जलो !मगर दीप की तरह
खुद रहो
अँधकार में
किंतु प्रकाशित करो
जग को
जगमगा कर
मरो नहीं
जलकर
पतंगे की तरह
जलते हैं
दोनो ही दिवाकर भी
निशाकर भी
पर बंद कर लेते हैं
गर्मियों में लोग खिड़कियाँ
डर कर ताप से
दिवाकर के
छा जाती हैं खुशियाँ
शरत् के चाँद को जलता देखकर सर्वत्र।
....मनोज कुमार मिश्र "पद्मनाभ"।
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