कह कमजोर (कविता)
--:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
जो दुनिया का बोझ,
उठाता रहा अपने सर-
आज वही है बेघर।।
किसी को चिंता नहीं है
उसको लेकर-
मानों संवेदना गई मर।
या फिर-
आंखों का सारा पानी
गया बिल्कुल ढर।।
बाहर घुड़की सुनता है
और दुत्कार अपने घर
बोझ ढोते ढोते जिंदगी-
बन गई बोझ दुर्भर।।
न ढंग का ठिकाना
न ढंग का कपडा न खाना
बेहद मायूस हमसफ़र।।
दिल की आशा
हाथों का भरोसा
लगा है करने में कल बेहतर।।
भले कपड़े फटे हैं
कुछ व्यवहार अटपटे हैं
लेकिन रहता है हमेशा तत्पर।।
चाहे जो भी काम मिले
सब करता है वह बिना देह ढिले
कभी नजर झुका कभी कमर।।
जो उठा रहा है आपका बोझ
वो नहीं है कभी आप पर बोझ
अरे हरामखोर-
श्रमजीवी को कम मत आंक-
कह कमजोर कामचोर।।
वलिदाद,अरवल (बिहार)
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