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संस्कार ,संस्कृति और ब्राह्मण

संस्कार ,संस्कृति और ब्राह्मण 

     डॉ सच्चिदानन्द प्रेमी
  ब्राह्मणत्व एक ऐसा गुण है जिसे हरेक जाति के लोग अपनाना चाहते हैं ,परन्तु जन्मना ब्राह्मण इससे मुक्त होकर बाजार की धार पर तैरना चाहते हैं । इसका मुख्य कारण  एकल् परिवार की संस्कृति है ।संस्कार और संस्कृति  पूर्वजों  की सेवा  से परंपरागत रूप में प्राप्त होते हैं । आजकल ब्राह्मण के लड़के भी पुर,विश्वा, गोत्र, शिखा ,सूत्र से अभिज्ञ हो रहे हैं । जो इनसे परिचित हैं ,वे प्रणम्य हैं ।उनके माता -पिता  अपने बच्चों को संस्कारित करें,संस्कार क ज्ञान दें तो वह संस्कृति पुनः संसृत हो सकती है ।
     विवाह संस्कार भी  एक ऐसा संस्कार है जिससे गृहस्त जीवन का आरम्भ होता है ।झीवन की गहराई एवं उतार-चढ़ाव में मधु -चन्द्र केलि या प्री -वेडिंग केलि किसी काम की सावित नहीं होगी ।वहाँ मात्र संस्कार और परम्परा ही साथ निभाएँगे ।
     आर्ष ग्रंथों के अनुसार  वैदिक विधि सभी वर्णों के विवाह की लगभग एक ही है  ,परन्तु लौकिक रीति -रिवाज अलग-अलग होते हैं ।वह स्थान और समय के अनुसार परिवर्तनीय होते हैं । मुझे राजस्थान के राजसमंद यानी उदयपुर में नाथद्वारा के पास प्रसून की एक शादी में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ। मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है और मुझे लगा की इस विवाह में उपस्थित नहीं होते तो मेरे जीवन में कुछ कमी रह गई होती । बारात डंके की चोट पर आई ,कई तरह के बाजे बज रहे थे ,डीजे की जगह पर धौंसे धमक रहे थे । पंडित जी पगड़ी बांधे हुए चौबंदी में घोड़े पर सवार  थे । दूल्हा मौर पर मोरपंख की कलगी बांधे जामा -जोड़ा यानी सांस्कृतिक परिवेश में घोड़े पर परिक्रमा कर रहा था- हाथ में तलवार लेकर और उसी परिवेश में  दुल्हन बीच में बैठी थी |घोड़ा तेज- तेज दौड़ रहा था । दुल्हे ने दौड़ते हुए घोड़े से तलवार से उठाकर सिंदूर निकाला और तलवार से ही कन्या के मांग में सिंदूर डाला ।उसने ऐसा 3 बार किया। अपनी इस संस्कृति और संस्कार को देखकर  अपना कलेजा तो गले को आ गया । पता चला कि दुल्हा मध्य प्रदेश कैडर का आइ पी एस है ।इसीलिए तो कहा गया है गढ़ों में चित्तौड़गढ़ और सब गढ़ैया है ।यह घटना खमनौर घाटी की है । 
      परम्परा से प्राप्त संस्कृति के बिघटन से संस्कार भी समाप्त हो रहा है ।हरेक वर्ण अपनी संस्कृति के अनुसार कम से कम विवाह आदि संस्कार अवश्य करें तो उस समाज की उच्छृंखलता दूर हो जाएगी । इसका नेतृत्व ब्राह्मण ही कर सकेगा । ब्राह्मण स्वयं अपने पद से विचलित है ,किंकर्तव्यविमूढ़ है ।वह नहीं सोच पा रहा है कि हम कहां जा रहे हैं । अत्यधिक धन  ऐश्वर्य और ऐषणा के पीछे हो रही उसकी अवनति  को वह विकास का परिचायक मान रहा है । 
       बिहार के पटना में मुझे एक ऐसे बरात में सम्मिलित होने का मौका मिला जिसमें लड़के के नाना अमेरिका में रहते थे ।किसी शहर में रहते होंगे ।पता नहीं चला ।विवाह के पहले यानी बारात जाने के पूर्व उनसे मेरी लगभग 1 घंटे की मुलाकात हुई और बातचीत कर मुझे भी प्रसन्नता हुई । बिषय और प्रश्न ब्राह्मणों पर ही केन्द्रित था कि अमेरिका में क्या स्थिति है । कोई लड़की जब चाहती है तो वह अपने पति को छोड़कर किसी के साथ जा सकती है और यह कहते हुए कि तुमसे मुझे संतुष्टि अब नहीं हो रही है और पति कुछ नहीं कर सकता , सिर्फ इसके सिवा कि वह कहे कि तुम जाओ ।  हमारे यहां कौन सा बंधन है ! एक बार जो बंध जाता है वह बंधन ही टूटता नहीं ।कहीं इसकी रजिस्ट्री नहीं होती ।बारात आने का कहीं एफिडेविट नहीं होता ,शपथ पत्र कहीं दर्ज नहीं होता और बात पर बारात आ जाती है ,बात पर दुल्हन विदा होती है ,बात पर बेटी किसी की दुल्हन किसी की बहू बन जाती है ।इस गोष्ठी में मनुस्मृति, गर्ग संहिता से लेकर महाभारत तक के श्लोक उद्धृत किए गए थे ।लेकिन जब बारात चली तो दूसरा ही नजारा था । पहले एक परिपार्टी थी कि बाजे वाले को लोग न्योछावर देते 
