शब्दों के तीर से
कर प्रहार वीर से,
जनता है भोली सी
बच गई तकदीर से।
शब्दों की मार से
हो गए बीमार से,
बदले की आग जली
अब हैं अनार से।
शब्दों की माया है
वो,सबको भाया है,
बिन चूल्हे की रोटी
जो,जी भर खाया है।
शब्दों से खेलेंगे
गद्दी भी ले लेंगे,
बदले में घृणा भाव
मन भर उडेलेंगे।
शब्दों का कर प्रयोग
झेल रहे हैं वियोग,
सत्ता की चाहत में
कर रहे हैं नित्य योग।
शब्दों का कवियों से
गहरा सा नाता है,
स्वर की परवाह नहीं
मन फिर भी गांता है।
रजनीकांत।
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