सदन की मर्यादा को तार - तार कर रहें सांसद

सदन की मर्यादा को तार - तार कर रहें सांसद 

नरोत्तम कुमार सिंह, छात्र पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग,गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय
किस प्रकार से सांसद अपने दायित्वों के प्रति गंभीर नहीं है। इस बात का प्रमाण है की बिते दिनों संसद में जो व्यवहार किया गया , तृणमूल कांग्रेस के सांसद शातनू सेन के द्वारा संसद का उच्चसदन  ( राज्यसभा ) में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथो से बयान के प्रति को उनके हाथों से छिन कर फाड देना और उसे आसन की ओर फेक देना । सांसद संसद की मर्यादा को तार- तार कर रहें है।  खास कर विपक्षी सांसद विरोध के नाम पर हंगामा करने में अधिक दिलचस्पी दिखा रहें है। केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पूरी से तृणमूल कांग्रेस के सांसदो ने झड़प किया । इस प्रकार के घटनाक्रम से यह धारणा ही धवस्त होती जा रही हैं की निचले सदन यानी लोकसभा के उपेक्षा राज्यसभा में चर्चा कहीं अधिक गंभीरता से होतीं है।
अफसोस की बात है कि अब दोनो सदनों के कार्यकलापो का अन्तर करना कठिन हो गया है 
विपक्षी सांसदो का जासूसी मामलों और कृषि बिल के खिलाफ आन्दोलित है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है की सरकार के पक्ष को न सुनें , बिना बहस किये , सरकार के जबाबो को जानने से इनकार करना , इन सब चीजों से संसद की गरिमा को कहीं न कहीं ठेस पहुंचा है।
तृणमूल कांग्रेस सांसद शान्तनु सेन ने अपने अमर्यादित व्यवहार में ऐसे शारारत करनें वाले सांसदो का याद दिला दिया । ऐसे कई मामलों संसद में पहले आ चुके है , मार्च 2010 में राज्यसभा में  महिला आरक्षण विधेयक के खिलाफ विरोध कर रहें सांसदो ने सभापति हामिद अंसारी के साथ छीना - झपटी करतें हुए बिल की प्रतिया फार दिया था ।  जब कानून मंत्री विरप्पा मोइली ने जैसे  हीं महिला आरक्षण बिल को सदन के पटल पर रखा , तो विधेयक का विरोध कर रहें राष्ट्रीय जनता दल ( राजद ) और समाजवादी पार्टी ( सपा ) के सांसदो ने सभापति हामिद अंसारी के आसन तक जा पहुंचे और राजद सांसद सुभाष यादव व राजनित प्रसाद और सपा सांसद कमाल अख्तर ने हामिद अंसारी से छीना - झपटी करतें हुए बिल की प्रतिया छीन ली और उसे फारकर सदन में लहरा दिया । इस दिन को सदन के इतिहास में काला दिन माना गया ।
इसमें बंगाल के मुख्य मंत्री ममता बनर्जी का भी नाम है। बतौर लोकसभा सांसद उनहोंने अगस्त 2005 मे लोकसभा उपाध्यक्ष चरणजीत सिंह अटवाला जो आशन पर आशीन थे , उन पर कागज फेके थें  तब उनकीं नाराजगी का कारण बंगाल में बंग्लादेशी घुसपैठियो का मिल रहा संरक्षण था वे आज घुसपैठिया के सबसे बड़े हितैषी बन गई है।
शान्तनु सेन को अपनी हरकत पर ममता और अपने अन्य साथियों से शबासी मिल रहा हैं।  इससे तृणमूल कांग्रेस के संस्कृती पर सवाल सवाल उठता है । 
सदन में सड़क छाप व्यवहार को सहन नहीं करना चाहिए,  फिर सड़क और सदन के राजनीति में फर्क क्या रह जाएगा। इसी के मद्देनजर सरकार ने सरकार ने सभापति के समझ कारवाई का प्रस्ताव रखा , और सदन से उसे बहुत मिला । शान्तनु सेन को धारा 257 के तहत अमर्यादित व्यवहार करने के लिए मौजूदा सत्र से निष्कासित किया गया।
लेकिन सवाल यह है की विपक्षी पाटीयो शान्तनु सेन के इस अभद्र व्यवहार का आलोचना नहीं कर रहें है ।
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