थे ।वह न्योछावर  10 -  20 पैसे से लेकर ₹रु10 तक का होता था ।₹10 रु का नोट बहुत बड़ा होता था ।बाजे वाले नाचते गाते थे और बाराती दल को घेर- घार कर नेग लेते थे ।उन्हें जो न्योछावर मिलता था उसे अपने गणवेष पर उलटा -सीधा टाँग लेते थे ।अब बात उल्टी हो गई है । हम नाचते हैं ,हमारे माननीय जैसे बहनोई ,फूफा ,बाबा ,मामा सब नाचते हैं ।कुछ लोग तो शौक से नाचते हैं जैसे -मित्र लोग और बहनोई । इनलोगों की नृत्य  विधि और अवधि दोनों बड़ी होती है ,परन्तु कुछ को  नाचना  पड़ता है ।मामा जी भी नाचते हैं ,फिर लड़के के पिता भी और चाचा भी नाचते हैं । फूफा या अन्य मानिन्द लोगों को नाचने के साथ -साथ अच्छा खासा ट्रिप बाजे वाले को देना पड़ता है ।वैसे इस विवाह में कुछ विशेष था ।लड़के की मां भी बारात गई थी ।लड़के की मां भी नाच रही थी ,लड़के के पिताजी भी नाच रहे थे ।लड़के के नाना भी नाच रहे थे ,नानी भी लता डांस कर रही थी । इधर जयमाला का रिवाज बहुत जोरों पर है ।
जयमाला  अगर बढ़िया अप -टू -डेट नहीं हुआ तो खानदान की प्रतिष्ठा मे बट्टा लगने का डर हो जाता है । स्टेज की भी गरिमा बढ़ जाती है बड़े लोगों को फोटू खिंचवाने से । स्टेज पर भी कुछ ऐसा ही हुआ ।लड़के के पिता ,लड़की की माता के हाथ पकड़कर और लड़के की माता लड़की के पिता के हाथ पकड़ कर घनघोर डांस करने लगे । मैं लज्जा से गड़ा जा रहा था ।इर्द -गिर्द बैठने वालों के कानों में अपनी बात जबरदस्ती ठुँसने का प्रयास कर रहा था । मैं जानता था इस
 नकारखाने में तूती की आवाज नहीं गुंजेगी ।मेरी बात सुनेगा कौन ? डांस बंद ही नहीं हो रहा था ।लगभग डेढ़ घंटे तक यह प्रक्रिया चली ।पंडित जी बार-बार घूम रहे थे और लग्न को अपनी घड़ी पर पढ़ा रहे थे । श्री राम जी का विवाह लग्न में नहीं हुआ था ,इससे जीवन भर परेशानी बनी रही ।पर सुनता कौन है ? लोग बोलने लगे । लग्न -वग्न क्या होता है ?मुहुर्त में नहीं हुआ तो क्या बिगड़ गया ? और यह भी तो विवाह का ही रश्म है ।
        खैर ,डांस शांत हुआ ।जयमाला की प्रतीक्षा लोग कर ही रहे थे कि  भोम्हा गरजने लगा  - सब लोग सावधान हो जाएँ ।जयमाला के पहले का सबसे मुख्य रश्म जो किसी कारण से बाकी था अब होने जा रहा है । देखा ,सचमुच यह मुख्य रश्म था ।लड़का लड़की का हाथ पकड़ कर नाचने लगा । सब लोग शांत हो गए ,लेकिन वह नाचता ही रहा । फिर बाद में लड़के ने लड़की को गोद में उठा लिया -बोलो राजा रामचंद्र की जय की ध्वनि गुंज गई । नाचते- नाचते ही  लड़की वरमाला पहनाने चली तो लड़के के दोस्तों ने लड़के को ऊपर उठा लिया जहां लड़की की गति नहीं थी। यह  प्रक्रिया कितनी बार करने का विधान है और  क्या क्या इसका नियम  है , मुझे तो पता नहीं था लेकिन छह से सात वार निश्चित ऐसा हुआ होगा ।इस रश्म पर कोई बोलने वाला नहीं था ।जयमाला हुआ फोटो खिंचवाने का पर्व चला । लोग जाकर सोफा के हैंडल पर बैठ -बैठ कर फोटो खिंचबाते  रहे । इस तरह यह घंटी लगभग 4 घंटे की हुई ।एक बजने वाला था ।
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