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बिहार युवा अधिवक्ता कल्याण समिति, पटनाके नेतृत्व में केंद्र सरकार के समक्ष प्रस्तुत की अपनी 26 सूत्री मांग।

बिहार युवा अधिवक्ता कल्याण समिति, पटनाके नेतृत्व में केंद्र सरकार के समक्ष प्रस्तुत की अपनी 26 सूत्री मांग।

केंद्र की ओर विद्यमान कोविड-19 के संकट से आहत, मर्माहत, अस्त, पस्त व त्रस्त अधिवक्ताओं ने बिहार युवा अधिवक्ता कल्याण समिति के नेतृत्व में केंद्र सरकार के समक्ष प्रस्तुत की अपनी 26 सूत्री मांग।समिति के राज्याध्यक्ष श्री बिनोद कुमार गुप्ता एवं प्रभारी महामंत्री श्री शशांक कुमार सिंह के हस्ताक्षर से माननीय प्रधान मंत्री एवं केंद्रीय विधि मंत्री के नाम भेजा ज्ञापन।श्री अक्षय आशीष ने किया ज्ञापन का मेल।समिति के राज्याध्यक्ष श्री बिनोद कुमार गुप्ता ने समिति के मुख्यालय जिला अधिवक्ता संघ भवन, पटना में आयोजित बैठक में सदस्यों को पढ़कर सुनाया प्रत्येक मांग।समिति के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष श्री लाल बाबू पासवान की अध्यक्षता में आयोजित हुई समिति के प्रमुख सदस्यों की बैठक।समिति के प्रवर सचिव श्री जगदीश्वर प्रसाद सिंह, सचिव श्री सतीश कुमार वर्मा, श्री राम अशीष ठाकुर, श्री बिनोद कुमार सिंह, श्री अंजुम बारी, श्री अजित कुमार सिंह, श्री महेश प्रसाद, श्री अजय कुमार, श्री विद्या भूषण, श्री शिवानन्द गिरि, श्री गणेश प्रसाद यादव, श्री निर्मल कुमार, श्री राजेंद्र प्रसाद भास्कर, श्री चन्दन कुमार, श्री ओंकार नाथ पाण्डेय आदि अधिवक्ताओं ने लिया भाग। समिति ने विशेष रूप से उठायी निम्न मांगें:-
1) कोविड-19 की चपेट में आ रहे अधिवक्ताओं, अधिवक्ता लिपिकों, टंककों एवं अन्य सम्बन्धित पक्षों के इलाज के लिए प्रत्येक न्यायालय परिसरों में विशेष कोविड अस्पताल बनवाई जाय तथा उनके इलाज में हर तरह की चिकित्सीय उपलब्ध करवायी जाय।
2) कोविड-19 के संक्रमण अथवा उसके प्रभाव से आहत अधिवक्ताओं के परिजनों को न्यायालय के अधिकारी के गरिमा के अनुकूल सहायता प्रदान की जाय।तदनुरूप संक्रमण से प्रभावित अन्य अधिवक्ताओं को भी सहायता पहुँचायी जाय।
3) सरकार अपने आपदा प्रबंधन कोष से तत्काल राशि जारी कर न्यायालय के अधिकारी के गरिमानुकूल प्रत्येक अधिवक्ताओं को मार्च 2020 से प्रतिमाह की दर से आर्थिक सहायता पहुँचाये।
4) कोविड-19 की निषिद्धताओं एवं निर्देशों को ध्यान में रखते हुए माननीय न्यायालय सहित सभी न्यायालयों में प्रत्यक्ष, भौतिक, वास्तविक, नियमित एवं सुचारू रूप से वादों का दाखिला, पंजीकरण, कार्यवाहियों का संचालन, साक्ष्यों का संकलन एवं सुनवाई प्रारम्भ करवायी जाय तथा इसके निश्वत ई-कोर्ट व्यवस्था को वापस लिया जाय।
5) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 312 के अनुरूप "अखिल भारतीय न्यायिक सेवा" अविलम्ब प्रारम्भ किया जाय।
6) केंद्र सरकार द्वारा पारित 'अधिवक्ता कल्याण कोष अधिनियम 2001" को वकीलों के व्यापक हित में संशोधित कर उसमें और अधिक कल्याणकारी योजनाओं को शामिल किया जाय तथा उसके लाभान्वितों की सूची एवं परिधि में सूबे बिहार के अधिवक्ताओं को भी शामिल किया जाय।
7) प्रत्येक वार्षिक बजट में राज्यों के अधिवक्ता संघों एवं अधिवक्ताओं की बेहतरी एवं कल्याण के लिए बजटीय प्रावधान कर कोष उपलब्ध कराया जाय।
8) वकालत पेशे का राष्ट्रीयकरण किया जाय तथा सामूहिक जीवन बीमा के लिए निर्धारित 30 वर्ष से 70 वर्ष की उम्र सीमा को हटाकर इसे सभी अधिवक्ताओं के लिए उपलब्ध कराया जाय।
9) शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र की तरह बिहार विधान परिषद हेतु अधिवक्ता निर्वाचन क्षेत्र का भी गठन किया जाय।
