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उचित साधना नियमित करने पर आपातकाल में दैवी सहायता मिलने से हमारी रक्षा होगी !

‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ की ओर से ‘जलवायु परिवर्तन’ विषय पर
आध्यात्मिक शोध निबंध देहली के अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन में प्रस्तुत !

उचित साधना नियमित करने पर आपातकाल में दैवी 
सहायता मिलने से हमारी रक्षा होगी !

         अत्यंत प्रतिकूल जलवायु से संबंधित घटनाएं और प्राकृतिक आपदाएं प्रतिदिन बढती जा रही हैं । जलवायु में अनिष्टकारी परिवर्तन का कारण स्वयं मानव ही हैयह वैज्ञानिकों का मत है । परंतु यदि मानव उचित साधना आरंभ करे और उसे नियमित बढाता रहेतो उसमें तथा आसपास के वातावरण में भी सात्त्विकता बढेगी । तब वातावरण में अनिष्ट परिवर्तन होने पर भी साधना करनेवालों को आगामी आपातकाल में दैवी सहायता मिलेगीजिससे उनकी रक्षा होगीऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय के श्रीशॉन क्लार्क ने शोधनिबंध का वाचन करते समय व्यक्त किया । वे ‘सस्टेनेब्लिटी स्पिरिच्युलीटी सिप्म्लिसिटी द एस् इंटरनैशनल कॉन्फ्रेन्स (इस्कॉनइस अंतरराष्ट्रीय परिषद में बोल रहे थे । इस परिषद में उन्होंने ‘अध्यात्म द्वारा जलवायु के परिवर्तन सीमित रखना’यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया । ‘इस्कॉन रिसर्च विंग (इन्स्टिट्यूट ऑफ सायन्स एंड स्पिरिच्युलीटी (ISS))’  इस परिषद की आयोजक थी । इस शोधनिबंध के लेखक परात्पर गुरु डॉआठवले तथा सहलेखक श्रीशॉन क्लार्क हैं ।

          उपरोक्त शोध निबंध महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषद में प्रस्तुत किया 70 वां शोधनिबंध था । इससे पूर्व विश्‍वविद्यालय ने 15 राष्ट्रीय और 54 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोध निबंध प्रस्तुत किए हैं । इनमें से अंतरराष्ट्रीय परिषदों में विश्‍वविद्यालय ने ‘सर्वश्रेष्ठ शोधनिबंध’ पुरस्कार प्राप्त किए है ।

        श्रीशॉन क्लार्क ने कहा, ‘किसी भी घटना की मूलभूत कारणमीमांसा का अध्ययन करते हुए उसका आध्यात्मिक स्तर पर भी अध्ययन करना आवश्यक होता है । जब जलवायु में स्वाभाविक के विपरीत परिवर्तन होते हुए पाए जाते हैंतब उसके पीछे निश्‍चितरूप से आध्यात्मिक कारण होता है । पृथ्वी की सात्त्विकता कम होने पर और तामसिकता की वृद्धि होने पर मानव की अधोगति होती है और पृथ्वी पर साधना करनेवालों की कुल संख्या कम होती है । मानव के स्वभावदोष एवं अहं बढकर उसके कारण पर्यावरण की अक्षम्य उपेक्षा होती है । संक्षेप मेंअधर्म में वृद्धि होती है । सूक्ष्म की शक्तिमान अनिष्ट शक्तियांनष्ट होते पर्यावरण का अनुचित लाभ उठाकर तमोगुण बढाती हैंइसके साथ ही मानव पर प्रतिकूल परिणाम करती हैं । जिसप्रकार धूल एवं धुएं का स्थूल स्तर पर प्रदूषण होता हैइसलिए हम प्रतिदिन स्वच्छता करते हैंउसी प्रकार अधर्माचरण के कारण होनेवाली रज-तम में वृद्धियह सूक्ष्म स्तरीय प्रदूषण हैं । प्रकृति वातावरण के इस सूक्ष्म रज-तम की स्वच्छता प्राकृतिक आपदाआें के माध्यम से करती है । इस प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी ‘चरक संहिता’में दी है ।

          ‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ने विश्‍व के 32 देशों से लगभग 1000 मिट्टी के नमूनों को लेकर उनके सूक्ष्म स्पंदनों का अध्ययन किया । यह अध्ययन आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण एवं सूक्ष्म परीक्षण के माध्यम से किया गया है । इस अध्ययन में ८० प्रतिशत नमूनों में कष्टदायक स्पंदन दिखाई दिए । इनमें से कुछ मिट्टी के नमूने हमने उसी स्थान से वर्ष 2018 और 2019 में लिए थे । वैज्ञानिक उपकरणों से किए अध्ययन में केवल एक वर्ष की अवधि में उन नमूनों की नकारात्मक ऊर्जा में 100 से 500 प्रतिशत वृद्धि पाई गई । संक्षेप में पूर्ण विश्‍व में (कुछ धार्मिक स्थानों में भीनकारात्मकता में अत्यधिक वृद्धि हुई थी ।’

         अंत में ‘जलवायु के इस हानिकारक परिवर्तन के बारे में क्या कर सकते हैं ?’ इसके बारे मेें श्रीशॉन क्लार्क ने बतायाइन समस्याआें का मूलभूत कारण आध्यात्मिक होने के कारण जलवायु में सकारात्मक परिवर्तन एवं उनकी रक्षा के लिए उपाययोजना भी मूलतः आध्यात्मिक स्तर पर होना आवश्यक है । संपूर्ण समाज उचित साधना करने लगेतो जलवायु के हानिकारक परिवर्तन और तीसरे विश्‍वयुद्ध के भीषण संकट का सामना करना संभव होगा । ऐसा होने पर भी प्रत्यक्ष में हम केवल अपनी ही सहायता कर सकते हैं । इसके लिए सर्वोत्तम उपाय है साधना आरंभ करना अथवा जो साधना कर रहे हैंउसे बढाना । कालमहिमानुसार वर्तमानकाल में नामजपसरल और प्रभावी उपाय है । संतों ने बताया है कि आध्यात्मिक दृष्टि से ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’सबसे उपयुक्त नामजप है ।
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