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पितरः केन तुष्यंति मर्त्यामल्पचेतसाम्।

पितरः केन तुष्यंति मर्त्यामल्पचेतसाम्।

महर्षि व्यास के द्वारा प्रणीत अठारह पुराणों मे से अधिकांश में गयाश्राद्ध से संबंधित विवेचन मिलता है।इसके अतिरिक्त वाल्मीकि रामायण,आनंद रामायण आदि अन्य ग्रंथों में भी गयाश्राद्ध की महिमा बताई गयी है।सनातन परम्परा में जिस प्रकार जीवित अवस्था में हम अपने परिजनों का सम्मान करते हैं दिवंगत होने के बाद भी उन संबंधों का हम निर्वहन करें यही इन सद्ग्रंथों का ध्येय है।कारण यह है कि हमारी भारतीय संस्कृति में संबंध जन्मजन्मांतर तक माने जाते हैं।यही कारण है गयाश्राद्ध के क्रम में 
आब्रह्मस्तंबपर्यंतं देवर्षि पितृमानवाः और अतीत कुल कोटिनाम् का मंत्रोच्चार होता है।हो भी क्यों नहीं आखिर हमारे पितृगण भी तो इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु "बहवः पुत्राः"की कामना करते हैं।द्रष्टव्य है यह श्लोक महाभारत से.....
एष्टव्या बहवः पुत्रा यद्याप्येको गयां व्रजेत्।
यत्रासौ प्रथितो लोकेष्वक्षाय करणो वटःः।।
अर्थात् हमारे कुल में बहुत से पुत्र हों।इनमें से कोई एक भी गयाजी में आकर हमारे लिये श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध संपन्न करे।
अब विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या हमारे पितरों की यह संकल्पना आनलाईन श्राद्ध पैकेज से पूर्ण हो पायेगी?क्या जिस पुत्र से श्रद्धा पूर्वक गयाजी में सदेह उपस्थित होकर श्राद्ध संपन्न करने की कामना की गई है वह पूर्ण हो पायेगा?जवाब न में ही मिलेगा।यदि सनातन परंपरावादी हैं तो।नास्तिकों की या गयायात्रा को मात्र टूर समझने वालों की तो बात ही अलग है।उनके तो जन्मदाता माता पिता भी संदेह के घेरे में ही होते हैं।
अंत में....
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत्।की कामना के साथ गयापालक भगवान विष्णु से प्रार्थना है इन मार्गभ्रष्टों को सद्बुद्धि प्रदान करें ।
जय श्री हरि।
.........मनोज कुमार मिश्र "पद्मनाभ"।
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