Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

संस्कृति के उत्थान के लिए संस्कृत का विकास परमावश्यक

संस्कृति के उत्थान के लिए संस्कृत का विकास परमावश्यक

स्थानीय महाकाल मंदिर के प्रांगण में अखिल भारतीय विद्वत् परिषद द्वारा एक विचार-गोष्ठी आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता पंडित वासुदेव मिश्र तथा संचालन साहित्यकार धनंजय जयपुरी ने किया। गोष्ठी की शुरुआत भगवान महाकाल की पूजा- अर्चना और मंगलाचरण के साथ  हुई। उक्त बैठक में संस्कृत की अनिवार्यता एवं प्रासंगिकता विषय पर विभिन्न विद्वानों द्वारा विचार व्यक्त किए गए। आचार्य लालभूषण मिश्र ने कहा की संस्कृत विश्व की प्राचीनतम एवं सर्वोत्कृष्ट भाषा है जो सभी भाषाओं की जननी है। परंतु आज इस पर चारों ओर से प्रहार हो रहा है।  यदि संस्कृत का क्षय हुआ तो भारतीय संस्कृति को विनष्ट होने से कोई बचा नहीं सकता। पंडित मधुसूदन पांडेय ने कहा कि संस्कृत केवल हमारी मातृभाषा ही नहीं है अपितु यह ज्ञान-विज्ञान के खजाने की कुंजी है। इस वजह से संस्कृत का विकास होना हर हाल में आवश्यक है। डॉ महेंद्र पांडेय के अनुसार वैश्विक स्तर पर स्पर्धा में भारत को श्रेष्ठ बनाने के लिए ज्ञान-विज्ञान के साथ-साथ जिन मानवीय मूल्यों की आवश्यकता है वह संस्कृत के पुस्तकों में भरा पड़ा है। यह दुख का विषय है कि हमारे देश में संस्कृत की अनिवार्यता समाप्त कर इसे ऐच्छिक या वैकल्पिक विषय के रूप में रखने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई है। परंतु विश्व के कई ऐसे देश हैं जो संस्कृत को अपनाकर चरमोत्कर्ष को प्राप्त कर रहे हैं। आचार्य रविंद्र कुमार मिश्र के शब्दों में देश की सनातनी संस्कृति एवं संस्कार का प्रतिनिधित्व करने वाली सृष्टि की प्राचीनतम वेदभाषा संस्कृत का सरकार द्वारा तिरस्कार किया जाना हमारे देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। आचार्य शिवशंकर पांडेय ने कहा की संस्कृत दिवस वर्ष भर में केवल एक दिन ही नहीं अपितु वर्ष के हर एक दिन को संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए एवं इसका प्रचार-प्रसार  लोकोपकार की भावना से किया जाना चाहिए। गुप्तेश्वर पाठक ने कहा कि परिषद के वैसे सदस्य जो संस्कृत के जानकार हैं, द्वारा अपने-अपने क्षेत्र में कम से कम सप्ताह में एक दिन उक्त विषय के जिज्ञासु बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जानी चाहिए। उक्त विचार गोष्ठी में पंडित शशि भूषण मिश्र, आचार्य गोपाल पांडेय, धनंजय पांडेय, वंशीधर पांडेय, अनूप मिश्र,  अखिलेश्वर मिश्र, आचार्य राजकिशोर पाठक, अधिवक्ता योगेश मिश्र, रामनाथ मिश्र, श्याम नंदन मिश्र इत्यादि विद्वानों ने भी अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