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सावन गीत

सावन गीत

भींग गया धरती का तन
सावन महीने में,
नाच उठा प्रकृति का मन
पावन महीने में।
हरियाली ऐसी कि रेशम की चादर
धानी सी चुनरी पैरों में महावर।
कैसी लगी है अगन
सावन महीने में,
नाच उठा प्रकृति का मन
पावन महीने में।
पाकर फुहारें हैं झूम रहीं फसलें
चंचल बयारों के मन जहाँ फिसलें।
हर्षित है सारा चमन
सावन महीने मे,
नाच उठा प्रकृति का मन
पावन महीने में।
इठलाती धरती की शोभा निराली
लाल लाल तितली हुई मतवाली।
कैसे करे कोई जतन
सावन महीने में,
नाच उठा प्रकृति का मन
पावन महीने में।
मौसम घमंडी हुआ पानी पानी
अब ना चलेगी तेरी मनमानी।
बसुधा ने पाया रतन
सावन महीने में,
नाच उठा प्रकृति का मन
पावन महीने में।
रजनीकांत।
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