सुबह की उदास कविता
राजकिशोर राजन जी समकालीन हिंदी कविता के सुप्रसिद्ध कवि हैं । इनकी कविताओं में समय की पदचाप गहरे सुनी जा सकती है । राजन जी की कविताओं में हाशिए के लोग अपनी पूरी गरिमा के साथ उपस्थित हैं। कवि का एक बड़े शहर में रहने, वहाँ रोजी-रोटी कमाने के बावजूद उसके हृदय में हमेशा एक गांव बसता है । उसके व्यक्तित्व और कृतित्व को ग्रामीण परिवेश ने विशिष्टता व गहनता प्रदान की है। उसके काव्य में गाँव, खेत-खलिहान, बच्चे, किसान, मजदूर, गृहिणियाँ आदि का सांगोपांग चित्रण मिलता है। इन विविध प्रसंगों के जीवन्त चित्रण का यथार्थ देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि कवि और उनकी कविता गँवई जीवन-रस से सराबोर है।
'जीवन इस धरती का' काव्य संग्रह की कविताओं से गुजरना एक ओर तो अपने आसपास बिखरी
उन तमाम जरूरी, गैर जरूरी, चिन्हित, अचिन्हित वस्तुओं के प्रति कवि की सजगता और सतर्कता का बोध कराती है तो दूसरी तरफ उसके व्यापक दृष्टि फलक और घनीभूत संवेदना को भी दर्शाती है । गांव कभी जमींदारों के अत्याचारों से त्रस्त था, वहीं आज आजादी के अनेक वर्षों बाद भी अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते किसानों, मजदूरों में एक तरफ घोर निराशा और कुंठा के घनघोर स्वर सुनाई पड़ते हैं जो आज भी आर्थिक अभावों की मार झेलते, दबे-कुचले और शोषित हैं।
कवि कहता है- अब तावान हो गया में गांव में रहना भी / पहले पीठ पर लात मारता था जमींदार / अब महाजन मारता है सीधे पेट पर लात / गोबर का अता पता नहीं बरसों से / शायद धान काटते मर- खप गया हो / हरियाणा- पंजाब के किसी गांव में ।
वहीं दूसरी तरफ कवि की रचनाओं में सुखद भविष्य की कल्पनाएं भी सकारात्मकता के साथ दिखाई देती हैं जो मानवीय संघर्ष के अटुट विश्वास का परिचायक हैं । ' एक तानाशाह का दुनिया के नाम संदेश' शीर्षक कविता में कवि कहता है- मैं शब्दकोश से मिटाना चाहता हूं तानाशाह शब्द को ही / क्योंकि इस तरह के शब्दों की अब कोई जगह नहीं पृथ्वी पर / हमें एक साथ खिलना होगा , जैसे एक साथ खिलते हैं फूल ।
कवि 'हत्यारे की चीख' शीर्षक कविता में इस अहमवादी समय में जीवन के आंतरिक सत्य से हमारा परिचय कराता है । कवि कहता है - यह दुनिया बन सकती है किसी मासूम बच्चे की तरह / उसे हत्यारों ने बना रखा है कब्रगाह / यह सिर्फ पृथ्वी पर नहीं मनुष्यता के माथे पर छिः और थू: है / हत्यारा मुझे भीड़ में खोया मासूम बच्चा समझ मुस्कुराता है ।
राजन जी की कविता ग्रामीण जीवन की भाव-सुलभता की तरह सपाटबयानी से घटित घटनाओं के कथ्य धरातल पर महकती हुई, बिना किसी दुराव-छिपाव के आती है तभी तो गांव की अनपढ़ बसमतिया कवि से कहती है --
कविता में तनिक धूप, धूल, मिट्टी भी मिलाओ / बहुत हुई शब्दों की खेती / कविता हो रही ऊसर / अब अपने अंतःपुर से बहर / हम्मर गांव भी आओ / हम भी बाँचे तुम्हारी कविता / उसे अईसा बनाओ ।
गाँव की औरतों का संगीत जीवन-राग है जिसमें वर्ष भर के उत्सव, त्योहार, एक राग में मधुर तान से जुड़ते चले आते हैं जो मानव जीवन की जड़ता, कुण्ठा, अवसाद को तोड़कर मानवीय सरोकारों की स्थापना करते हैं । इसी संदर्भ को दर्शाते हुए कवि जँतसार शीर्षक कविता में अपनी मां से पूछता है --
पत्थरों के बीच गेहूं के दाने को पीसते / कैसे जनमता है गीत ?
