में देवी दाक्षायणी हर। अमरो भैरवस्तत्र सर्वसिद्धि विधायकः॥ के अनुसार शक्ति 'दाक्षायणी' हैं । राम मनसा निर्मित परम्। ब्रह्मणा नरशार्दूल तेनेदं मानसं सरः॥(वाल्मीकि रामायण... 1/24/8-9) के अनुसार वज्रवाराही , छबध्वनि राक्षस नदी , पद्महद , शक्तिपीठ अट्टहास शक्तिपीठ · अम्बाजी शक्तिपीठ · हरसिद्धि शक्तिपीठ · कन्याकुमारी शक्तिपीठ · करतोयाघाट शक्तिपीठ · करवीर शक्तिपीठ · कश्मीर शक्तिपीठ · कांची शक्तिपीठ · कात्यायनी पीठ · कामाख्या शक्तिपीठ · कालमाधव शक्तिपीठ · कालीघाट काली मंदिर · विशालाक्षी शक्तिपीठ · किरीट शक्तिपीठ · गण्डकी शक्तिपीठ · गुह्येश्वरी शक्तिपीठ · गोदावरी तट शक्तिपीठ · चट्टल शक्तिपीठ · जनस्थान शक्तिपीठ · जयंती शक्तिपीठ · जालंधर शक्तिपीठ · चिताभूमि · ज्वालामुखी शक्तिपीठ · त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ · त्रिस्तोता शक्तिपीठ · देवीकूप शक्तिपीठ · नन्दीपुर शक्तिपीठ · नलहाटी शक्तिपीठ · पंच सागर शक्तिपीठ · प्रयाग शक्तिपीठ · बहुला शक्तिपीठ · भैरवपर्वत शक्तिपीठ · मगध शक्तिपीठ · मणिवेदिका शक्तिपीठ · मानस शक्तिपीठ · पावागढ़ शक्तिपीठ · मिथिला शक्तिपीठ · यशोर शक्तिपीठ · युगाद्या शक्तिपीठ · रत्नावली शक्तिपीठ · रामगिरि शक्तिपीठ · लंका शक्तिपीठ · वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ · विभाष शक्तिपीठ · विरजा शक्तिपीठ · विराट शक्तिपीठ · वैद्यनाथ का हार्द शक्तिपीठ · दुनागिरि शक्तिपीठ · शुचींद्रम शक्तिपीठ · शोण शक्तिपीठ · श्री पर्वत शक्तिपीठ · श्री शैल शक्तिपीठ · सुंगधा शक्तिपीठ · चामुंडा देवी मंदिर · माया देवी शक्तिपीठ · हिंगलाज शक्तिपीठ · उग्रतारा मंदिर है ।शक्तिपीठ · यशोर शक्तिपीठ · युगाद्या शक्तिपीठ · रत्नावली शक्तिपीठ · रामगिरि शक्तिपीठ · लंका शक्तिपीठ · वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ · विभाष शक्तिपीठ · विरजा शक्तिपीठ · विराट शक्तिपीठ · वैद्यनाथ का हार्द शक्तिपीठ · दुनागिरि शक्तिपीठ · शुचींद्रम शक्तिपीठ · शोण शक्तिपीठ · श्री पर्वत शक्तिपीठ · श्री शैल शक्तिपीठ · सुंगधा शक्तिपीठ · चामुंडा देवी मंदिर · माया देवी शक्तिपीठ · हिंगलाज शक्तिपीठ · उग्रतारा मंदिर है ।
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