आधुनिक जीवन
गैरों से रिश्ता पाया है
सोचा था कभी नहीं फिर भी
यह कैसा दुर्दिन आया है ?
अवसर कह लें या फिर दुर्दिन
सब गैरों में ही मस्त हुए
एफ-बी, वाट्सअप के चक्कर में
घर के रिश्ते मजबूर हुए।
अपने लोगों से बातें कम
गैरों से दिल का मेल हुआ
घर के सुख-दु:ख से क्या लेना
खुद के मतलब का खेल हुआ।
---विधुशेखर मिश्र दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
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