अत्यंत प्रतिकूल जलवायु से संबंधित घटनाएं और प्राकृतिक आपदाएं प्रतिदिन बढती जा रही हैं । जलवायु में अनिष्टकारी परिवर्तन का कारण स्वयं मानव ही है, यह वैज्ञानिकों का मत है । परंतु यदि मानव उचित साधना आरंभ करे और उसे नियमित बढाता रहे, तो उसमें तथा आसपास के वातावरण में भी सात्त्विकता बढेगी । तब वातावरण में अनिष्ट परिवर्तन होने पर भी साधना करनेवालों को आगामी आपातकाल में दैवी सहायता मिलेगी, जिससे उनकी रक्षा होगी, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के श्री. शॉन क्लार्क ने शोधनिबंध का वाचन करते समय व्यक्त किया । वे ‘सस्टेनेब्लिटी स्पिरिच्युलीटी सिप्म्लिसिटी : द 3 एस् इंटरनैशनल कॉन्फ्रेन्स (इस्कॉन) इस अंतरराष्ट्रीय परिषद में बोल रहे थे । इस परिषद में उन्होंने ‘अध्यात्म द्वारा जलवायु के परिवर्तन सीमित रखना’, यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया । ‘इस्कॉन रिसर्च विंग (इन्स्टिट्यूट ऑफ सायन्स एंड स्पिरिच्युलीटी (ISS))’ इस परिषद की आयोजक थी । इस शोधनिबंध के लेखक परात्पर गुरु डॉ. आठवले तथा सहलेखक श्री. शॉन क्लार्क हैं ।
उपरोक्त शोध निबंध महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषद में प्रस्तुत किया 70 वां शोधनिबंध था । इससे पूर्व विश्वविद्यालय ने 15 राष्ट्रीय और 54 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोध निबंध प्रस्तुत किए हैं । इनमें से 4 अंतरराष्ट्रीय परिषदों में विश्वविद्यालय ने ‘सर्वश्रेष्ठ शोधनिबंध’ पुरस्कार प्राप्त किए है ।
श्री. शॉन क्लार्क ने कहा, ‘किसी भी घटना की मूलभूत कारणमीमांसा का अध्ययन करते हुए उसका आध्यात्मिक स्तर पर भी अध्ययन करना आवश्यक होता है । जब जलवायु में स्वाभाविक के विपरीत परिवर्तन होते हुए पाए जाते हैं, तब उसके पीछे निश्चितरूप से आध्यात्मिक कारण होता है । पृथ्वी की सात्त्विकता कम होने पर और तामसिकता की वृद्धि होने पर मानव की अधोगति होती है और पृथ्वी पर साधना करनेवालों की कुल संख्या कम होती है । मानव के स्वभावदोष एवं अहं बढकर उसके कारण पर्यावरण की अक्षम्य उपेक्षा होती है । संक्षेप में, अधर्म में वृद्धि होती है । सूक्ष्म की शक्तिमान अनिष्ट शक्तियां, नष्ट होते पर्यावरण का अनुचित लाभ उठाकर तमोगुण बढाती हैं, इसके साथ ही मानव पर प्रतिकूल परिणाम करती हैं । जिसप्रकार धूल एवं धुएं का स्थूल स्तर पर प्रदूषण होता है, इसलिए हम प्रतिदिन स्वच्छता करते हैं, उसी प्रकार अधर्माचरण के कारण होनेवाली रज-तम में वृद्धि, यह सूक्ष्म स्तरीय प्रदूषण हैं । प्रकृति वातावरण के इस सूक्ष्म रज-तम की स्वच्छता प्राकृतिक आपदाआें के माध्यम से करती है । इस प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी ‘चरक संहिता’में दी है ।
‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ने विश्व के 32 देशों से लगभग 1000 मिट्टी के नमूनों को लेकर उनके सूक्ष्म स्पंदनों का अध्ययन किया । यह अध्ययन आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण एवं सूक्ष्म परीक्षण के माध्यम से किया गया है । इस अध्ययन में ८० प्रतिशत नमूनों में कष्टदायक स्पंदन दिखाई दिए । इनमें से कुछ मिट्टी के नमूने हमने उसी स्थान से वर्ष 2018 और 2019 में लिए थे । वैज्ञानिक उपकरणों से किए अध्ययन में केवल एक वर्ष की अवधि में उन नमूनों की नकारात्मक ऊर्जा में 100 से 500 प्रतिशत वृद्धि पाई गई । संक्षेप में पूर्ण विश्व में (कुछ धार्मिक स्थानों में भी) नकारात्मकता में अत्यधिक वृद्धि हुई थी ।’
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com