उनके सर से अब छीनो ताज
जागो ब्राह्मण जागो समाज, अंधे बहरों को दो आवाज।
जो नहीं सुने शोषक शासक उसके सर से तुम छीनो ताज।।
उत्तम कुल मर्यादित समाज, पा हुए तुम जिसके शिकार।
पहचान न पाए क्यों अब तक, तुम से रखते आए जो खार।।
फिर भी वरेण्य क्यों वही तेरे , सोचो इसमें क्या है फेरे।
तुम नहीं बुद्धि नहीं दृष्टिहीन नहीं धनबल भी है कम तेरे।।
तुम संस्कार और सदाचार के पालक और रक्षक हो ।
तुम न्याय धर्म के प्रबल समर्थक अन्यायी के लिए तक्षक हो।।
सब रखकर भी क्यों सोए हो, अब उठो चुनौती स्वीकार करो।
बढ़कर विवेक से तुम कह दो , हक दो या हम से दो-चार करो।।
डॉक्टर विवेकानंद मिश्रा डॉक्टर विवेकानंद पथ, गोल बगीचा गया बिहार
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