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हे दयानिधे ! रथ रोको

 हे दयानिधे ! रथ रोको

डॉ राखी गुप्ता
 हे दयानिधे ! रथ रोको अब, क्यों प्रलय की तैयारी है । 
 ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है । 

 नैना रोते रोते सूखे, अब नीर कहाँ इन आँखों में । 
 परवाज पे जिनकी गर्व बड़ा, अब जान कहाँ इन पाँखों में ।। 
 अपने भी साथ नही अपने, जंग जीवन से यूँ जारी है । 
 ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है । 

 हमने खुद को यूं बसा लिया, वैज्ञानिकता की बांहों में । 
 अवरोध खड़े कर दिए बड़े, हर एक दूजे की राहों में ।। 
 धरती माता का दोहन तो, कर लिया गगन की बारी है । 
 ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।। 

 जिन मुश्किल से गुजर रहे, ये खेल हमारे अपने हैं । 
 जीवन अनमोल बिका जिन पर, कुछ चंद सुखों के सपने हैं ।। 
 हर ओर तमस दिखता है अब, भय में हर रात गुजारी है । 
 ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।। 

 कितने परिचित कितने अपने, कितने आखिर यूँ चले गए । 
 जिन हाथों में दौलत-संबल, सब क्रूर काल से छले गए । 
 हे राघव-माधव-मृत्युंजय, पिंघलो ये अर्ज हमारी है । 
 ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।।
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