उल्लू काठ के
--:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
अब न घर के रहे न घाट के
हम बन गये है उल्लू काठ के।१।
मेरी जिंदगी गर्दिशों में बीती-
और वे मौज लूटते रहे ठाठ के।२।
जो मेरे जज्बातों से खेलते रहे,
हमें बारीकी सिखा रहे पाठ के।३।
ज़ालिम दुनिया में मैंने पाया है-
उल्टे रस्म सोलह दुनी आठ के।४।
मुझे मुहब्बत नसीब नहीं हुआ
हैं दीवाने जिनके उमर साठ के।५।
पाकर 'मिश्रअणु' को भागे सब-
जो मेरे रिश्तेदार थे गांठ के।६।
वलिदाद अरवल (बिहार)
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