हम थे कितने अच्छे
शादी के पहले,
हम थे कितने अच्छे,
पापा के थे राजा बेटा,
माँ के नजर में बच्चे।
दोस्तों का था मैं यार अकेला,
अक्ल के पुरे कच्चे,
नहीं कोई छल कपट था,
पर थे दिल के सच्चे।
जबसे मेरी पत्नी आयी,
सभी हुये मुझसे दूर,
अपना सुख चैन मैं भुला,
लगता नहीं कुछ अच्छे।
मम्मी जोरू का गुलाम कहती,
पापा समझते नालायक,
खुद के नजर मे गिर गया हूँ ,
खा रहा हूँ अब गच्चे।
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अरविन्द अकेला
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