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कण्ठ भर आए

कण्ठ भर आए

है यहां प्रतिकूल मौसम 
क्या किया जाए 
थक गयी श्रद्धांजली अब
कण्ठ भर आए

हर दिशा बहने लगी है
पवन जहरीली 
डस रही है जिदंगी की
ऑख है गीली 

पत्थर हुई संवेदना 
मरसिया गाए

'आक्सीजन' के बिना
जिंदगी बेचैन है 
'एम्बुलेंस'चीखती,सांत्वना
दिन-रैन है 

बे वजह ही हम इधर से
उधर तक धाए

अस्पतालों शवगृहो में
भीड़ है भारी
जिंदगी पर मौत का पहरा 
कड़ा जारी

निर्दयी निष्ठुर, हमें हैं
सिर्फ भरमाए

दहकते श्मशान गुलज़ार
कब्रिस्तान हैं
मृत्यु को मिलता नहीं,अब 
उचित सम्मान है

'फेल' है परधान दुखिया
मुँह खड़ा बाए
          *
~जयराम जय
'पर्णिका'बी 11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ प्र)
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