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वह दौर कुछ और था

वह दौर कुछ और था

आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है। याद करो उन सबको जिन्होंने अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर निष्पक्ष पत्रकारिता को जिन्दा रखा। और आज.....
फिर भी सभी पत्रकारों को हार्दिक शुभकामनाएं

वह दौर कुछ और था, जब पत्रकारिता जुनून थी,
भूल कर निज सुख चैन, पत्रकारिता मिशन थी।
वर्तमान दौर में पत्रकारों की, मान्यताएं बदल गयी,
स्वार्थ- सत्ता से करीबी, धन की जरूरत विषम थी।
बंट गये हैं आजकल, पत्रकार जाति धर्म के खेल में,
खींच दी दिवार कुछ ने, राजनीतिक पार्टी झमेल में।
दक्षिण पंथी वामपंथी, कुछ कांगी आपी हो गये,
कुछ दलित पिछड़ों की गाड़ी, हिन्दू मुस्लिम रेल में।
मिलते नहीं ढूंढे से भी, मानवता के पैरोकार अब,
राष्ट्र हित खबरें सुनायें, जो चैनलों के इस झमेल में।

अ कीर्ति वर्द्धन
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