बहू पुराण
पिछले कुछ महीनों से पंकज के मन में उमड़ घुमड़ रही व्यथा आज होठों पर आ ही गई -
' क्या दीदी ! आजकल मै कभी भी फोन लगाऊं हमेशा कुछ ना कुछ करती ही रहती हो, मैंने पहले ही कहा था इतने बड़े घर की बेटी मत लाओ , आते ही लगा दिया ना काम पर, पहले ही आपकी तबियत ठीक नहीं रहती है कभी साह फूलती तो कभी हाथ-पैर दुखते हैं --- और कुछ नहीं तो अब सिलाई बुनाई , हद हो गई है काम की, कहां आप सोचती थी बहू आएगी तो आराम ही आराम लेकिन आते ही उसने अपने तेवर दिखा दिये ---?'
जवाब में अरुणा बोली-
' शांत हो जा, शांत हो जा , मैं जानती हूं तुझे हमेशा मेरी चिंता लगी रहती है अच्छा हुआ जो आज तुमने इस ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया-मेरे प्यारे भाई ! मैं यह सब काम अपनी मर्जी से करती हूं बहू का कोई दबाव नहीं है '
इस पर ताना मारते हुए पंकज बोला-
' अच्छा तो बहू के आते ही तुम स्वस्थ हो गई ?'
' हां , उसके आने के बाद मैं स्वस्थ ही नहीं स्फूर्ति से भी भर गई हूं तुझे एक बात तो बताना भूल ही गई-बहू रोज सुबह योग प्राणायाम करती है और उसने मुझे भी सिखा दिया यह सब उसी का परिणाम है।'
उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।
मीरा जैन,516,साँईनाथ कालोनी . सेठीनगर,उज्जैन . -( म.प्र.)
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