10) अधिवक्ता अधिनियम एवं बार काउंसिल निर्वाचन नियमावली को संशोधित कर विधान सभा एवं लोक सभा की तरह बिहार बार काउंसिल निर्वाचन क्षेत्र को विभाजित कर क्षेत्रवार प्रतिनिधित्व दिया जाय तथा मतगणना की प्रक्रिया भी संशोधित कर साधारण बहुमत के आधार पर सदस्यों के निर्वाचन का प्रावधान किया/कराया जाय।
11) अधिवक्ता अधिनियम को संशोधित कर उससे Other misconduct शब्द विलोपित किया जाय तथा बार काउंसिल से डी०सी० का अधिकार वापस लिया जाय।
12) विधि व्यवसाय के उच्च शिक्षा हेतु छात्रवृति की व्यवस्था की जाय तथा उन्हें विधि पुस्तक एवं पत्रिका सस्ते दर पर उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाय।
13) विधि स्नातकों को तकनीकि स्नातक के समकक्ष घोषित किया जाय तथा अधिवक्ता अधिनियम 1961 को संशोधित कर व्यवसाय में प्रवेश की अधिकतम आयु सीमा 45 वर्ष की जाय।साथ ही सेवानिवृत व्यक्तियों को विधि व्यवसाय में रोक लगाकर दोहरे लाभ से वंचित किया जाय।
14) नवोदित अधिवक्ताओं के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाय एवं उन्हें कम से कम दस वर्षों तक प्रतिमाह दस हजार रुपया वृतिका दी जाय और विधि पुस्तकें सस्ते दर पर उपलब्ध करायी जाय।
15) न्यायपालिका की स्वायतता, स्वतंत्रता एवं गरिमा कायम रखने के लिए न्यायाधीशों, न्यायिक पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों के चयन, नियुक्ति, पदोन्नति, निगरानी एवं स्थानांतरण हेतु एक स्वतंत्र निकाय "अखिल भारतीय न्यायिक सेवा आयोग" का गठन किया जाय।
16) अधिवक्ताओं को आयुष्मान भारत योजना एवं सामाजिक सुरक्षा योजना से जोड़ा जाय तथा वृद्ध एवं लाचार अधिवक्ताओं को न्यायालय के अधिकारी के गरिमानुकूल जीवन निर्वाह भत्ता दिया जाय।
17) अधिवक्ताओं को किसी भी परिस्थिति में कार्य करने में सक्षम करने हेतु उन्हें उत्तम कोटि के स्मार्टफोन, लेपटॉप, पुस्तकालय, नेट व लिंक आदि से सुसज्जित एवं प्रशिक्षित किया जाय।
18) प्रत्येक अधिवक्ता संघों में अधिवक्ताओं, अधिवक्ता लिपिकों एवं टंकको के लिए जन वितरण प्रणाली की दुकानें खुलवाई जाय तथा उन्हें अनुदानित दर पर खाद्य सामग्रियों की आपूर्ति करवायी जाय।
19)अधिवक्ताओं की व्यापक सुरक्षा हेतु राष्ट्रीय स्तर पर "अधिवक्ता सुरक्षा अधिनियम" एवं वृद्धावस्था में उनकी सहायता हेतु "अधिवक्ता पेंशन अधिनियम" लागू किया जाय।
20) अधिवक्ता अधिनियम में संशोधन कर न्यायालय के अधिकारी के रूप में मान्य अधिवक्ता समुदाय की सुविधाओं को भी परिभाषित किया जाय तथा उन्हें अन्य पेशेदारों की तरह वकालत के साथ साथ अन्य पेशा करने की भी सुविधा एवं छूट दी जाय।
21) अधिवक्ता संघों के अनुमोदन पर अधिवक्ताओं के भवन निर्माण हेतु जमीन क्रय करने, उसपर भवन निर्माण करने, पुस्तकालय बनाने, आवागमन के लिए गाड़ी खरीदने आदि के इच्छुक अधिवक्ताओं को ब्याजमुक्त ऋण उपलब्ध कराया जाय।
22) प्रत्येक स्तर के न्यायालयों में न्यायिक पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों के रिक्त पदों पर अविलम्ब पूर्ति की जाय।
23) केंद्र सरकार के अधीनस्थ सरकारी, अर्द्धसरकारी, स्वायत संस्थान एवं सार्वजनिक उपक्रमों में विधि सलाहकार के पद का सृजन कर उसपर अधिवक्ताओं के नियुक्ति का प्रावधान किया जाय।
24) प्रान्तीय, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित न्यायिक सेवा एवं पेशेगत विचार संगोष्ठी व ऐसे किसी सम्मेलन में सम्मिलित होने हेतु लगने वाले आवागमन व्यय को सरकार वहन करे।
25) विधि व्यवसाय के व्यवसायिक शिक्षा की अवधि पांच वर्ष की जाय एवं इंटर पास के पश्चात ही प्रतियोगिता के आधार पर विधि महाविद्यालयों में नामांकन किया जाय।26) कोर्ट अवमानना अधिनियम में आवश्यक संशोधन कर उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की तरह बार को भी समानता के आधार पर सुरक्षा प्रदान किया जाय।साथ ही न्यायालयों में भी काम नहीं तो वेतन नहीं की व्यवस्था लागू किया जाय।
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