कवि की बात सुनकर मां हंसकर उसकी बातों को टाल जाती है पर कवि की कविता गँवई संवेदना से सिक्त है जिसमें जीवन की गति है । कवि फिर कहता है अगली पंक्ति में -- सचमुच यह भी कोई प्रश्न है ! /
कि कोई फूल से पूछा कि तुम खिलते हो कैसे ! /
नदी से कि बहती हो कैसे ! /
और जीवन से कि /
इस नामुराद दुनिया में वह भरा क्यों रहता है उछाह से ।
देश को आजाद हुए ७५ वर्ष हो गए पर देश में नारी समाज का बड़ा हिस्सा व्यक्तिगत या सामाजिक फैसले लेने में कहीं ना कहीं असमर्थ हैं । वह स्त्री का शाब्दिक अर्थ समझा पाने में पुरुष प्रधान समाज के बीच अपने को असमर्थ पाती है । वह दुनिया के सारे ऐश्वर्य, वैभव या किसी प्रकार की संपदा से अपने को दूर रखना चाहती है । वह अपनी मर्यादा को समझती है । तभी तो यक्षिणी शीर्षक कविता में कवि नारी के पक्ष को बड़े दमदार तर्क के साथ रखता है --
क्या तुम्हें पता है ! / किसने बनाई मेरी उन्नत वक्ष स्थल वाली मूर्ति / और इसके साथ क्या नाता है मेरा !
तुम मुझे देखते हो किस तरह उत्कंठित /
निर्मित करते सैकड़ों धारणाएं / पर आज तक भूल भुलैया में उलझे रहे / तुम लाख जतन कर लो / एक स्त्री का अनुवाद असंभव है ।
कवि जीवन से मृत्यु तक के समय को ऊर्जावान बनाकर रखना चाहता है । जो जीवंत ऊर्जा है , वह जो जीवन है पौधों में, पक्षियों में, आकाश में, तारों में, वह जो हम सबका जीवन है, सबका समग्रीभूत जीवन ही कवि की कविता में जी रहा है। कवि अपनी रचना' पक रही है कविता' में कह रहा है -- कोई लाख समझाए इस जीवन ,इस दुनिया के बारे में / परंतु मैं नहीं आना चाहता इस निष्कर्ष पर कि / आंखों के सामने से किसी रेलगाड़ी के गुजर जाने का नाम यह जीवन / जिसके कई- कई डिब्बों में से एक को मान लूं बचपन / दूसरे को अपना किशोरवय और इसी तरह आखिर में / गार्ड- केबिन को हरी झंडी ।
वह विपरीत परिस्थितियों में भी खुश रहना जानता है और जीवन के उजास की तलाश आखिरकार कर ही लेता है ।
अंत में कवि कहता है-- ऐसा ही जीवन वरण किया मैंने / जब धूल से भरी हो देह / माथे से टपकता पसीना / तब मन में उमड़ता है बसंत / और खेतों की मेड़ पर जब पैरों में गड़ते हैं कंकड़ / मिलता है भरी दुपहरी में घास के नीचे / गमछे पर सतुआ खाने का अतुलनीय आनंद ।
'जीवन जिस धरती का' काव्य संग्रह में कुल ११२ कविताएं हैं जो एक से बढ़कर एक हैं ।
गांव आज टुकड़ों- टुकड़ों में बँटकर गोल बंद हो गया है । आज गांवों में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हुई है। ऐसेेेे विकट समय में कवि राजकिशोर राजन जी बड़ी जिम्मेदारी केे साथ आदमी से आदमी को जोड़ते हुए नजर आते हैं । वे एक सशक्त और प्रगतिशील साहित्यकार हैं जो बड़ी जिम्मेदारी केे साथ अपने उत्तरदायित्व का पालन करते नजर आते हैं। कवि बिखरती संस्कृति को न सिर्फ बचाने का कार्य करता है बल्कि अपनी लेखनी से उसका पोषण भी करता है । कवि राज किशोर राजन जी के हृदय की संवेदना, उनकी विचार शक्ति और उनकी कविताएँ सफलता के सोपान पर नज़र आती हैं। कवि की कविताएँ हाशिए पर खड़े लोगों की समस्याओं की सच्चाई बयान कर चुप रहने वाली नहीं है बल्कि वह आने वाली पीढ़ी को जीने का रास्ता बताती है साथ ही पाठकों को उनकी समस्याओं के हल के लिए सोचने पर विवश भी करती है ।सादर
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com