जाना पहचाना अजनबी
बदलता रहता है मेरा स्वरुप
परिस्थितियों के फलस्वरूप
आत्म-साक्षातकार करा देता है
जीवन में फलसफो के अनुरूप
क्या है नारी का अस्तित्व
बदलता रहता है है व्यक्तित्व
कर्तव्य से भरा है सतीत्व
समर्पण से भरा है मातृत्व
वातावरण की उथल-पुथल
यादों से भरे सुनहरे पल
मचाते हैं दिलों में हलचल
जैसे बहता जल झरनों से कल-कल
रोजमर्रा की दौड़-धूप में
खुद से हो जाते अपरिचित
कभी जाने- पहचाने अजनबी
तो कभी अंतरंग और चर्चित
अनोखा है जीवन का यह सफर
व्यर्थ न जाए यूं बेखबर
आनंद लुटाना दिल से भरपूर
मिसाल बनना, होना मशहूर
नित- नवीनता के ये फसाने
मानवता के रिश्ते हो जाए न पुराने
नींव के पत्थर बनो, दो नजराने
युवा पीढ़ी के लिए हो जाए खजाने।
स्वरचित
डॉ राखी गुप्ता
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